हमने देखा कि पंचाक्षर मंत्र में सिद्धि कैसे प्राप्त करें। शिव पंचाक्षर मंत्र में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पुरश्चरण नामक विशेष विधि है। हमने देखा कि सिद्धि प्राप्त करने के लिए आवश्यकश जाप की संख्या है ५ लाख। अध....
हमने देखा कि पंचाक्षर मंत्र में सिद्धि कैसे प्राप्त करें।
शिव पंचाक्षर मंत्र में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पुरश्चरण नामक विशेष विधि है।
हमने देखा कि सिद्धि प्राप्त करने के लिए आवश्यकश जाप की संख्या है ५ लाख।
अधिक जाप करने से क्या होगा?
पहले पांच लाख में आपको मंत्र में सिद्धि मिलती है।
अगले पांच लाख में आपके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे।
पुरश्चरण स्वयं ही आपके पापों को नष्ट कर देगा।
5 लाख और जप करने से जो पाप रह गया है, वह भी नष्ट हो जाएगा।
इसका मतलब है कि आप पूरी तरह से पापों से मुक्त हो जाएंगे, शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे।
आप जानते हैं कि १४ लोक हैं
हमारे नीचे के लोक-
अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल।
पाताल सबसे नीचे है।
ऊपर के सात लोक हमारे भूलोक से शुरू होकर -
भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यम्
सत्यलोक ब्रह्माजी का है।
पहले १० लाख से आप सिद्धि प्राप्त करते हैं और अपने सभी पापों को दूर करते हैं।
उसके बाद भी यदि आप पञ्चाक्षर मंत्र का जाप करते रहेंगे, तो प्रत्येक ५ लाख में आपको निम्नतम,पाताल से शुरू करके, इनमें से प्रत्येक लोक में पहुंच प्राप्त होती है।
१४ को ५ लाख से गुणा किया तो ९० लाख
१० लाख और ९० लाख- १ करोड़
यदि आप पञ्चाक्षर मंत्र का १ करोड़ बार जाप करते हैं, तो आपको सत्य लोक तक पहुंच प्राप्त होती है।
इसे ब्रह्मा की सालोक्य मुक्ति कहते हैं।
एक और ५ लाख, आपको ब्रह्मा की समीप्य मुक्ति मिलती है।
आप हमेशा ब्रह्मदेव के निकट रहेंगे।
एक ५ लाख और, आपको ब्रह्मा की सारूप्य मुक्ति मिलती है।
सारूप्य का अर्थ है आप ब्रह्मा की तरह दिखने लगेंगे।
उसी प्रकार ब्रह्मा की सार्ष्टि और सायुज्य भी।
अगर साधक की बीच में ही मृत्यु हो जाती है तो क्या होगा?
अगले जन्म में वह वहीं से शुरू करेगा जहां उसने छोड़ा था।
सत्यलोक के ऊपर और भी लोक हैं।
सत्यलोक के ऊपर विष्णु के १४ लोक हैं।
इनमें से सबसे ऊंचा क्षमालोक है।
वैकुंठ क्षमालोक में है।
वैकुंठ से ही भगवान विष्णु लक्ष्मी देवी के साथ संसार को चलाते हैं।
इसके ऊपर रुद्र के २८ लोक हैं।
इनमें सबसे ऊँचा शुचिलोक है।
कैलास शुचिलोक में है।
कैलास में रहकर रुद्रदेव जगत का संहार करते हैं, उसे वापस खींच लेते हैं।
भगवान उस वापस लिये गये जगत के साथ क्या करते हैं?
उसे एक परमाणु के परिमाण में सिकोड लेते हैं और उसे अगले कल्प की शुरुआत तक उन ५६ लोकों में रख देते हैं जो उनके ऊपर हैं। जो शुचिलोक से ऊपर हैं।
इन ५६ लोकों के अधीश हैं महेश्वर जो शङ्करजी का ही एक स्वरूप है।
इस सिकुडी हुई परमाणु के परिमाण में जगत की अवस्था को तिरोभाव कहते हैं।
तिरोभाव के स्वामी हैं महेश्वर।
इन ५६ लोकों में सबसे ऊंचा, ५६वां है अहिंसालोक।
यहां है महेश्वर का वास स्थान। इसे ज्ञान कैलास कहते हैं।
अहिंसालोक के ऊपर है कालचक्र।
काल, समय केवल इस स्तर तक ही सीमित है।
इससे ऊपर काल नहीं है।
इसके ऊपर ईश्वर का लोक है।
रुद्रलोक, महेश्वरलोक और उससे ऊपर ईश्वरलोक।
तो पञ्चाक्षर मन्त्र के एक करोड़ जाप से आप ब्रह्मा के सत्यलोक तक पहुंच पाएंगे।
उससे भी ऊपर ९८ लोक हैं।
इन लोकों को कैसे प्राप्त करें?
ब्रह्म सायुज्य प्राप्त होने पर आप कल्प के अंत तक ब्रह्माजी के साथ रहेंगे।
अगले कल्प में, आप ब्रह्मा के मानस पुत्र, एक ऋषि के रूप में जन्म लेंगे।
तब आप तपस्या करके इन उच्च लोकों को प्राप्त कर पाएंगे।
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