Special - Saraswati Homa during Navaratri - 10, October

Pray for academic success by participating in Saraswati Homa on the auspicious occasion of Navaratri.

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इस प्रवचन से जानिए- १. दशांग अन्नदान की विधि २. महीने के अनुसार किस वस्तु का दान करें ३. जन्म मात्र ब्राह्मण और वेद विद्वानों में भेद क्या है? ४. विशेष फल के लिए विशेष अन्नदान।

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वेदधारा की वजह से मेरे जीवन में भारी परिवर्तन और सकारात्मकता आई है। दिल से धन्यवाद! 🙏🏻 -Tanay Bhattacharya

आपका हिंदू शास्त्रों पर ज्ञान प्रेरणादायक है, बहुत धन्यवाद 🙏 -यश दीक्षित

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

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अन्नदान का श्लोक क्या है?

अन्नं प्रजापतिश्चोक्तः स च संवत्सरो मतः। संवत्सरस्तु यज्ञोऽसौ सर्वं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥ तस्मात् सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च। तस्मादन्नं विषिष्टं हि सर्वेभ्य इति विश्रुतम्॥

अन्नदान का महत्व क्या है?

जिसने इहलोक में जितना अन्नदान किया उसके लिए परलोक में उसका सौ गुणा अन्न प्रतीक्षा करता रहता है। जो दूसरों को न खिलाकर स्वयं ही खाता है वह जानवर के समान होता है।

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भोजन से पहले अन्न का जल से जो संस्कार करते हैं, इसे क्या कहते हैं?

शिव पुराण में हम देख रहे हैं कि दान देते समय देश, काल, और पात्र इनकी क्या मुख्यता और महत्ता हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो जीविका के रूप मे दान स्वीकार करते हैं। इनको देने से अगर भूमि में दस वर्षों का सुख भोग मिलेगा तो किसी वेद ....

शिव पुराण में हम देख रहे हैं कि दान देते समय देश, काल, और पात्र इनकी क्या मुख्यता और महत्ता हैं।
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो जीविका के रूप मे दान स्वीकार करते हैं।
इनको देने से अगर भूमि में दस वर्षों का सुख भोग मिलेगा तो किसी वेद विद्वान को देने से स्वर्ग में दस हजार वर्षों का सुख भोग मिलेगा।
इसमें भी अगर उन्होंने गायत्री का चौबीस लाख जाप किया हो तो स्वर्ग लोक में, सत्य लोक जो सबसे ऊंचा लोक है वहां दस हजार वर्ष का वास मिलेगा।
अगर यह विद्वान विष्णु भक्त है तो देनेवाले को वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी।
अगर शिव भक्त है तो कैलास की प्राप्ति होगी।
अन्न दान में एक विशेष रूप का अन्नदान है जिसे दशांग अन्नदान कहते हैं।
साधारण अन्नदान आप किसी को भी दे सकते हैं।
बस वह भूखा होना चाहिए।
लेकिन दशांग अन्नदान मे आप सिर्फ वेद विद्वान को हि न्योता दे सकते है।
उनके अन्दर वेद विद्यमान होना चाहिए।
इसमे दस कदम हैं।
१. आदर और श्रद्धा के साथ उनके पास जाकर उन्हें निमंत्रण देना।
२. घर में या भोजन के स्थान पर आने पर उनका पैर धोना।
३. उनको स्नान से पहले अभ्यंग के लिए तेल देना।
४. स्नान के बाद वस्त्र प्रदान करना।
५.चंदन जैसे उपचार प्रदान करना।
६. स्वादिष्ठ भोजन प्रदान करना।
७. भोजन के बाद तांबूल प्रदान करना।
८. दक्षिणा प्रदान करना।
९. साष्टंग नमस्कार।
१०. लौटते समय उनका अनुगमन करना।
अगर रविवार के दिन एक वेद विद्वान को आप दशांग अन्नदान करोगे तो आपको परलोक मे दस सालों तक स्वस्थ जीवन मिलेगा।
स्वस्थ क्यों?
क्यों कि हमने देखा रविवार स्वास्थ्य से जुडा हुआ है।
सोमवार को करोगे तो दस सालों तक धन समृद्धि परलोक में।
इसी प्रकार अन्य वारों को भी उनके विशेष गुणों के अनुसार।
इसमें एक आकलन है।
एक को भोजन दिया दशांग की विधि से तो दस साल का भोग।
दस को कराया तो सौ साल का भोग।
साधारण अन्नदान और दशांग अन्न दान में इतना भेद क्यों है?
साधारण अन्नदान में अगर आप जठराग्नि में आहुति दे रहे हैं तो वेद विद्वान के अन्दर संपूर्ण वेद विद्यमान हैं।
सारे देवता विद्यमान है॥
वे विद्वान भी आपके द्वारा प्रायोजित भोजन से उन्हें जो ऊर्जा प्राप्त होगी उससे मंत्रों को उच्चार करेंगे, अनुष्ठान करेंगे; गायत्री जाप इत्यादि।
जन्म मात्र ब्राह्मण और वेदों का अध्येता इनमे काफी भेद है।
जन्म मात्र ब्राह्मण में भी कुछ गुण रहेंगे जो उनके पूर्वजों द्वारा की हुई तपस्या का फल स्वरूप होते हैं।
किसी की भी तपस्या या अनुष्ठान का फल आगे कि छः पीठियों तक चलता है।
जैसे कि मेरे शारीर का ८४ में से ५६ अंश मेरे पूर्वजों से प्राप्त हैं।
यह बीज का सूत्र है।
बीज के द्वारा यह चलता है।
एक बीज से ही शरीर की उत्पत्ति होती है न?
वेदों का अध्ययन करने से शरीर में देवताओं का चैतन्य जागृत हो जाता है।
देव वेद-वित् ब्राह्मणॊं के शरीर मे वास करते हैं।
यावतीर्वै देवतास्ताः सर्वा वेदविदि ब्राह्मणे वसन्ति तस्माद्ब्राह्मणेभ्यो वेदविद्भ्यो दिवे दिवे नमस्कुर्यान्नाश्लीलं कीर्तयेदेता एव देवताः प्रीणाति।
मंत्रों के स्वरुप में।
अगर आप को मेधा शक्ति चाहिए तो बच्चों को खिलाइए, ब्रह्माजी को मन में रखते हुए।
संतान चाहिए तो नौजवानों को खिलाइए, श्री हरि को मन में रखते हुए।
आध्यात्मिक ज्ञान चाहिए तो बुजुर्गों को खिलाइए, महादेव को मन में रखते हुए।
विवेक और बुद्धि शक्ति चाहिए तो छोटी बच्चियों को खिलाइए, सरस्वती देवी को मन मे रखते हुए।
संपत्ति चाहिए तो नौजवान लडकियों को भोजन कराइए, लक्ष्मीजी को मन मे रखते हुए।
आत्मा का अभ्युदय चाहिए तो वृद्ध महिलाओं को भोजन कराइए, पार्वती देवी को मन मे रखते हुए।
हर मास के लिए एक विशेष वस्तु है जिसका दान देने से विषेश फल प्राप्त होता है।
चैत्र मे गोदान।
तन मन और वाणि से जितने पाप आपके द्वारा हुए हो सब मिट जाएंगे।
और तन मन और वाणी से जो कुछ भी आप आगे करेंगे वे सब ताकतवर हो जाएंगे।
गोदान करते समय यह ध्यान मे रखिए कि ऐसी जगहों पर या ऐसे लोगों को दीजिए जो उस गाय से प्राप्त दूध को दैवी कार्यों में ही विनियोग करेंगे।
जैसे अग्निहोत्र, या गुरुकुल मे बच्चों के लिए, या अभिषेक के लिए।
नहीं तो कोई फायदा नही होगा।
जो आपसे लेकर उस दूध को बेचेग उस गव्य-विक्रय का दोष आपको भी लग जाएगा।
वैशाख में भूदान कीजिए; यहां और परलोक मे प्रतिष्ठा मिलेगी।
ज्येष्ठ में तिल का दान कीजिए।
यह बल: शारीरिक, मानसिक और आर्थिक बल के लिए बहुत ही अच्छा है।
आषाढ में सोने का दान देने से उदर संबन्धी रोग नष्ट हो जाएंगे।
श्रावण में घी का दान देने से प्रगति होगी जीवन मे।
भाद्रपद में वस्त्र दान करने से दीर्घायु की प्राप्ति होगी।
आश्विन में धान्यों का दान, धन और भोजन की समृद्धि प्रदान करेगा।
कार्तिक में गुड दान करने वाले को सर्वदा स्वादिष्ठ भोजन मिलेगा।
अगर किसी में बीज शुद्धि नहीं है या बीज कम हो जिसकी वजह से संतान प्राप्ति मे विघ्न आ रहा हो तो वह मार्गशीर्ष में चांदी का दान करें।
पौष्य मे नमक का दान; इससे भी स्वादिष्ट भोजन मिलता ही रहेगा।
माघ मे कूष्मांड; समृद्धि और प्रगति के लिए।
फाल्गुन में कन्या दान, हर मंगल को प्रदान करेगा।

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