श्री राम की कहानी लिखने के लिए ब्रह्मा से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मिकी अपने शिष्य भारद्वाज के साथ स्नान और दोपहर के अनुष्ठान के लिए तमसा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा आनंदपूर्वक विचरते हुए देखा। उसी समय नर क्रौंच पक्षी को एक शिकारी ने मार डाला। रक्त से लथपथ मृत पक्षी को भूमि पर देखकर मादा क्रौंचा दुःख से चिल्ला उठी। उसकी करुण पुकार सुनकर ऋषि का करुणामय हृदय अत्यंत द्रवित हो गया। वही दु:ख करुणा से भरे श्लोक में बदल गया और जगत के कल्याण के लिए महर्षि वाल्मिकी के मुख से निकला - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। श्लोक का सामान्य अर्थ शिकारी को श्राप है - 'हे शिकारी, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर पाओ, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला ।।' लेकिन वास्तविक अर्थ यह है- ' हे लक्ष्मीपति राम, आपने रावण-मंदोदरी जोड़ी में से एक, विश्व-विनाशक रावण को मार डाला है, और इस प्रकार, आप अनंत काल तक पूजनीय रहेंगे।'
इति हैवमासिदिति यः कथ्यते स इतिहासः - यह इंगित करता है कि 'इतिहास' शब्द का प्रयोग उन वृत्तांतों के लिए किया जाता है जिन्हें ऐतिहासिक सत्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। रामायण और महाभारत 'इतिहास' हैं और कल्पना या कल्पना की उपज नहीं हैं। इन महाकाव्यों को प्राचीन काल में घटित घटनाओं के तथ्यात्मक पुनर्कथन के रूप में माना जाता है।
हमने देखा कि कुरुक्षेत्र युद्ध धरती पर एक देवासुर युध्द था। देवताओं द्वारा स्वर्गलोक पर पूर्ण अधिकार कर लेने के बाद असुर पृथ्वी पर जन्म लेने लगे। या आप कह सकते हैं कि असुरों ने धरती पर अवतार लिया। जैसे - जैसे इनकी संख्या बढ....
हमने देखा कि कुरुक्षेत्र युद्ध धरती पर एक देवासुर युध्द था।
देवताओं द्वारा स्वर्गलोक पर पूर्ण अधिकार कर लेने के बाद असुर पृथ्वी पर जन्म लेने लगे।
या आप कह सकते हैं कि असुरों ने धरती पर अवतार लिया।
जैसे - जैसे इनकी संख्या बढ़ती गई, अधर्म भी बढ़ता गया।
धर्म - अधर्म का संतुलन बिगड़ गया।
देवताओं ने भी पृथ्वी पर अवतार लिया।
इसके बाद उनके बीच लड़ाई शुरू हो गई।
पृथ्वी पर असुरों का सर्वनाश हो गया।
धर्म की पुनः स्थापना हुई।
अब, हम एक नज़र डालेंगे कि महाभारत के कुछ मुख्य पात्र किसके अवतार थे।
जरासंध दानव प्रमुख विप्ताचित्ति का अवतार था।
शिशुपाल हिरण्यकशिपु का अवतार था।
प्रह्लाद के भाई संह्राद ने बहलीका के राजा शल्य के रूप में अवतार लिया।
अनुह्राद, एक और भाई धृष्टकेतु के रूप में अवतार लिया।
भगदत्त बाष्कल का अवतार था।
हम जितने भी असुरों की बात करते थे, उन सभी ने पृथ्वी पर राजाओं के रूप में अवतार लिया और उनमें से अधिकतर कौरवों के सहयोगी बन गए।
महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।
द्रोण वृहस्पति के अवतार थे।
अश्वत्थामा महादेव, यम, काम और क्रोध का सम्मिलित अवतार था।
भीष्म पितामह, आप जानते ही होंगे एक वसु के अवतार हैं।
कृपाचार्य रुद्रगाण के अवतार थे।
सत्यकीर्ति मरु्द्गण का अवतार था।
राजा द्रुपद, कृतवर्मा और राजा विराट मरुद्गण के अवतार थे।
धृतराष्ट्र हंस नामक एक गंधर्व के अवतार थे।
दुर्योधन कलि का अवतार था।
दुर्योधन के भाई राक्षसों के अवतार थे।
आप जानते हैं कि पांडव क्रमशः यमराज, वायु, इंद्र और अश्विनी कुमार के अवतार हैं।
अब इनके जन्म के बारे में देखते हैं।
कुंती ने ऋषि दुर्वासा से प्राप्त मंत्र की शक्ति से धर्मराज, वायु और इंद्र का आह्वान किया।
लेकिन इससे पहले भी, पांडु से विवाह करने से पहले कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया था।
सूर्य ने कुंती के गर्भ से कर्ण के रूप में अवतार लिया।
लेकिन कुंती डर गई।
उसने बच्चे को एक पेटी में रखकर, उसे एक नदी में छोड़कर चली गई।
वह पेटी नदी में बहती हुई चली गयी
अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उस पेटी को देखा और उसे नदी से बाहर निकाला।
अधिरथ का जन्म सूत जाति से हुआ था।
सूत क्षत्रियों से नीचे और वैश्यों के ऊपर की जाति है।
वे धृतराष्ट्र के मित्र और सारथी थे।
बच्चे को उन्होंने गोद लिया और उसका नाम वसुषेण रखा गया।
यही है कर्ण।
जन्म के समय से ही कर्ण के शरीर पर कवच और कान के कुण्डल थे।
वे इन की शक्ति से अजेय थे।
कर्ण का बड़ा हृदय था।
अगर प्रार्थना करते समय कोई कुछ भी मांगता है, तो वे उसे देते थे।
कर्ण और अर्जुन चिर प्रतिद्वंद्वी होनेवाले थे।
इन्द्र अपने पुत्र अर्जुन की सफलता चाहते थे।
इसलिए इंद्र ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और कर्ण के पास जाकर कवच और कुंनेडल मांगे।
कर्ण ने बिना किसी संकोच के उन्हें कवच और कुण्डल दे दिया।
इंद्र ने कर्ण को एक शक्ति, एक भाला दिया और कहा कि जिस किसी पर भी आप इस का प्रयोग करेंगे वह जो भी हो देवता, असुर, गंधर्व या मानव उसकी अवश्य मृत्यु होगी।
कर्ण दुर्योधन का मित्र, सलाहकार और सहयोगी बन गया।
अभिमन्यु चन्द्र देव के पुत्र का अवतार था।
उसे धरती पर भेजते समय, चंद्र ने एक शर्त रखी थी कि उसे १६ साल के अन्दर ही लोट आना है।
इसलिए १६ साल की उम्र में अभिमन्यु का निधन हो गया।
धृष्टद्युम्न अग्निदेव का अवतार था।
द्रौपदी के पुत्र विश्वेदेवों के अवतार थे।
शूरसेन कृष्ण के पितामह थे।
कुन्तीभोज राजा उग्रसेन का चचेरा भाई था।
शूरसेन ने कुन्तीभोज को वचन दिया था कि उन्हें अपना अपना पहला बच्चा देगा।
शूरसेन की पुत्री हुई और वादे के अनुसार शूरसेन ने उसे कुंतीभोज को दे दिया।
वह कुंतीभोज की पुत्री थी पांडवों की माता कुंती।
श्रीमन नारायण ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया।
आदिशेष ने बलदेव के रूप में अवतार लिया।
प्रद्युम्न सनतकुमार का अवतार था।
लक्ष्मी देवी ने रुक्मिणी देवी के रूप में अवतार लिया।
अप्सराओं ने कृष्ण की १६००० पत्नियों के रूप में अवतार लिया।
शची देवी ने द्रौपदी के रूप मं अवतार लिया
सिद्धि और धृति नामक दो देवी हैं।
सिद्धि ने कुंती और धृति ने माद्री के रूप में अवतार लिया।
मति देवी ने गान्धारी के रूप में अवतार लिया।
महाभारत में कहा गया है कि इन सब के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही आप लंबे जीवन और समृद्धि पा लेंगे।
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