काशी की परिक्रमा

काशी की वृहद चौरासी कोस परिक्रमा, दर्शन, पूजन.पैदल - यात्रा


 

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विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ने से क्या होता है?

विष्णु सहस्रनाम की फलश्रुति के अनुसार विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ने से ज्ञान, विजय, धन और सुख की प्राप्ति होती है। धार्मिक लोगों की धर्म में रुचि बढती है। धन चाहनेवाले को धन का लाभ होता है। संतान की प्राप्ति होती है। सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

रेवती नक्षत्र का उपचार और उपाय क्या है?

जन्म से बारहवां दिन या छः महीने के बाद रेवती नक्षत्र गंडांत शांति कर सकते हैं। संकल्प- ममाऽस्य शिशोः रेवत्यश्विनीसन्ध्यात्मकगंडांतजनन सूचितसर्वारिष्टनिरसनद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं नक्षत्रगंडांतशान्तिं करिष्ये। कांस्य पात्र में दूध भरकर उसके ऊपर शंख और चन्द्र प्रतिमा स्थापित किया जाता है और विधिवत पुजा की जाती है। १००० बार ओंकार का जाप होता है। एक कलश में बृहस्पति की प्रतिमा में वागीश्वर का आवाहन और पूजन होता है। चार कलशों में जल भरकर उनमें क्रमेण कुंकुंम, चन्दन, कुष्ठ और गोरोचन मिलाकर वरुण का आवाहन और पूजन होता है। नवग्रहों का आवाहन करके ग्रहमख किया जाता है। पूजा हो जाने पर सहस्राक्षेण.. इस ऋचा से और अन्य मंत्रों से शिशु का अभिषेक करके दक्षिणा, दान इत्यादि किया जाता है।

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भोजन से पहले अन्न का जल से जो संस्कार करते हैं, इसे क्या कहते हैं?

मेरे प्यारे काशीवासियों आपके हाथ में काशी की वृहद् चौरासी कोस यात्रा की पुस्तक है । पुस्तक लिखने में प्रेरणास्त्रोत काशी के वृहद् ‘चौरासी कोस की परिक्रमा करके बड़े गुरु एवं शंकर गुरु और मोहन लाल दीक्षित महामृत्युञ्जय मंदिर के महन्त जी आकर बोले कि चौरासी कोस यात्रा का रास्ता जगह-जगह बन्द हो गया है और मन्दिर भी प्रायः लुप्त हो गये हैं। आप चौरासी कोस के मार्ग का मन्दिर, पड़ाव का जीर्णोद्धार कराइए और पुस्तक लिखिए ।
मेरी काशी क्षेत्र - संन्यास के संकल्प की २२ वर्ष की अवधि पूरी हो गयी थी। अक्षय तृतीया के दिन काशी क्षेत्र - संन्यास का समापन करके काशी विश्वनाथ जी के दर्शन, पूजन कर चौरासी कोस की पुस्तक लिखने के लिए प्रार्थना करके गुरुजी का ध्यान कर अपने इष्टदेव का आराधना करने लगे। प्रातः ३ बजे स्नान करके पद्मासन में बैठकर इष्टदेव की आराधना कर रहे थे, उसी समय इष्टदेव बोले चौरासी कोस की यात्रा करो और पुस्तक लिखो। इष्टदेव की आज्ञा पाकर बैशाख शुक्ल पक्ष दशमी तिथि के दिन टाटा सूमो गाड़ी लेकर चौरासी कोस का रास्ता और मन्दिर पड़ाव के दर्शन करने के लिए गया। परन्तु नक्शे के आधार पर इस समय सड़क नहीं बनी है। पुराने रास्ते कहीं-कहीं एक किलोमीटर कहीं दो किलोमीटर आगे-पीछे और किसी जगह पर तीन किलोमीटर है। सड़क गाँव-गाँव से घुमाकर बनी है। मन्दिर एवं पड़ाव स्थल जीर्ण हो गये थे। मार्ग के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया। जो मूर्ति लुप्त थे उनको स्थापित किया गया। चौरासी कोस की परिक्रमा अनादि काल से चल रही है और प्रलय और
काल तक चलती रहेगी। पुस्तक बाजार में न मिलने के कारण प्रचार न होने से चौरासी कोस की यात्रा शिथिल हो गयी थी । काशी की चौरासी कोस की परिक्रमा जैसी नैमिषारण्य में चौरासी कोस की 'यात्रा है वैसे ही काशी की चौरासी कोस की यात्रा है। पुस्तक के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के लिए काशी के तीनों विश्वविद्यालयों
के पुस्तकालय में गये और छोटे पुस्तकालय में एवं पुराने दुकान में चौरासी कोस के मन्दिर एवं पड़ाव का इतिहास मिला। उन्हीं पुस्तकों के आधार पर एवं स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और विष्णुपुराण से वर्णित तथ्यों के आधार पर सम्पूर्ण पुस्तक लिखी गयी।
सूचना- चुनार घाट में हरिहरपुर में बरुआँ घाट में पक्का पुल बन रहा है जो ०१-०२-२०१२ में बनकर तैयार हो जायेगा। उस दिन से काशी की चौरासी कोस की यात्रा बारहों महीना चलने लगेगी। वेद, पुराण एवं काशी के साहित्य से और वर्तमान में छपे हुए पुस्तक से काशी की वृहद् चौरासी कोस परिक्रमा यात्रा का प्रमाण संकलन करके शिवप्रसाद पाण्डेय जी को पाण्डुलिपि प्रूफ जाँचकर शुद्ध करने के लिए दिया गया था। उनकी अकस्मात् गाँव में हार्टफेल से मृत्यु हे! गयी एवं पाण्डुलिपि आज तक नहीं मिली। दूसरे संस्करण में जो शेष प्रमाण है वह वेद-पुराण, उपनिषद् आदि से संकलन करके प्रकाशित कराया जायेगा।
०१-०२-२००७ में चौरासी कोश यात्रा, मार्ग, पड़ाव मन्दिर, कुण्ड लिखकर पाँच हजार पर्चा छपवाकर काशी और चौरासी कोस मार्ग के पड़ाव में वितरण करके दीवाल में चिपकाया गया था और ०१-०२-२००८ में एक छोटी चौरासी कोस की पाँच हजार पुस्तक छपवाकर वितरण की गयी थी।
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रतिवर्ष परिक्रमा यात्रा काशी विश्वनाथ जी आदि के दर्शन करके ज्ञानवापी में संकल्प लेकर के प्रारम्भ होगी। विगत वर्ष १५ फरवरी २०१० को ज्ञानवापी से प्रातः ८ बजे यात्रा प्रारम्भ हुई। चौरासी कोस की यात्रा करने के लिए जिज्ञासु भक्त शामिल होकर मनोरथ पूर्ण किये। उस समय में यात्रा करने वालों को अनेक चमत्कार हो गये। काशी के चौरासी कोश की परिक्रमा, मार्ग, मन्दिर, पड़ाव आदि का जीर्णोद्धार करने व पुस्तक लिखने में हजारों भगवान के भक्तों ने तन-मन-धन से सहयोग दिये हैं उनका नाम सन् १६-०२-२००९ई० में छपी हुई चौरासी कोस परिक्रमा महात्म्य नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है।
वर्तमान में स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी परिपूर्णानन्द सरस्वती, सच्चिदानन्द सरस्वती, स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती, धर्मेश्वरानन्द सरस्वती, दीन दयालु व्यास, शंकर देव चैतन्य ब्रह्मचारी, बटुक देव चैतन्य ब्रह्मचारी, ज्ञानेश्वर चैतन्य ब्रह्मचारी, विश्वेश्वरानन्द ब्रह्मचारी, योगेश्वरानन्द ब्रह्मचारी, शास्त्रार्थ महारथी दिवाकर मिश्र 'शास्त्री', जीतन पाण्डेय, पं० जगदीश मिश्र एवं पवन ब्रह्मचारी आदि चौरासी कोस की परिक्रमा, दर्शन-पूजन यात्रा की सफलता के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं।
पुस्तक प्रकाशित करने में, जो तन-मन-धन से सहयोग करना चाहते हैं, उन भक्तों का नाम श्री विश्वनाथ नारायन पालन्दे जी, नन्द किशोर सुलतानिया जी, चम्पालाल सरवरी, कृष्ण कुमार खेमका जी, पेपर स्टोर कर्णघण्टा, लक्ष्मी नरायन अवस्थी जी, आशीष सिंह पत्रकार, आशीष शुक्ला, पवन पाण्डे, इंजीनियर अनिल पाण्डे, रूंगटा जी, उमाशंकर गुप्ता, बलराम मिश्रा, डॉ० ए०के० देव (वरिष्ठ चिकित्सक), अशोक तिवारी (वकील), चन्द्रभूषणघर द्विवेदी (भू०पू० कमिश्नर), मोहनलाल दीक्षित, मदनकिशोर श्रीवास्तव (स०अधिकारी), चण्डी प्रसाद तिवारी, अभय तिवारी शास्त्री एवं श्री अग्रवाल आदि हैं।

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