एक श्लोकी शंकर दिग्विजय स्तोत्र

आर्याम्बाजठरे जनिर्द्विजसतीदारिद्र्यनिर्मूलनं
सन्यासाश्रयणं गुरूपसदनं श्रीमण्डनादेर्जयः।
शिष्यौघग्रहणं सुभाष्यरचनं सर्वज्ञपीठाश्रयः
पीठानां रचनेति सङ्ग्रहमयी सैषा कथा शाङ्करी।।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

15.9K

Comments Hindi

4izdc
वेदधारा की समाज के प्रति सेवा सराहनीय है 🌟🙏🙏 - दीपांश पाल

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

यह वेबसाइट अत्यंत शिक्षाप्रद है।📓 -नील कश्यप

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

वेदधारा के माध्यम से हिंदू धर्म के भविष्य को संरक्षित करने के लिए आपका समर्पण वास्तव में सराहनीय है -अभिषेक सोलंकी

Read more comments

Other stotras

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |