हरिद्वार में अमृत की बूंदें गिरी हैं

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हरिद्वार का रहस्य,  यहां के पवित्र घाटों और मंदिरों का इतिहास, हरिद्वार जाने के फायदे


 

हरिद्वार दिल्ली से पूर्वोत्तर में २६३ कि.मी. की दूरी पर स्थित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

हिमालय से उतरने के बाद गंगा जी समतल में यहीं प्रवेश करती है।

छोटे चारधाम की तीर्थयात्रा के लिए हरिद्वार ही प्रवेश द्वार है।

हरिद्वार को हरद्वार भी कहते हैं क्योंकि उत्तराखण्ड से हरि और हर मंदिरों दोनों के लिए यहीं गंगा जी में स्नान करके लोग जाते हैं।  

हरिद्वार सप्त पुरियों में से एक है।

मायापुरी, हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर और भीमगोड़ा - इन पाँच स्थानों को मिलाकर हरिद्वार कहते हैं।

 

हरिद्वार में कितने तीर्थ स्थल है?

हरिद्वार में पाँच प्रधान तीर्थ स्थल हैं - 

  • हरि की पौड़ी। 
  • कुशावर्त घाट - यहां अहल्याबाई ने अपना सारा धन गरीबों में बाँट दिया था। 
  • बिल्वकेश्वर
  • नील पर्वत - चंडी मंदिर
  • दक्षेश्वर महादेव, कनखल

 

हरिद्वार का रहस्य क्या है?

हरिद्वार उन चार महत्त्वपूर्ण स्थानों में से एक है जहां अमृत की बूंदें गिरी हैं। मंथन के द्वारा जब समुद्र में से अमृत कुंभ निकला तो वह देवों का हाथ आया। असुरों ने बारह दिनों तक उनका पीछा किया। इस बीच देवों ने स्वर्ग के आठ और भूमि के चार स्थानों में अमृत कुंभ को रखा था। इन स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गयी थी। हरिद्वार में स्नान मोक्षदायक है।  अन्य तीन स्थान प्रयाग, नासिक, और उज्जैन हैं। स्वर्ग से गंगा जी के अवतरण की घटना के साथ भी हरिद्वार जुडा हुआ है। इन चारों स्थानों कुंभ मेला लगता है।

 

हरिद्वार महाभारत में

  • यहां शान्तनु के पिता प्रतीप ने तपस्या की थी।
  • भरद्वाज मुनि कुछ समय के लिए यहां रहे थे।
  • अर्जुन ने यहां की तीर्थयात्रा की थी।
  • एकाग्र चित्त होकर यहां के कोटितीर्थ में स्नान करने से पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है।
  • लोपामुद्रा के साथ अगस्त्य ने यहां तपस्या की थी।
  • भगवान शिव को जयद्रथ ने यहां प्रसन्न किया था।
  • दक्ष ने हरिद्वार के पास कनखल में यज्ञ किया था।
  • यहां के तीर्थों में स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  • यहां जब भीष्म जी ने अपने श्राद्ध किया था तो पिण्ड को स्वीकारने जल से शान्तनु का हाथ प्रकट हुआ था।
  • धृतराष्ट्र, गान्धारी, और कुन्ती यहां के वन में दग्ध हुए थे।
  • युधिष्ठिर ने यहां उनके लिए श्राद्ध किया था।
  • यहां एक रात ठहरने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।
  • सप्तगंगा, त्रिगंगा, शक्रावर्त और कनखल में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

 

हरिद्वार के प्रसिद्ध घाट

हतिद्वार में कई प्रसिद्ध घाट और तीर्थ स्थल हैं।

हरि की पौड़ी

यह हरिद्वार का अत्यंत प्राचीन स्नान घाट है।

यहां भगवान विष्णु के पैरों की छाप पत्थर के दीवार पर अंकित है।

यहां राजा श्वेत ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था।

इसलिए इस स्थान को ब्रह्मकुंड भी कहते हैं।

राजा भर्तृहरि ने भी यहां तपस्या की थी।

उनके भाई राजा विक्रमादित्य ने यहां एक कुंड और सीढ़ियाँ बनवायी थी।

यहां के बडे कुंड में एक ओर से गंगा जी की धारा आती है और दूसरी ओर से निकल जाती है।

यहां हरिचरण मंदिर राजा मानसिंह की छतरी, साक्षीश्वर, गंगाधर महादेव और गंगा जी का मंदिर प्रसिद्ध हैं।

गऊघाट

यहां स्नान करने से गोहत्या का पाप छूट जाता है।

पहले यहां पर पाप छूटने के लिए यात्रियों को जूते से मारने के बाद ही स्नान कराते थे।

कुशावर्त घाट

भगवान दत्तात्रेय एक पैर पर खडे होकर यहां तपस्या कर रहे थे।

उन्होंने अपने कुश, कमण्डलु, दण्ड और चीर घाट पर रखे थे।

जब दत्तात्रेय जी समाधि में थे तो गंगा जी का एक धार आकर उन सामग्रियों को बहा लेने लगी।

दत्तात्रेय जी की तपस्या के प्रभाव से वह धार वहीं एक आवर्त (भँवर) बनकर घूमने लगी।

जब दत्तात्रेय जी समाधि से बाहर आये तो उन्होंने आवर्त को और उसमें घूम रही अपनी सामग्रियों को देखा।

भीगी हुई सामग्रियों को देखकर वे क्रोधित हो गये और गंगा जी को शाप से भस्म करने गये।

उस समय ब्रह्मादि देवताओं ने आकर उन्हें रोका।

दत्तात्रेय जी ने कहा, ’यहां पर मेरे कुश आदियों को गंगा ने आवर्त में घुमाया है, इसलिए इस स्थान का नाम कुशावर्त होगा।’

यहां पितरों को पिण्डदान देने से पुनर्जन्म नहीं होगा।

श्रवणनाथ जी का मंदिर

यह कुशावर्त के पास है। श्रवणनाथ जी एक महात्मा थे। यहां पर पंचमुखी महादेव की मूर्ति है।

रामघाट

यहां वल्लभ सम्प्रदाय के महाप्रभु जी की बैठक है।

विष्णुघाट

यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी।

मायादेवी

विष्णुघाट के पास यह पुरातन मंदिर है।

त्रिमस्तकी दुर्गा देवी के एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में नरमुण्ड है।

इसके अलावा अष्टभुजी शिव और भैरव जी की मूर्तियां भी हैं।

गणेशघाट

यह स्नान के लिए विशेष स्थान है।

यहां गणेश जी की बडी मूर्ति है।

नारायणी शिला

यहां नारायण बलि और पिण्डदान की विधियां होती हैं।

नीलधारा

यह नील पर्वत के नीचे की गंगा का धार है।

यहां भोलेनाथ का गण नील ने तपस्या की थी, इसलिए इस पर्वत का नाम नीलपर्वत पडा।

यहां का स्नान और उसके बाद नीलेश्वर महादेव का दर्शन महत्त्वपूर्ण है।

नील ने ही नीलेश्वर महादेव की प्रतिष्ठा की थी।

काली मंदिर

चंडी देवी के मंदिर के लिए चढ़ते समय रास्ते में कौलाचार का यह मंदिर है।

चंडी देवी

यह मंदिर नीलपर्वत के शिखर पर है।

देवी के दर्शन के लिए रात में सिंह आते हैं।

चढ़ने के लिए दो मार्ग हैं - एक कठिन और एक सुगम।

कठिन मार्ग से चढ़कर सुगम मार्ग से उतरना चाहिए।

इससे गौरीशंकर, नीलेश्वर और नागेश्वर का दर्शन और नीलपर्वत की परिक्रमा हो जाती है।

अञ्जनी मंदिर

हनुमान जी की माता का मंदिर की दूसरी ओर है।

बिल्वकेश्वर

बिल्व नामक पर्वत पर बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर स्थित है।

मंदिर के अंदर-बाहर दो मूर्तियां हैं।

पास में ही एक गुफा में देवी की मूर्ति है।

इन दोनों के बीच शिवधारा नामक एक नदी है।

इस नदी में स्नान करने से मनुष्य शिव के समान हो जाता है।

जिस बेल के पेड के नीचे बिल्वकेश्वर विराजमान हैं, उसी के पास अश्वतर नामक नाग कभी मनुष्य के रूप में और कभी मृग के रूप में आता है।

यह नाग उस बिल्व वृक्ष के मार्ग से पाताल लोक भी आता जाता रहता है।

दक्षेश्वर महादेव, कनखल

इस स्थान पर ही दक्ष प्रजापति ने याग किया था।

अपने पति महादेव का इसमें हुए अपमान के कारण सती देवी ने यागाग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिया था।

क्रोध में महादेव और उनके गणों ने याग का विनाश किया।

बाद में यहां दक्षेश्वर महादेव का मंदिर बना।

इसके पा सतीकुंड भी है जहां माता सती ने प्राण त्याग दिया था।

यह पंचतीर्थों में से एक है।

दक्षेश्वर महादेव के दर्शन के बिना हरिद्वार की तीर्थयात्रा निष्फल हो जाती है।

कपिल स्थान

यहां पर सगर के ६०००० पुत्रों को गंगा जी ने मुक्ति दी थी।

भीमगोड़ा 

यहां के सरोवर को भीम जी ने अपने घुटनों से खोदा था।

चौबीस अवतार मंदिर

भीमगोड़े के पास इस मंदिर में विष्णु जी के चौबीसों अवतारों की मूर्तियां हैं।

सप्तऋषि आश्रम एवं सप्तधारा

यह हरिद्वार से पांच कि.मी. की दूरी पर है।

यहां गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, अत्रि, जमदग्नि, वशिष्ठ, और कश्यप महर्षि अपनी अपनी कुटियों में तपस्या करते थे।

उनके लिए गंगा जी साथ धाराओं में विभक्त होकर उनकी अपनी अपनी कुटियों के सामने से बहने लगी।

यहां सरस्वती, लक्ष्मी, पंचमुखी हनुमान, राधाकृष्ण, सीताराम और गणेश मंदिर और एक वेद गुरुकुल हैं।

सत्यनारायण मंदिर

यहां का स्नान और दर्शन महत्त्वपूर्ण हैं।

वीरभद्रेश्वर

सत्यनारायण मंदिर से पाँच मील आगे वीरभद्रेश्वर का मंदिर है।

 

हरिद्वार के मंदिरों की विशेषताएं

  • यहां के मंदिरों सोने-चाँदी के गहनों से अलंकार नहीं होता।
  • मूर्तियों पर चमकदार कपडे और नकली मणियां पहनाये जाते हैं।
  • नारियल फोडकर पूजा नहीं होती है।
  • केले जैसे फलों का भोग नहीं चढाते हैं।
  • कपूर से नहीं, घी की बत्ती से आरती होती है।

 

हरिद्वार में कितने शक्तिपीठ है?

चंडी देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर - ये देवी के सिद्ध पीठ माने जाते हैं।

 

हरिद्वार का पुराना नाम क्या है?

मायापुरी। हरिद्वार कपिलस्थान, मायाक्षेत्र, कुशावर्त और गंगाद्वार नामों से भी प्रसिद्ध है।

 

हरिद्वार में लोग क्यों जाते हैं?

हरिद्वार - श्रद्धालु जन यहां के पवित्र कुंडों में स्नान और भव्य मंदिरों में दर्शन द्वारा अध्यात्मिक उन्नति, मन की शांति, स्वास्थ्य, ऐश्वर्य, देवताओं और पितरों का आशीर्वाद, और मोक्ष की इच्छा रखते हुए आते हैं।

 

हरिद्वार घूमने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

अप्रैल से नवंबर तक हरिद्वार का मौसम अत्यंत सुहावना होता है।

 

हरिद्वार से केदारनाथ कैसे जाए?

केदारनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा तरीका है रोड और हेलीकॉप्टर का उपयोग करना। रोड यात्रा के लिए, आपको हरिद्वार से गौरीकुंड जाना होगा और फिर वहां से आपको त्रियुगीनारायण मंदिर तक जाना होगा। हेलीकॉप्टर सेवाएं भी उपलब्ध हैं जो हरिद्वार से केदारनाथ जाने में आसानी प्रदान करती हैं।

 

दिल्ली से हरिद्वार कैसे जाएं?

हरिद्वार जाने के लिए आप दिल्ली से बस, ट्रेन, कार या टैक्सी का उपयोग कर सकते हैं। सबसे आसान तरीका है ट्रेन; नई दिल्ली से हरिद्वार के लिए एक्सप्रेस ट्रेन उपलब्ध है।

 

 

 

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हरिद्वार में कौन सी माताजी का मंदिर है?

हरिद्वार में माताजी के तीन मंदिर प्रसिद्ध हैं - चंडी देवी मंदिर, माया देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर।

सर्पों की देवी कौन है?

मनसा देवी।

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हरि की पौडी का अर्थ क्या है?
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