Special - Kubera Homa - 20th, September

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चौरासी वैष्णव की वार्ता

vallabhacharya and srinathji

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वेदधारा के माध्यम से मिले सकारात्मकता और विकास के लिए आभारी हूँ। -Varsha Choudhry

वेदधारा की वजह से हमारी संस्कृति फल-फूल रही है 🌸 -हंसिका

आप जो अच्छा काम कर रहे हैं उसे जानकर बहुत खुशी हुई -राजेश कुमार अग्रवाल

वेदधारा के प्रयासों के लिए दिल से धन्यवाद 💖 -Siddharth Bodke

यह वेबसाइट बहुत ही रोचक और जानकारी से भरपूर है।🙏🙏 -समीर यादव

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क्या बलदेव जी ने भीमसेन को प्रशिक्षण दिया था?

द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण पूरा होने के एक साल बाद, भीमसेन ने तलवार युद्ध, गदा युद्ध और रथ युद्ध में बलदेव जी से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

दो बार खेली गई बाज़ी

पांडवों और कौरवों के बीच पासों का खेल दुर्योधन द्वारा आयोजित किया गया था, जो राजसूय यज्ञ के बाद पांडवों की शक्ति से ईर्ष्या करता था। पहला खेल, जो हस्तिनापुर में शकुनि की कपटी मदद से खेला गया, उसमें युधिष्ठिर ने अपना राज्य, धन, भाई और द्रौपदी सब कुछ खो दिया। द्रौपदी के अपमान के बाद, धृतराष्ट्र ने हस्तक्षेप किया और पांडवों को उनका धन और स्वतंत्रता वापस कर दी। कुछ महीनों बाद, दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को दूसरा खेल आयोजित करने के लिए मना लिया। इस समय के दौरान, कौरवों ने यह सुनिश्चित करने के लिए षड्यंत्र रचा कि गंभीर परिणाम हों। दूसरे खेल की शर्तों के अनुसार, हारने वाले को 13 वर्षों के लिए वनवास जाना था, जिसमें अंतिम वर्ष अज्ञातवास होना था। युधिष्ठिर फिर से हार गए, जिससे पांडवों का वनवास शुरू हुआ। खेलों के बीच के छोटे अंतराल ने तनाव को बढ़ने दिया, जिससे पांडवों और कौरवों के बीच प्रतिद्वंद्विता और बढ़ गई। ये घटनाएँ कुरुक्षेत्र युद्ध के मंच के लिए महत्वपूर्ण थीं, जो कौरवों की कपट और पांडवों की दृढ़ता को दर्शाती हैं। लगातार हार और द्रौपदी के अपमान ने पांडवों की न्याय और बदले की इच्छा को बढ़ावा दिया, जो अंततः महाभारत में चित्रित महान युद्ध की ओर ले गया।

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लक्ष्मणजी को बचाने हनुमानजी जो ओषधि लेकर आये थे, उसका नाम क्या है ?

दामोदरदास हरसानीकी वार्ता

एक समय श्रीआचार्यजी महाप्रभू पृथ्वी परिक्रमाकौं पधारे हुते तब तहां दामोदरदास श्रीआचार्यजी महाप्रभून के साथ है सो श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप दामोदरदासों अपने श्रीमुखसों द्रमला कहते जो यह मार्ग तेरेलिये प्रगट कोनों है सो श्रीआचार्यजी महाप्रभू सो पृथ्वी परिक्रमा करते श्री गोकुल पधारे सो श्री गोकुलमें एक चांतरा श्रीगोविंदघाट ऊपर हुतो तहां श्रीआचार्यजी महाप्रभू आय विश्राम करते ताठोर ऊपर श्रीआचार्यजी महाप्रभूनकी बैठक है और श्रीद्वारकानाथजीको मन्दिर है तहां श्रीआचार्यजी महाप्रभू बैठे हुते ता समय श्रीआचार्यजी महाप्रभूनको महाचिंता उपजी जो श्रीठाकुरजीने तो आज्ञा दीनी है जो तुम जीवनकों ब्रह्मसंबन्ध करावो तब श्रीआचार्यजी। महाप्रभू अपने मन में विचारें जो जीवतो दोषवंत है और श्रीपुरुषोत्तमजीतो गुणनिधान हैं तातें केसे संबन्ध होय तातें चिन्ता उपजी सो अत्यंत आतुर भए तासमय श्रीठाकुरजी आप तत्काल प्रगट होयकें श्रीआचार्यजी महाप्रभूनसों पूंछे जो तुम चिंता आतुर क्यों हों तब श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप कहै जो जीवको स्वरूपतौ तुम जानतही हो दोषवंत है सो तुमसों संबन्ध केसे होय तब श्रीठाकुररजी आप कहैं जो तुम जीवनकों ब्रह्मसंबन्ध करावोगे तिनको हौं अंगीकार करूंगो तुम जीवनकौं नाम देउगे तिनके सकल दोष निवर्त होयगे ये बातें श्रावणशुदि ११ के दिन अर्द्धरात्रिकौं भई प्रातकाल पवित्राद्वादशी हुती ताते पवित्रा सूतको करिराख्यो हुतो सो पवित्रा श्रीपूररुषोत्तमजीकौं पहरायौ मिश्री भोग धरी ता समयके ये अक्षरहुते ताकों श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप सिद्धांतरहस्य ग्रंथ कीये हैं। सो श्लोक ॥ श्रावणस्यामले पक्षे एकादश्यां महानिशि।

साक्षाद्भगवताप्रोक्तमेतदक्षरमुच्यते ॥ १॥ 

ता समय श्रीआचार्यजी महाप्रभुनने पूछो जो दमलाते कुछ सुन्या तब दामोदरदासने बीनती कीनी जो महाराज श्रीठाकुरजीके वचन सुनतौसही परन्तु कुछ समझो नहीं तब श्रीआचार्यजी महाप्रभूननें कही जो मोको श्रीठाकुरजीने आज्ञा कीनी है जो तुम जीवनकौं ब्रह्मसंबंध करावोगे तिनकौं हों अंगिकार करूंगो तिनके सकल दोष निवृत्त होयगे ताते ब्रह्मसंबंध अवश्य करनो ॥ प्रसंग ॥१॥

बहुर श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने श्रीठाकरजीके पास यह माग्यो जो मेरे आगे दामोदरदासकी देह न छूटे और श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने दामोदरदास मों कछू गोप्य न राखते

और श्रीआचार्यजी महाप्रभू श्रीभागवत अहर्निस देखते कथा कहते और मार्गको सिद्धांत भगवतलीला रहस्य श्रीआचार्यजीमहाप्रभू आप दामोदरदासके हृदयमें स्थापन कीयो । ॥ प्रसंग ॥ २॥

और एकसमय दामोदरदास और श्रीगुसाईजी एकान्वमें बैठे हुते तब श्रीगुसाईजीने दामोदरदाससौ पूंछौ जो तुम श्रीआचार्यजी महाप्रभूनको कहाकार जानतही तब दामोदरदासने कही जो हम तौ श्रीआचार्यजी महापभूनको जगदीश जो श्रीठाकुरजी तिनहूंते अधिककारि जानत हैं तब श्रीगुसांईजी दामोदरदाससोकहैं जो तुम ऐसे क्यों कहत हो जो

श्रीठाकुरजीते श्रीआचार्यजी बडे हैं तब दामोदरदासनें कही जो महाराज दान बडोके दाता बडौ काहूके पास धन बहुत

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