जब संवेदी अंग वस्तुओं के संपर्क में आते हैं तो गर्मी और ठंड का अनुभव होता है, लेकिन उनका हमेशा आदि और अंत भी होते हैं। सुख और दुख भी क्षणिक हैं। बहादुर बनो और उनका सहन करो। भगवद्गीता २.१४

Adhyay 2 Shlok 14

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