देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥  बचपन, जवानी और बुढ़ापे में शरीर एक दूसरे से काफी अलग दिखता है।  लेकिन इन तीनों अवस्थाओं में शरीर में आत्मा एक ही होती है। उसी तरह, मृत्यु के बाद, आत्मा को एक दूसरा शरीर प्राप्त होता है। बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु की चिंता नहीं करता। भगवद्गीता २.१३

Adhyay 2 Shlok 13

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