श्रीकृष्ण और बलराम जी के चारों तरफ घंटी और घुंघरू की आवाज निकालती हुई गाय ही गाय हैं। गले में सोने की मालाएं, सींगों पर सोने का आवरण और मणि, पूंछों में नवरत्न का हार। वे सब बार बार उन दोनों के सुन्दर चेहरों को देखती हैं।
फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये'। उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपरकी ओर होता है, अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपरकी ओर ही रखना चाहिये। इनका मुख नीचेकी ओर न करे । दूर्वा एवं तुलसीदलको अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये। इनसे भिन्न पत्तोंको ऊपर मुखकर या नीचे मुखकर दोनों ही प्रकारसे चढ़ाया जा सकता है । दाहिने हाथ करतलको उतान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठेकी सहायतासे फूल चढ़ाना चाहिये।
ॐ ह्रां सीतायै नमः । ॐ ह्रीं रमायै नमः । ॐ ह्रूं जनकजायै नमः । ॐ ह्रैम् अवनिजायै नमः । ॐ ह्रौं पद्माक्षसुतायै नमः । ॐ ह्रः मातुलिङ्ग्यै नमः ॥....
ॐ ह्रां सीतायै नमः । ॐ ह्रीं रमायै नमः । ॐ ह्रूं जनकजायै नमः । ॐ ह्रैम् अवनिजायै नमः । ॐ ह्रौं पद्माक्षसुतायै नमः । ॐ ह्रः मातुलिङ्ग्यै नमः ॥