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स्त्रीधन के बारे में वेदों में कहां उल्लेख है?

ऋग्वेद मण्डल १०. सूक्त ८५ में स्त्रीधन का उल्लेख है। वेद में स्त्रीधन के लिए शब्द है- वहतु। इस सूक्त में सूर्यदेव का अपनी पुत्री को वहतु के साथ विदा करने का उल्लेख है।

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सूर्य का गुरु देवगुरु बृहस्पति हैं।

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रामेश्वरम में भगवान विष्णु को सेतुमाधव कहते हैं। क्या आप जानना चाहते हैं कि उन्हें ऐसा क्यों कहते हैं? दक्षिण भारत के पांडिय और चोळ राजवंशों में कई धर्मी, पवित्र और कुशल शासकों ने शासन किया है। वे अपने बच्चों की तरह अपनी प्....

रामेश्वरम में भगवान विष्णु को सेतुमाधव कहते हैं।
क्या आप जानना चाहते हैं कि उन्हें ऐसा क्यों कहते हैं?
दक्षिण भारत के पांडिय और चोळ राजवंशों में कई धर्मी, पवित्र और कुशल शासकों ने शासन किया है।
वे अपने बच्चों की तरह अपनी प्रजा की देखभाल करते थे।
प्रजा के लिए भी उनका राजा किसी दृश्यमान ईश्वर से कम नहीं था।
मदुरै पांड्यों की राजधानी थी।
पांडिय वंश के राजाओं में से एक थे पुण्यनिधि ।
उन्होंने उच्च नैतिकता के साथ एक सरल जीवन व्यतीत किया।
उनके चारों ओर शांति थी: वे स्वयं शांत थे, उनका परिवार शांत था, उनका राज्य और प्रजा शांतिपूर्ण थी।
उनके राज्य में नियमों को जबर्दस्ती लागू करने की जरूरत नहीं थी।
लोगों ने नियमों का पालन स्वयं किया और स्वेच्छा से अपने कर्तव्यों को निभाया।
उनके पास एक सेना थी, केवल अपने लोगों की रक्षा के लिए, दूसरों पर हमला करने के लिए नहीं।
वे नियमित रूप से तीर्थयात्रा करते थे, यज्ञ करते थे और दान - पुण्य करते थे।
उन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों को नाम या प्रसिद्धि हासिल करने के लिए दान नहीं दिया।
उनको सचमुच उनके ऊपर सहानुभूति और करुणा थी।
उन्होंने भगवान की आराधना कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए की।
उनकी कोई इच्छा नहीं थी, कोई सांसारिक इच्छा नहीं थी, स्वर्ग की भी इच्छा नहीं थी।
उन्होंने अपने राज्य पर शासन किया जैसे कि वे भगवान के सेवक थे और सिर्फ उसकी आज्ञाओं का पालन कर रहे थे।
एक बार पुण्यनिधि रामेश्वरं में कुछ समय रहने के लिए गये।
उन्होंने अपने बेटे को प्रशासन सौंप दिया और अपने अनुचर और पत्नी के साथ चले गए।
वे रामेश्वरम में बहुत दिनों तक रहे।
कुछ पाने के लिए नहीं।
वे भगवान श्रीरामराम की कहानी से जुड़े स्थानों का दौरा करते थे, उन स्थानों पर बैठकर स्मरण करते थे कि वहां क्या हुआ था।
राजा ने ऐसा करने में बड़ी खुशी पाई।
उस यात्रा के दौरान, पुण्यनिधि ने वहां एक यज्ञ किया।
यज्ञ के अंत में, वे स्नान करने के लिए धनुष्कोटि गए।
लौटते वक्त उन्होंने एक बहुत सुंदर लड़की को देखा।
वे तुरन्त ही उसके प्रति पिता का स्नेह महसूस करने लगे।
पुण्यनिधि ने उससे पूछा कि वह कौन थी, उसके माता - पिता कौन थे।
उसने बताया कि वह अनाथ थी।
उसने कहा कि वह उनकी बेटी के रूप में उनके साथ रहना चाहती थी।
लेकिन एक शर्त पर - अगर कोई उसे छूता है या उसकी इच्छा के खिलाफ उसका हाथ पकड़ता है, तो राजा को वादा करना होगा कि वे ऐसे व्यक्ति को दंड देंगे।
पुण्यनिधि को समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है।
वह लडकी वास्तव में लक्ष्मी देवी थी।
वह भगवान की लीला थी।
पुण्यनिधि की परीक्षा लेने और उसे और भी बेहतर बनाने के लिए, दिव्य दंपती ने ऐसा कार्य किया जैसे कि उनके बीच लड़ाई हो गयी हो और यहां लक्ष्मी देवी राजा के सामने एक लड़की का रूप प्रकट हो गयी।
पुण्यनिधि एक अनाथ लड़की की सेवा करने के लिए दिए गए अवसर के लिए भगवान का आभारी था।
उन्होंने कहा - 'मेरे साथ आओ।
'मेरा सिर्फ एक बेटा है।'
'मेरी बेटी बनकर मेरे साथ रहो '
'बडी होकर विवाह योग्य उम्र की हो जाने पर आप जो चाहें कर सकती हो।'
पुण्यनिधि की पत्नी भी बेटी पाकर खुश हो गई।
कुछ समय बीत गया।
राजा और उनके दल रामेश्वरं मे ही थे।
एक दिन, लड़की कुछ दोस्तों के साथ बगीचे में खेल रही थी।
एक आदमी अपने कंधे पर पानी से भरा बर्तन लेकर आया।
उसने भस्म पहना हुआ था और उसके हाथ में रुद्राक्ष की माला थी।
जैसे ही लड़की ने इस आदमी को देखा, उसे एहसास हुआ कि वह कौन था।
भगवन छद्मवेश में उसे ढूंढ़ने आया है।
उसने लड़की का हाथ पकड़ लिया और वह जोर - जोर से रोने लगी।
पुण्यनिधि दौड़ता हुआ बगीचे में आये।
'क्या हुआ? क्या हुआ, क्यों रो रही हो ?'
'वह आदमी जो पेड़ के नीचे खड़ा है, उसने ज़बरदस्ती मेरा हाथ पकड़ लिया।'
राजा ने सोचा - मेरे वचन के अनुसार, मुझे उसे दंड देना चाहिए।
लेकिन वे नहीं जानते थे कि वह ुनके प्रिय प्रभु थे जो उसकी परीक्षा लेने आये थे।
उन्होंने सैनिकों से कहा कि वे उसे बांधकर रामनाथ मंदिर के अंदर छोड़ दें।
उस रात सपने में, राजा ने देखा कि वह आदमी खुद भगवान था और लड़की खुद लक्ष्मी देवी थी।
वे उठे और लड़की के पास गये।
लड़की का स्वरूप बदल गया था।
वह बिलकुल उस तरह दिखाई दे रही थी जैसे राजा ने सपने में देखा था।
राजा ने साष्टांग प्रणाम किया।
फिर पुण्यनिधि उस आदमी को देखने के लिए मंदिर गये।
वह भी ठीक उसी तरह दिखाई दे रहा था जैसे राजा ने सपने में देखा था।
पुण्यनिधि बह्गवान के पैरों में गिरकर रोने लगे।
'हे भगवान, यह मैं ने क्या गंभीर अपराध किया है।'
'वे लगभग बेहोश ही हो गये।
लेकिन फिर उन्हें याद आया - भगवान को कौन बाँध सकता है?
माता यशोदा ने एक बार कोशिश की थी, लेकिन फिर देखो क्या हुआ।
यह सिर्फ एक लीला होनी चाहिए।
'कृपया मुझे क्षमा करें।'
'यदि आप मुझे माफ़ नहीं करेंगे तो कोई भी मुझे नहीं बचा सकता।'
'भगवान ने कहा, 'मुझे जंजीरों में जकड़ने के लिएअ बुरा मत मानना।'
'मैं हमेशा अपने भक्तों का कैदी हूं।'
'वे मुझे अपने प्यार और भक्ति से बांध देते हैं।'
'वे मुझे जिस तरह चाहें नियंत्रित कर सकते हैं।'
'मैं इन जंजीरों से बंधा नहीं हूं, मैं तुम्हारे प्यार से बंधा हुआ हूं।'
'तुमने ठीक समझा, जो लड़की तुम्हारे साथ है वह लक्ष्मी है।'
'हम आपकी परीक्षा लेना चाहते थे।'
'हम देखना चाहते थे कि तुम एक अनाथ बच्चे के साथ कैसे व्यवहार करते हो।'
'तुमने उसकी सेवा करके मेरी ही सेवा की है।'
'तुमने मुझे जंजीरों में जकड़कर कुछ भी गलत नहीं किया है; तुमने सिर्फ उससे किया अपना वादा पूरा किया है।'
लक्ष्मी देवी ने कहा - 'तुमने मेरी बहुत अच्छी देखभाल की।'
'मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूँ।'
'मेरी कृपा से तुम बहुत धन प्राप्त करोगे।'
'पृथ्वी पर अपने जीवन के अंत में, तुम हम में विलीन हो जाओगे।'
भगवान ने कहा - 'मैं यह नहीं भूलना चाहता कि इस स्थान पर एक भक्त ने मुझे बांध दिया है।'
'मैं यहां हमेशा के लिए रहूंगा और सेतुमाधव मेरा नाम रहेगा।'
रामेश्वरं राम - सेतु के लिए प्रसिद्ध है।
सेतु का अर्थ क्या है?
सिनोति बध्नाति जलमिति सेतुः
'सेतु पानी को बांधता है।'
'इसी प्रकार मैं भी अपने भक्त से यहां बंधा हुआ हूं।'
'इसलिए मैं सेतुमाधव कहलाऊंगा।'
यह कहकर भगवान और लक्ष्मी देवी अंतर्धान हो गए।
यही है रामेश्वरम के भगवान सेतुमाधव के पीछे की कहानी।

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