हमारा सच्चा इतिहास कहां मिलेगा?

 हमारा सच्चा इतिहास कहां मिलेगा?

हमारा परंपरागत इतिहास ही हमारा वास्तविक इतिहास है।
आर्ष विद्या से और संस्कृत भाषा से वंचित इतिहासकार कभी भारतवर्ष के बारे में जान ही नहीं सकते।
आज जो हमारे पास इतिहास है, उसके अनुसार ऋग्वेद 2000 साल पहले लिखा गया था।

जबकि हर शास्त्र कहता है कि वेद अपौरुषेय हैं, यह परमेश्वर की वाणी है, अनादि है।
वर्तमान कल्प की सृष्टि, जो लगभग 300 करोड़ साल पहले हुई थी, उससे पहले भी वेद थे।
सृष्टि हुई वेद से। ब्रह्माजी को सृष्टि का संकेत मिला वेद से।

300 करोड़ वर्ष वर्तमान कल्प की बात है।
ब्रह्माजी की उम्र है 51 साल।
ब्रह्माजी का हर दिन एक कल्प होता है — एक कल्प दिन, एक कल्प रात।
एक कल्प है 4.32 अरब साल।

अब सोचिए, ऐसे कितने कल्प बीत चुके हैं!
साल में 360 दिन — पचास साल भी पकड़ेंगे तो 18,000 कल्प, यानी 77,760 अरब वर्ष बीत चुके हैं जब से सबसे पहली बार सृष्टि हुई थी।
इससे पहले भी वेद थे।

अब यह कहते हैं कि ऋग्वेद 2000 साल पहले लिखे गए थे।
ऐसे-ऐसे इतिहासकारों ने किसी साजिश को लेकर — चाहे वे अंग्रेजों के हों, उसके बाद के हों, साम्प्रदायिक हों — उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
झूठ तो झूठ है।

ऐसे इतिहास को हम आजकल पढ़ते हैं।
तो फिर भारतवर्ष के सच्चे इतिहास के लिए कहाँ ढूंढ़ा जाए?
इससे पहले यह तो देखते हैं कि 'इतिहास' शब्द का अर्थ क्या है।

'इतिहास' शब्द आपको वेद के अंदर भी मिलेगा।
हमारे ऋषियों, आचार्यों ने किसे इतिहास माना है —
'इतिहासः पुरावृत्तं ऋषिभिः परिकीर्त्यते'।

इतिहास पुरावृत्त है — जो कुछ भी पहले हुआ, उसका वर्णन है इतिहास।
ऋषि-मुनि इसका आदर करते हैं, कीर्तन करते हैं, क्योंकि यह सच है।
हमारे ऋषि-मुनि हमेशा सच के साथ ही रहते हैं।

'इति हैवमासीदिति यः कथ्यते स इतिहासः' —
कोई भी घटना निश्चित रूप से — यह इस प्रकार से ही हुआ था — ऐसे कहने वाला है इतिहास।
अमरकोष में भी यही बताया —
'इतिहासः पुरावृत्तम्, इति हास्तेऽस्मिन्नितिहासः'।

पूर्व में जो घटनाएं घटीं, वह।
यह परंपरा अटूट है, क्योंकि सृष्टि के समय से ही भारतवर्ष में भाषा के साथ संबंध प्रबल रहा है।
इसकी तुलना में अंग्रेजी की उत्पत्ति हुई पाँचवीं शताब्दी में।

देववाणी संस्कृत कम से कम 77,760 अरब वर्षों से है।
बेचारे कर भी क्या सकते हैं — जब भाषा ही नहीं है उनके पास तो करेंगे क्या?
थोड़ा बहुत कल्पना करेंगे, अनुमान करेंगे।

बात सही है कि व्यासजी ने पुराण द्वापर में ही लिखा,
पर उन्होंने क्या कहा — जो पुराण, पुरावृत्त, पुरातन वृत्तांत, जो सैकड़ों-करोड़ों की संख्या में हैं —
मैं उनमें से कुछ चुनकर, जो कलियुग में लोगों का काम आ सके, ऐसे कुछ चुनकर उनका संग्रह कर रहा हूं ग्रंथों के रूप में।

तो हमारे इतिहास और पुराण — किसी की कल्पना नहीं हैं।
इनमें केवल वास्तविक घटनाएं हैं,
जिसके बारे में सृष्टि से लेकर लोग बोलते और सुनते आ रहे हैं।

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