न प्रहृष्यति सम्माने नापमाने च कुप्यति |
न क्रुद्धः परुषं ब्रूयात् स वै साधूत्तमः स्मृतः |
जो अपनी सम्मान करने पर खुश न होता हो और अपनी अपमान करने से क्रोधित न होता हो और क्रोधित होते हुए भी जो किसी को असभ्य बातें न सुनाता हो वह ही साधु संत कहलाता है |
घी, दूध और दही के द्वारा ही यज्ञ किया जा सकता है। गायें अपने दूध-दही से लोगों का पालन पोषण करती हैं। इनके पुत्र खेत में अनाज उत्पन्न करते हैं। भूख और प्यास से पीडित होने पर भी गायें मानवों की भला करती रहती हैं।
भक्ति योग हमें प्रेम, कृतज्ञता और भक्ति से भरे हृदय को विकसित करते हुए, हर चीज में परमात्मा को देखना सिखाता है।
अदृश्य शत्रुओं से रक्षा के लिए मंत्र
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