Rinahara Ganapathy Homa for Relief from Debt - 17, November

Pray for relief from debt by participating in this Homa.

Click here to participate

परिवार सुखी कैसे हो?

वेदों के अनुसार परिवार में सुख और शांति पाने के उपाय


 

Click here to read PDF Book

 

57.7K
8.7K

Comments

Security Code
99580
finger point down
यह वेबसाइट ज्ञान का खजाना है। 🙏🙏🙏🙏🙏 -कीर्ति गुप्ता

Ram Ram -Aashish

अद्वितीय website -श्रेया प्रजापति

आपकी सेवा से सनातन धर्म का भविष्य उज्ज्वल है 🌟 -mayank pandey

वेदधारा समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही है 🌈 -वन्दना शर्मा

Read more comments

Knowledge Bank

रामराज्य की महानता

रामराज्य में, धर्म को सीधे तौर पर कायम रखा जाता है, और एक समर्पित पत्नी का गुण दृढ़ता से स्थापित किया जाता है। यहां भाईचारे का अपार प्रेम, शिक्षकों के प्रति समर्पण और स्वामी एवं कर्मचारियों के बीच सम्मानजनक संबंध है। अधर्मी कृत्यों को कड़ी सजा दी जाती है। नैतिकता व्यक्त एवं स्पष्ट है।

इतिहास की परिभाषा

इति हैवमासिदिति यः कथ्यते स इतिहासः - यह इंगित करता है कि 'इतिहास' शब्द का प्रयोग उन वृत्तांतों के लिए किया जाता है जिन्हें ऐतिहासिक सत्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। रामायण और महाभारत 'इतिहास' हैं और कल्पना या कल्पना की उपज नहीं हैं। इन महाकाव्यों को प्राचीन काल में घटित घटनाओं के तथ्यात्मक पुनर्कथन के रूप में माना जाता है।

Quiz

पुराने जमाने में, इस जगह जे लोग जब लालची बन गये थे तो मां शाकम्भरी ने इस जगह की सारी संपत्ति को नमक में परिवर्तित कर दिया । कौन सी है यह जगह ?

परिवार सुखी कैसे हो ?
इस संसार में प्रत्येक वस्तु किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाई गई है । जगन्नियन्ता ने इस सृष्टि में कोई वस्तु निरर्थक नहीं बनाई है। प्रत्येक पदार्थ के अपने पृथक् कर्म है । उनकी सिद्धि के लिए ही वह जीवन भर साधना करता है । मनुष्य संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना है। जो शक्तियां मनुष्य को प्राप्त हैं, वे किसी अन्य जीव को प्राप्त नहीं हैं । मनन, चिन्तन, विवेक, विश्व-हित- चिन्तन, विश्व- नियन्त्रण, आत्मिक शक्ति की पराकाष्ठा प्राप्त करना, भौतिक उन्नति उपलब्ध करना, यह केवल मानव के लिए ही संभव है, अन्य जीवों के लिए नहीं। मानव जीवन के दो लक्ष्य है - भौतिक उन्नति करना और मोक्ष प्राप्त करना । भौतिक उन्नति की गणना अभ्युदय में है और कर्म - बन्धनों से मुक्त होकर आवागमन के चक्र से छूटना मोक्ष है । इसको ही वैशेषिक दर्शन में धर्म और योगदर्शन में दृश्य जगत् की उपयोगिता . बताया गया है।"
सुख ' के दो रूप हैं- भौतिक सुख और पारमार्थिक सुख । सांसारिक सुखों और भोगों की गणना भौतिक सुख में है। इसको शास्त्रीय भाषा में प्रेयस् या प्रेयमार्ग कहा जाता है । यह सुख क्षणिक है, नश्वर है, जीवन को अपने लक्ष्य से च्युत करने वाला है और अन्त में बिनाश की ओर ले जाने वाला है । सामान्य व्यक्ति के सम्मुख यही सुख रहता है। वह घन, जन, बन्धुवान्धव, भूमि, गृह, स्वर्ण आदि को ही सर्वस्व समझता है । परन्तु यह उसकी भूल है। यह जीवन
का नाशक तत्त्व है । इस सुख का अन्त सदा दुःखदायी होता है ।
दूसरा सुख पारमार्थिक सुख है । इसे आनन्द कहते हैं । यह परमात्मा की शरण में जाने से प्राप्त होता है। इसमें मानसिक और आत्मिक उन्नति है । जीवात्मा परमात्मा का सांनिध्य प्राप्त करके आत्मिक शक्ति, ज्ञान, चेतना, विवेक, मनोबल और शाश्वत आनन्द प्राप्त करता है। इसको श्रेयस् या श्रेयमार्ग कहते हैं । बुद्धिमान् व्यक्ति इस श्रेयस् मार्ग को अपनाते हैं । गया है कि प्रेम और श्रेय दोनों मार्ग मनुष्य के अपनी आजीविका की दृष्टि से श्रेयमार्ग को अपनाते हैं । जो श्रेय होता है ।
इसलिए कठ उपनिषद् में कहा सामने आते हैं । सामान्य जन अपनाते हैं और विद्वान् व्यक्ति मार्ग को अपनाते हैं, उनका सदा कल्याण
प्रेय मार्ग को
सुख और दुःख की परिभाषा महाभारत में दी गई है कि जो स्वाश्रित कर्म हैं, वे सुख हैं। जिसके लिए दूसरे पर निर्भर रहना होता है, वह दुःख है । अपनी शक्ति के अनुकूल कार्यों को फैलाना, सुख का साधन है। इसके विपरीत दूसरों पर आश्रित रहते हुए काम करना दुःख का कारण है ।
इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी शक्ति देखकर ही उद्योग आदि का विस्तार करना चाहिए। आत्मनिर्भरता में सुख है, पराश्रयता में दुःख है ।
सुख और दुःख का एक दूसरा लक्षण भी है। यह अधिक रुचिकर है। सुख और दुःख शब्द दो शब्दों को मिलकर बने हैं। इन शब्दों में ही इनकी परिभाषा भी छिपी हुई है । सु+ख, ख का अर्थ इन्द्रिय है । अपनी इन्द्रियों को सु अर्थात् सुन्दर बना लेना ही सुख है। अपनी इन्द्रियों को अच्छे कामों में लगाना सुख है । इसके विपरीत दु: +ख अर्थात् अपनी इन्द्रियों को बिगाड़ लेना, उनसे दूपित कर्म करना ही दुःख है ।
अतएव सुख चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी इन्द्रियों को बस में रखे, इन्द्रियों को बुरे कामों में न लगावे । न बुरा देखे, न बुरा सुने, न बुरा बोले । यदि व्यक्ति अपने आपको बुराई से बचा लेता है तो वह सुखी है, यदि बुराई से नहीं बच सकता या नहीं बचता है तो वह दुःखी रहता है । सबको सुख अभीष्ट है, अतः दुर्गुणों को, बुराइयों को, अनुचित कार्यों को छोड़ना ही सुख का एकमात्र साधन है ।
परिवार सबसे छोटी इकाई है। उससे राष्ट्र या देश और उससे बड़ी इकाई विश्व है। इकाई को सुखी, प्रसन्न, समष्टि भी सुखी होगा ।
सन्तुष्ट और योगक्षेम
बड़ी इकाई समाज है, उससे आगे हमारा उद्देश्य है कि सबसे छोटी से युक्त करें । व्यष्टि सुखी है तो व्यक्ति और समाज, परस्पर संबद्ध समाज उन्नत होता है और समाज की उन्नति से व्यक्ति । परिवार के लिए विचारणीय है कि उसे किस प्रकार सुखी, समृद्ध और शान्तियुक्त हैं । व्यक्ति की उन्नति से बनाया जाए । व्यष्टि और समष्टि,
परिवार एक प्रकार से राष्ट्र और समाज का संक्षिप्त रूप है। इसमें पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बहिन और पौत्र-पौत्री आदि सभी समन्वित है। परिवार को सुन्दर और सुव्यवस्थित बनाना एक राष्ट्र को सुन्दर बनाने के तुल्य है। एक सुन्दर और सुव्यवस्थित परिवार स्वर्ग है और एक विकृत तथा अव्यवस्थित परिवार नरक है। हमारा लक्ष्य है परिवार को स्वर्ग बनाना और योगक्षेम से युक्त करना। इसके लिए वेदों में प्राप्त शिक्षाओं की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की जा रही है ।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Whatsapp Group Icon