जनमेजय ने अपने पिता, राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प-सत्र, सर्प-यज्ञ की शुरुआत की।
परीक्षित का वध तक्षक ने किया था।
जनमेजय पूरे नागवंश का विनाश चाहता था।
इसके अलावा, नागों की माँ ने उन्हें आग जल मरने का श्राप भी दिया था।
श्राप को ब्रह्माजी ने भी मंजूरी दे दी थी क्योंकि उस समय तक नागों की संख्या करोड़ों में हो चुकी थी।
बेवजह वे बेगुनाह लोगों पर हमला करते थे और मारते थे अपने घोर विष से।
उनकी संख्या को नियंत्रित करना था।
सर्प-यज्ञ इसे करने का सबसे कारगर तरीका था।
यज्ञ होने के कारण सांपों की हत्या, हत्या नहीं मानी जाएगी, जनमेजय कर्म से बाधित नहीं होगा।
इसके लिए एक विशेष और दुर्लभ वैदिक अनुष्ठान था सर्प-यज्ञ।
सर्प यज्ञ के पुरोहित कौन थे ?
साधारण नहीं।
वे महान महर्षि थे।
होता, ऋग्वेदी-पुरोहित चण्डभार्गव थे।
वे ऋषि शौनक के अपने वंश के थे।
बहुत प्रसिद्ध थे।
नैमिषारण्य में शौनक और अन्य ऋषियों को ही महाभारत सुनाया जा रहा है।
यजुर्वेदी-पुरोहित थे पिंगल।
यज्ञ के यजुर्वेदी-पुरोहित को अध्वर्यु कहते हैं।
सामवेदी-पुरोहित, उद्गाता थे कौत्स।
बहुत ही वरिष्ठ विद्वान।
पूरे यज्ञ की देखरेख करने वाले ब्रह्मा, अथर्ववेदी-पुरोहित थे जैमिनी।
ये चारों प्रमुख पुरोहित थे।
ऋषि व्यास ने स्वयं शुकदेव और उनके सभी शिष्यों के साथ सर्प-यज्ञ में भाग लिया।
साथ ही महान ऋषि जैसे-
उद्दालक, प्रमतक, श्वेतकेतु, असित, देवल, नारद, पर्वत, आत्रेय, कुण्ठ, जठर, द्विज, कालघट, वात्स्य, श्रुतश्रवा, कोहल, देवशर्मा, मौद्गल्य, समसौरभ
यह तथ्य कि इन ऋषियों ने सर्प-यज्ञ में भाग लिया था यह सर्प-यज्ञ के कारण को सही ठहराता है।
वे धर्म के पारदर्शी थे।
जैसा कि ब्रह्मा ने समझाया था, सर्प-यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य क्रूर नागों की संख्या को नियंत्रित करना था।
उस यज्ञ में अरबों नागों का विनाश हुआ था।
पुरोहित अग्नि में आहुति देते थे किसी सर्प का नाम या सर्प-समूहों के नाम लेकर।
वे सब आग में गिरेंगे और जलकर मर जाएंगे।
उन्हें मंत्र-शक्ति द्वारा आग में खींचा जाता था।
सर्प यज्ञ के दौरान मरने वाले कुछ प्रमुख नाग थे: वासुकी के वंश से
कोटिश, मानस, पूर्ण, शल, पाल, हलीमक, पिच्छल, कौणप, चक्र, कालवेग, प्रकालन, हिरण्यबाहु, शरण, कक्षक, कालदन्तक।
तक्षक के वंश से-
पुच्छाण्डक, मण्डलक, पिण्डसेक्ता, रभेणक, उच्छिख, शरभ, भङ्ग, बिल्वतेजा, विरोहण, शिली, शलकर, मूक, सुकुमार, प्रवेपन, मुद्गर, शिशुरोमा, सुरोमा, महाहनु।
ऐरावत के वंश से -
पारावत, पारिजात, पाण्ड,र हरिण, कृश, विहङ्ग, शरभ, मेद, प्रमोद, संहतापन।
कौरव्य के वंश से
एरक, कुण्डल, वेणी, वेणीस्कन्ध, कुमारक, बाहुक, शृंगवेर, धूर्तक, प्रातर, आतक।
धृतराष्ट्र के वंश से-
शङ्कुकर्ण, पिठरक, कुठारमुख, सेचक, पूर्णाङ्गद, पूर्णमुख, प्रहास, शकुनि, दरि, अमाहठ, कामठक, सुषेण, मानस, अव्यय, भैरव, मुण्डवेदाङ्ग, पिशङ्ग, उद्रपारक, ऋषभ, वेगवान्, पिण्डारक, महाहनु, रक्ताङ्ग, सर्वसारङ्ग्, समृद्ध, पटवासक, वराहक, वीरणक, सुचित्र, चित्रवेगिक, पराशर, तरुणक, मणि, स्कन्ध, अरुणि।
कैसे विवरण किया है, देखिए।
ऐसा नहीं है कि अरबों नाग मारे गए।
नाम लेकर बता रहे हैं।
ये सभी वास्तविक घटनाएं हैं, आप देखिए।
आग में न गिरने के लिए, साँप जो कुछ भी मिला उसे पकड लेते थे या एक-दूसरे को पकड़ते थे।
लेकिन, कुछ भी उन्हें बचा नहीं सका।
सभी प्रकार के जहरीले सांप, अरबों में।
कुछ मीलों लंगे, कुछ मोटे।
कुछ छोटे।
विभिन्न रंगों वाले: काला, नीला, लाल हरा।
उनके जलते शरीरों ने हवा को दुर्गंध से भर दिया।
होम कुंड से सर्प वसा की सैकड़ों नदियाँ बह निकलीं।
नाग हजारों की संख्या में आकाश से होम कुंड में गिर रहे थे।
तक्षक डर गया।
वह दौड़कर इंद्र के पास गया।
इंद्र ने कहा, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा, तुम यहां रहो, मेरे महल में।
मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।
नागों के राजा वासुकी चिंता करने लगे।
कुछ ही नाग बचे थे।
ब्रह्मा के वचन कि केवल क्रूर नाग ही मरेंगे, क्या वह अभी भी मान्य हैं?
ऐसा लगता है कि खुद के साथ सहित संपूर्ण नागवंश का नाश होने वाला था।
उसने अपनी बहन जरत्कारू को बुलाया।
समय आ गया है कि आप अपने पुत्र आस्तीक को सर्प यज्ञ के स्थान पर भेज दें और उसे किसी तरह रोक दें।
ब्रह्मा के अनुसार, केवल आस्तीक ही सर्प-यज्ञ को रोक पाएगा।
Astrology
Atharva Sheersha
Bhagavad Gita
Bhagavatam
Bharat Matha
Devi
Devi Mahatmyam
Ganapathy
Glory of Venkatesha
Hanuman
Kathopanishad
Mahabharatam
Mantra Shastra
Mystique
Practical Wisdom
Purana Stories
Radhe Radhe
Ramayana
Rare Topics
Rituals
Rudram Explained
Sages and Saints
Shiva
Spiritual books
Sri Suktam
Story of Sri Yantra
Temples
Vedas
Vishnu Sahasranama
Yoga Vasishta