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सुपुष्ट सुंदर और दूध देने वाली गाय को बछडे के साथ दान में देना चाहिए। न्याय पूर्वक कमायी हुई धन से प्राप्त होनी चाहिए गौ। कभी भी बूढी, बीमार, वंध्या, अंगहीन या दूध रहित गाय का दान नही करना चाहिए। गाय को सींग में सोना और खुरों मे चांदी पहनाकर कांस्य के दोहन पात्र के साथ अच्छी तरह पूजा करके दान में देते हैं। गाय को पूरब या उत्तर की ओर मुह कर के खडा करते हैं और पूंछ पकडकर दान करते हैं। स्वीकार करने वाला जब जाने लगता है तो उसके पीछे पीछे आठ दस कदम चलते हैं। गोदान का मंत्र- गवामङ्गेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश। तस्मादस्याः प्रदानेन अतः शान्तिं प्रयच्छ मे।
श्रीराम जी की प्रतिज्ञा थी कि सीता के अलावा कोई भी अन्य महिला उनकी मां कौशल्या के समकक्ष होगी। उन्होंने वादा किया कि वह किसी दूसरी महिला से शादी नहीं करेंगे और न ही इसके बारे में सोचेंगे। यज्ञों के लिए आवश्यक होने पर भी, राम ने दूसरी पत्नी का चयन नहीं किया; इसके बजाय, सीता की स्वर्ण प्रतिमा उनके बगल में रखी गई थी।
पातञ्जल योगसूत्र समाधि पाद सूत्र संख्या २१। तीव्रसंवेगानामासन्न:। योग तो बहुत लोग करते हैं। कोई कोई समाधि तक पहुंच पाता है। उन्हें समाधि के फल की भी प्राप्ति होती है। पर बहुसंख्यक लोग समाधि तक नहीं पहुंच पाते हैं।....
पातञ्जल योगसूत्र समाधि पाद सूत्र संख्या २१।
तीव्रसंवेगानामासन्न:।
योग तो बहुत लोग करते हैं।
कोई कोई समाधि तक पहुंच पाता है।
उन्हें समाधि के फल की भी प्राप्ति होती है।
पर बहुसंख्यक लोग समाधि तक नहीं पहुंच पाते हैं।
यह मत भूलिए कि योगाभ्यास का लक्ष्य ही समाधि को पाना है।
जो समाधि तक पहुंचते हैं उनमें भी कोई कोई जल्दी ही पहुंचता है तो किसी किसी को बहुत समय लगता है।
ऐसा क्यों?
इसका कारण बता रहा है सूत्र: तीव्रसंवेगानामासन्न:।
इस सूत्र को अगले सूत्र के साथ ही देखना चाहिए।
मृदुमध्याधिमात्रत्वात् ततोऽपि विशेषः
योगाभ्यास में संवेग या आप कितनी शक्ति लगाकर,कितना समय लगाकर, कितनी प्रतिबद्धता के साथ अभ्यास करते हैं इसके आधार पर योगियों को मृदु संवेग वाले, मध्य संवेग वाले और तीव्र संवेग वाले इस प्रकार विभाजन किया जाता है
योगाभ्यास के उपाय भी तीन प्रकार के हैं: मृदु, मध्य ओर अधिमात्र इस प्रकार।
तो मान लो आप मृदु संवेग वाले हो। उपाय के रूप में आप मृदु, मध्य या अधिमात्र ले सकते हैं।
इसी प्रकार आप तीव्र संवेग वाले हो; आपका उपाय मृदु, मध्य या अधिमात्र हो सकता है।
इन सबके कई क्रमचय और संचय बनते हैं।
जिसका संवेग भी तीव्र है और उपाय भी अधिमात्र, उसे सबसे जल्दी समाधि प्राप्त होती है।
इनके बीच के भी कई स्तर हो सकते हैं, जैसे:
तीव्र संवेग वालों में भी कोई मृदु तीव्र होता है, कॊई मध्य तीव्र होता है, कॊई अधिमात्र तीव्र होता है।
जो पचास किलो के ऊपर भार उठा सकता है उसे हम बलवान कहेंगे।
उसमें भी सब समान नहीं है
जो साठ किलो तक उठाएगा वह मृदु बलवान, जो ८०-९० तक उठाएगा वह मध्य बलवान, जो सौ से भी ऊपर उठाएगा वह अति बलवान।
इस प्रकार यहां भी उत्सुकता और प्रतिबद्धता रूपी संवेग अनुसार और उपाय के अनुसार कई क्रमचय और संचय बनते हैं।
अधिमात्रतीव्र संवेग जिसको है और जो अधिमात्र उपाय को अपनाता है, उसे सबसे शीघ्रता से असंप्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती है।
किसी का संवेद मृदु क्यों है या तीव्र क्यों है, यह तो पूर्व जन्म से आई हुई वासनाओं के ऊपर निर्भर होता है।
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