Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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शिशुओं की सुरक्षा के लिए स्कंद मंत्र

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वेदधारा को हिंदू धर्म के भविष्य के प्रयासों में देखकर बहुत खुशी हुई -सुभाष यशपाल

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

आभारी हूँ -gyan prakash

मेरा प्रिय मंत्र 💖... इससे मुझे बहुत मदद मिल रही है 🌟 -Ritik Bajpai

वेदधारा के माध्यम से मिले सकारात्मकता और विकास के लिए आभारी हूँ। -Varsha Choudhry

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विदुर की भक्ति: धन से परे सच्ची महानता

विदुर, राजा धृतराष्ट्र के सौतेले भाई, अपने धर्म के गहरे ज्ञान और धर्म के प्रति अटूट समर्पण के लिए प्रसिद्ध थे। जब कृष्ण महायुद्ध से पहले शांति वार्ता के लिए हस्तिनापुर आए, तो उन्होंने राजमहल के बजाय विदुर के विनम्र निवास में ठहरने का चयन किया। अपने साधारण साधनों के बावजूद, विदुर ने कृष्ण की अत्यंत भक्ति और प्रेम के साथ सेवा की, सरल भोजन के साथ महान आतिथ्य का प्रदर्शन किया। कृष्ण का यह चयन विदुर की सत्यनिष्ठा और उनकी भक्ति की पवित्रता को दर्शाता है, जो भौतिक संपत्ति और शक्ति से परे है। यह कहानी सच्चे आतिथ्य के मूल्य और नैतिक सत्यनिष्ठा के महत्व को सिखाती है। यह बताती है कि सच्ची महानता और दिव्य कृपा का निर्धारण किसी की सामाजिक स्थिति या धन से नहीं होता, बल्कि हृदय की निष्कपटता और पवित्रता से होता है। कृष्ण के प्रति विदुर की विनम्र सेवा इस बात का उदाहरण है कि जीवन में किसी की स्थिति की परवाह किए बिना, दयालुता और भक्ति के कार्य ही वास्तव में महत्वपूर्ण हैं।

हयग्रीव का क्या अर्थ है?

हयग्रीव का अर्थ है घोडे के सिरवाले। हयग्रीव भगवान ज्ञान के स्वामी हैं।

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इन्द्रपुत्र ने सूर्यपुत्र को मारा । कौन थे ये ?

तपसां तेजसां चैव यशसां वपुषां तथा । निधानं योऽव्ययो देवः स ते स्कन्दः प्रसीदतु । ग्रहसेनापतिर्देवो देवसेनापतिर्विभुः । देवसेनारिपुहरः पातु त्वां भगवान् गुहः । देवदेवस्य महतः पावकस्य च यः सुतः । गङ्गोमाकृत्तिका....

तपसां तेजसां चैव यशसां वपुषां तथा ।
निधानं योऽव्ययो देवः स ते स्कन्दः प्रसीदतु ।
ग्रहसेनापतिर्देवो देवसेनापतिर्विभुः ।
देवसेनारिपुहरः पातु त्वां भगवान् गुहः ।
देवदेवस्य महतः पावकस्य च यः सुतः ।
गङ्गोमाकृत्तिकानां च स ते शर्म प्रयच्छतु ।
रक्तमाल्याम्बरः श्रीमान् रक्तचन्दनभूषितः ।
रक्तदिव्यवपुर्देवः पातु त्वां क्रौञ्चसूदनः ।

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