Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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सुरक्षा के लिए शिव कवच

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इस मंत्र से मन को शांति मिलती है 🌼 -Mukesh Sengupta

आपके मंत्र बहुत ही उपयोगी हैं। 😊 -विनीत राजपूत

is mantra ko sunne se man ko shanti milti hei -अंकिता सिंह

यह मंत्र सचमुच बहुत कारगर हैं। 👍 -अंश गुहा

वेदधारा को हिंदू धर्म के भविष्य के प्रयासों में देखकर बहुत खुशी हुई -सुभाष यशपाल

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ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सकलतत्त्वविहाराय सकललोकैककर्त्रे सकललौकैकभर्त्रे सकललोकैकहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवरप्रदाय सकलदुरितार्तिभञ्जनाय सकलजगदभयङ्कराय सकललोकैकशङ्कराय शशाङ्कशेखराय शाश्वतनिजाभासाय निर्गुणाय निरुपमाय नीरूपाय निराभासाय निरामयाय निष्प्रपञ्चाय निष्कलङ्काय निर्द्वन्द्वाय निःसङ्गाय निर्मलाय निर्गमाय नित्यरूपविभवाय निरुपमविभवाय निराधाराय नित्यशुद्धबुद्धपरिपूर्णसच्चिदानन्दाद्वयाय परमशान्तप्रकाशतेजोरूपाय जयजय महारुद्र महारौद्र भद्रावतार दुःखदावदारण महाभैरव कालभैरव कल्पान्तभैरव कपालमालाधर खट्वाङ्गखड्गचर्मपाशाङ्कुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्तिभिण्डिपालतोमरमुसलमुद्गरपट्टिशपरशुपरिघभुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्र मुखदंष्ट्राकराल विकटाट्टहासविस्फारितब्रह्माण्डमण्डल नागेन्द्रकुण्डल नागेन्द्रहार नागेन्द्रवलय नागेन्द्रचर्मधर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विरूपाक्ष विश्वेश्वर विश्वरूप वृषभवाहन विषभूषण विश्वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वलज्ज्वल  महामृत्युभयं अपमृत्युभयं नाशय नाशय रोगभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरभयं मारय मारय मम शत्रूनुच्चाटयोच्चाटय शूलेन विदारय विदारय कुठारेण भिन्धि भिन्धि  खड्गेन छिन्धि छिन्धि खट्वाङ्गेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय बाणैः सन्ताडय सन्ताडय रक्षांसि भीषय भीषय भूतानि विद्रावय विद्रावय कूष्माण्डवेतालमारीगणब्रह्मराक्षसान्सन्त्रासय सन्त्रासय ममाभयं कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्वास याश्वासय नरकभयान्मामुद्धारयोद्धारय सञ्जीवय सञ्जीवय क्षुत्तृड्भ्यां मामाप्याययाप्यायय दुःखातुरं मामानन्दयानन्दय शिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादय त्र्यम्बक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।

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अतिथि सत्कार का महत्त्व

अतिथि को भोजन कराने के बाद ही गृहस्थ को भोजन करना चाहिए। अघं स केवलं भुङ्क्ते यः पचत्यात्मकारणात् - जो अपने लिए ही भोजन बनाता है व्ह केवल पाप का ही भक्षण कर रहा है।

दिव्य चक्षु

सबके अन्दर दिव्य चक्षु विद्यमान है। इस दिव्य चक्षु से ही हम सपनों को देखते हैं। पर जब तक इसका साधना से उन्मीलन न हो जाएं इससे बाहरी दुनिया नहीं देख सकते।

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