एक समय कोई गन्धर्व किसी राजा के अन्तःपुर के उपवन से प्रतिदिन फूल चुराकर ले जाया करता था ।
राजा ने चोर पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे देख न पाता था ।
अन्त में राजा ने उस पुष्प चोर का पता लगाने के लिए ये निश्चय किया कि शिव निर्माल्य (भगवान की मूर्ति से उतरे हुए फूल) के लांघने से चोर की अन्तर्धान होने की शक्ति नष्ट हो जाएगी, इस विचार से राजा ने शिव पर चढ़ी हुई फूल माला उपवन के द्वार पर बिखरवा दी।
फलस्वरूप गन्धर्वराज की उस पुष्पवाटिका में प्रवेश करते ही शक्ति कुंठित हो गई ।
वह स्वयं को क्षीण समझने लगा ।
उसने समाधि लगाकर तुरन्त ही इसके कारण का पता लगाया, मालूम हुआ कि मेरी शक्ति शिव निर्माल्य के लांघने से कुंठित हुई है।
यह जानकर उसने परम दयालु श्री शंकर भगवान की ये वर्णन रूपी महिमा ( महिम्न स्तोत्र) का गान किया ।
इसी स्तोत्र के बाद में शिव निर्माल्य तथा शिव स्तुति की विशेष महत्ता का प्रचार हुआ ।
इसी स्तुति के रचियता यही गन्धर्व- राज श्री पुष्पदन्त थे ।
इनकी यही रचना पुष्पदन्त विरचित श्री शिव का महिम्न स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
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