महात्माओं ने चार पुरुषार्थों के बारे में बताया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
ये चारों ही जीवन के लक्ष्य हैं।
किसी के भी जीवन में इनमें से पहले के तीन तो रहते ही हैं।
सही समय आने पर हमें मोक्ष के बारे में पता चलता है और उसके लिए भी प्रयास शुरू होता है।
इन चारों के बारे में दो जगहों पर बताया गया है।
एक तो प्रत्यक्ष ईश्वर ने वेदों में बताया है।
वेदों में भी इन चारों का वर्णन है और इन्हें प्राप्त करने के उपाय हैं।
यह अलौकिक है।
इसके अलावा, ईश्वर से ही प्रेरणा पाकर ऋषि-मुनियों ने, आचार्यों ने, महात्माओं ने भी हमें बहुत कुछ बताया है।
ये हमें पुराण जैसे ग्रंथों में मिलेंगे।
यह लौकिक है – लौकिक इसलिए कि यह ज्ञान लोकों की सृष्टि होने के बाद ही हुआ।
वेदों में जो ज्ञान है वह नित्य है – सृष्टि से पहले और प्रलय के बाद भी यह रहता है।
इसी ज्ञान से ही लोक बनते हैं।
लौकिक शास्त्रों में धर्म के बारे में धर्म शास्त्र के ग्रंथ बताते हैं,
अर्थ के बारे में नीति शास्त्र के ग्रंथ बताते हैं,
काम के बारे में काम शास्त्र के ग्रंथ बताते हैं।
मोक्ष के तीन साधन हैं, चार मार्ग हैं।
इनमें से दो मार्गों में अपने ही प्रयास से मोक्ष की सिद्धि होती है।
ये हैं सांख्य और योग।
मोक्ष का अर्थ देखिए – छुटकारा पाना, हर वस्तु, हर व्यक्ति, हर सोच से, हर परिस्थिति से छुटकारा पाना।
अगर घर ने आपको बांध रखा है तो उसे त्याग दो।
अगर परिवार ने आपको बांध रखा है तो उसे त्याग दो।
प्रत्यक्ष रूप –
आपमें अच्छे भोजन के लिए आसक्ति है, अच्छे भोजन को त्याग दो।
ऐसे करते जाओ।
अंत में सब कुछ त्याग दोगे।
जब आपके पास कुछ नहीं बचेगा, न बाहर, न अंदर – तो मोक्ष मिल गया – हर चीज से।
योग मार्ग में प्रत्यक्ष रूप से त्यागना नहीं होता –
मन से त्याग दो।
भोग करो लेकिन मन में उसके प्रति आसक्ति या कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए।
जितनी साधना की पद्धतियां हैं मोक्ष के लिए, ये सब इन दोनों के अंतर्गत ही आते हैं।
त्याग के बिना मोक्ष कभी नहीं मिलेगा।
मोक्ष का अर्थ ही वही है – कुछ बचा ही नहीं आपके पास।
प्रत्यक्ष त्यागो या मन से त्यागो।
मन से त्यागना और कठिन है, समझ लीजिए।
ये दोनों हुए – अपने प्रयास से मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग।
किसी का आश्रय लेने से भी मोक्ष मिल सकता है – यह है तीसरा मार्ग।
ऐसा मोक्ष किसी की कृपा है।
यह मिल जाता है।
इसमें प्रयास नहीं है, उद्वेग नहीं है।
अपने आप को निरीक्षण नहीं करता रहना पड़ता – कि कितना आगे बढ़े हो, कितनी प्रगति हुई है।
क्योंकि नियंत्रण किसी और के हाथ में आपने दे दिया।
वे संभालेंगे।
वे जानें – आपसे क्या कराना है, क्या नहीं कराना है, कुछ कराना भी है क्या – ये सब वे जानें।
ये कौन हैं जिनका आप आश्रय ले सकते हैं –
शंकर, विष्णु, गणेश, देवी – कोई भी ईश्वरीय शक्ति।
ये सब पहले से ही मुक्त हैं और परमानंद की अवस्था में हैं।
मोक्ष और तज्जनित आनंद उनके लिए बहुत प्यारा है।
अपनी प्यारी वस्तु – कोई भी खाने की चीज हम घर में सेवक को नहीं देते?
खीर आपको पसंद है – घर में बनी खीर – जितने लोग हैं घर में, आश्रित – सबको देंगे।
इसी प्रकार ये देवता अपने भक्तों को मोक्ष दे देते हैं – जो उनके लिए सबसे अधिक पसंद है।
मांगने की भी जरूरत नहीं है – अपने आप दे देते हैं।
पर इसके लिए उनका आश्रय लेना पड़ेगा।
उनका दास बनना पड़ेगा।
यह कैसे करें –
उनकी भक्ति करने से, उनकी सेवा करने से।
आश्रित सेवा करता ही है न – सेवा करो, आश्रित बन जाओगे।
आश्रित बनने से उनको आपके ऊपर प्यार आएगा।
वे जो उनको पसंद है, उसे दे देंगे।
पर मानव का मन संदेहों से भरा हुआ है –
ऐसा नहीं हुआ तो?
प्रयास करने पर भी नहीं हुआ?
प्रयास करने कौन कह रहा है?
प्रयास ही करना है तो सांख्य करो, योग करो।
यहां कोई प्रयास नहीं है।
यह मार्ग उनके लिए है – जिनको प्रयास नहीं करना है।
सिर्फ आश्रय लेना है – दास बनकर रहना है।
देवता आपको नहीं कहेंगे –
मेरे लिए ऐसा करो, वैसा करो, यह लाकर दो, वह लाकर दो।
पर यह जो आपके अंदर संदेह आते हैं, संशय आते हैं – इस दुष्ट बुद्धि को आपको ही रोकना होगा।
ये देवता नहीं करेंगे।
एक आदमी गुरुजी के पास गया –
गुरुजी ऐसा एक मंत्र दीजिए जिससे मेरा मंगल हो।
गुरुजी ने मंत्र दिया।
थोड़े दिनों के बाद आकर कहता है –
मुझसे नहीं हो पा रहा है, आप ही थोड़ा हर रोज जाप करके मुझे उसका फल दे दो।
यह नहीं चलेगा।
प्रयास नहीं करो –
अपनी दुष्ट बुद्धि को, वक्र बुद्धि को तो नियंत्रण में रखो।
यह कैसे हो सकता –
ईश्वर के साथ लगे रहने से।
उनको आत्मसमर्पण करने से।
जो कुछ भी करोगे, उनके लिए –
खाओगे उनके लिए, पिओगे उनके लिए, काम करोगे उनके लिए।
पर यह भाव कैसे आएगा –
भक्ति करने से – नवधा भक्ति करने से।
श्रवण (जो परीक्षित ने किया), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन), और आत्मनिवेदन (बलिराजा)।
इनमें से किसी एक को भी करते रहो – आत्मसमर्पण अपने आप ही हो जाएगा।
Astrology
Atharva Sheersha
Bhagavad Gita
Bhagavatam
Bharat Matha
Devi
Devi Mahatmyam
Ganapathy
Glory of Venkatesha
Hanuman
Kathopanishad
Mahabharatam
Mantra Shastra
Mystique
Practical Wisdom
Purana Stories
Radhe Radhe
Ramayana
Rare Topics
Rituals
Rudram Explained
Sages and Saints
Shiva
Spiritual books
Sri Suktam
Story of Sri Yantra
Temples
Vedas
Vishnu Sahasranama
Yoga Vasishta