मार्गशीर्ष मास का महत्व, व्रत कथा, व्रत का फल इत्यादि विषयों से संबन्धित पौराणिक कथाएं ।
श्रीराम जी न तो कहीं जाते हैं, न कहीं ठहरते हैं, न किसी के लिए शोक करते हैं, न किसी वस्तु की आकांक्षा करते हैं, न किसी का परित्याग करते हैं, न कोई कर्म करते हैं। वे तो अचल आनन्दमूर्ति और परिणामहीन हैं, अर्थात उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। केवल माया के गुणों के संबंध से उनमें ये बातें होती हुई प्रतीत होती हैं। श्रीराम जी परमात्मा, पुराणपुरुषोत्तम, नित्य उदय वाले, परम सुख से सम्पन्न और निरीह अर्थात् चेष्टा से रहित हैं। फिर भी माया के गुणों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें बुद्धिहीन लोग सुखी अथवा दुखी समझ लेते हैं।
द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण पूरा होने के एक साल बाद, भीमसेन ने तलवार युद्ध, गदा युद्ध और रथ युद्ध में बलदेव जी से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
खुशी और आराम के लिए अथर्ववेद से मंत्र
यानि नक्षत्राणि दिव्यन्तरिक्षे अप्सु भूमौ यानि नगेषु द....
Click here to know more..सत्यव्रत कैसे बना विद्वान
गजवदन अष्टक स्तोत्रं
गजवदन गणेश त्वं विभो विश्वमूर्ते हरसि सकलविघ्नान् विघ्....
Click here to know more..एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में सूतजी महाराज शौनक आदि ऋषियों से कहते हैं कि हे ऋषिगण ! इस जगत के सब प्राणियों के आनन्द दाता, भुक्ति और मुक्ति को देने वाले, देवकी के पुत्र भगवान् माधव श्री कृष्ण चंद्र को मैं नमस्कार करता हूँ ।
श्वेत द्वीप में सुख से आसीन, देवताओं के देवता, लक्ष्मी के पति, अपने पिता श्री विष्णु
भगवान् को नमस्कार करके श्री ब्रह्मा जी ने पूछा कि हे भगवन् ! हे जगत् को धारण करने वाले ! हे पवित्र कथाओं के कहने वाले ! हे देवेश हे सर्वज्ञ 1 सब के मालिक कृपा करके मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये | आपने पहले कहा कि मैं मासों में मार्ग - शीर्ष मास हूँ सो मैं उस मार्गशीर्ष मास का ठीक २ माहात्म्य जानना चाहता हूं। हे रमापते ! उस मास का देवता कौन है ? दान क्या है ? उसमें स्नान आदि करने की विधि क्या है तथा मार्गशीर्ष मास में क्या २ करना चाहिये क्या भोजन करना चाहिये क्या बोलना चाहिये ? तथा जो पूजन, ध्यान, मंत्र- 'जप आदि कर्म किये जाते हैं उन सबको मुझसे कहिये ।
: श्री विष्णु भगवान् ब्रह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन् !समस्त लोक के उपकारार्थ, आपने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है जिसके करनेसे शुभ यज्ञ आदि समस्त कार्य करने का फल प्राप्त हो जाता है। हे सुत ! समस्त यज्ञों के करने से जो पुण्य प्राप्त होता है?
तथा जो सब तीर्थो में जो फल मिलता है उन लव फलों की प्राप्ति मार्गशीर्ष मास के व्रत के सेवन से मिल जाता है । हे पुत्र ! मनुष्य तुला पुष्ष दान आदि के करने से जो फल प्राप्त करता है वह फल केवल मार्गशीर्ष मास के माहात्म्य के सुनने मात्र से प्राप्त कर लेता है । यज्ञों को कना वेदों को पढ़ना, दान आदि देना, तीर्थों में स्नान आदि करना, संन्यास तथा योग को धारण करने से मैं किमो के वशीभूत नहीं होता किंतु मार्गशीर्ष मास में स्नान, दान, पूजन, ध्यान, मौन, जप, आदि के करने से मैं सहज ही वश में हो जाता हूँ । अन्य मासों में यह सब कर्म करने से में वश में नहीं होता, यह मैंने तुमसे अत्यन्त गुप्त बात कही है । सर्वत्र निवास करने वाले देवताओं ने जब मेरी प्राप्ति के लिए यह अत्यन्त सुलभ उपाय देखकर अन्य धर्म आदि सेवन से इस मार्गशीर्ष को गुप्त कर दिया अतः मेरे भक्तों को मेरी प्राप्ति के साधन समझकर मार्गशीर्ष मास का सेवन अवश्य करना चाहिये जो मनुष्य इस भारतवर्ष में मार्गशीर्ष मास में व्रत आदि का सेवन नहीं करते हैं वे पाप रूप हैं क्योंकि वे कलि काल से अत्यन्त मोहित हो रहे हैं ।
हे वत्स ! आठ मासों में स्नान, दान, व्रत
पूजन आदि से जो फल मनुष्य को प्राप्त होता है उतना ही फल मकर के सूर्य होने पर माघ मास में हो जाता है। माघ मास से सौ गुना फल वैशाख मास व्रत सेवन से मिलता है और उस वैशाख मास सेवन से हजार गुणा अधिक फल तुला के सूर्य होने पर कार्तिक मास व्रत सेवन से मिलता है, परन्तु कार्तिक मास व्रत सेवन की अपेक्षा कोटि गुणा अधिक फल वृश्चिक के सूर्य होने पर मार्गशीर्ष मास में प्राप्त होता है । इस कारण मार्गशीर्ष मास समस्त मासों में श्रेष्ठ है और मुझको अत्यन्त प्रिय है । हे पुत्र ! जो मनुष्य मार्गशीर्षमास में प्रातःकाल उठकर ! विधि पूर्वक स्नान करता है । उससे प्रसन्न होकर मैं उसकी आत्माको अपना ही समझता हूँ । हे पुत्र ! इसमें मैं तुमसे एक इतिहास का वर्णन करता हूँ, सो तुम सुनो। पहले पृथ्वोतल में नन्दगोप नाम का प्रसिद्ध महात्मा हुआ । गोकुल में उसकी हजारों परम सुन्दर कन्यायें हुई । मेरे कथनानुसार उन कन्याओं ने मार्गशीर्ष मास में विधि पूर्वक प्रात: स्नान और पूजन किया तथा हविष्यान्न भोजन और नमस्कार किया। इस प्रकार उनके व्रत सेवन से मैं उन पर अत्यन्त प्रसन्न हुआ, . मैंने प्रसन्नता से उन कन्याओं को वर प्रदान में अपनी आत्मा तक को दे दिया ।
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