Jaya Durga Homa for Success - 22, January

Pray for success by participating in this homa.

Click here to participate

माघ मास माहात्म्य

122.5K
18.4K

Comments

Security Code
74353
finger point down
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -User_sdh76o

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

आपकी वेबसाइट बहुत ही अद्भुत और जानकारीपूर्ण है।✨ -अनुष्का शर्मा

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा के नेक कार्य से जुड़कर खुशी महसूस हो रही है -शशांक सिंह

Read more comments

Knowledge Bank

प्रदोष पूजा कब शुरू करना चाहिए?

पूजा का समय सूर्यास्त से 3 घटी पहले शुरू होता है। 3 घटी का मतलब 72 मिनट, लगभग सवा घंटा होता है। अगर सूर्यास्त 6:30 बजे है, तो पूजा 5:15 बजे शुरू होनी चाहिए।

भ्रम से परे देखना

जीवन में, हम अक्सर भ्रमों का सामना करते हैं जो हमारे निर्णय और समझ को धूमिल कर देते हैं। ये भ्रम कई रूपों में आ सकते हैं: भ्रामक जानकारी, झूठी मान्यताएं, या ध्यान भटकाने वाली चीजें जो हमें हमारे सच्चे उद्देश्य से दूर ले जाती हैं। विवेक और बुद्धि का विकास करना महत्वपूर्ण है। जो आपके सामने प्रस्तुत किया जाता है, उस पर सतर्क रहें और सवाल करें, यह समझते हुए कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। सत्य और असत्य के बीच अंतर करने की क्षमता एक शक्तिशाली उपकरण है। अपने भीतर स्पष्टता की खोज करके और दिव्य के साथ संबंध बनाए रखकर, आप जीवन की जटिलताओं को आत्मविश्वास और अंतर्दृष्टि के साथ नेविगेट कर सकते हैं। चुनौतियों को समझ को गहरा करने के अवसर के रूप में अपनाएं, और भीतर की रोशनी को सत्य और पूर्ति की ओर मार्गदर्शन करने दें। याद रखें कि सच्चा ज्ञान सतह से परे देखने से आता है, चीजों के सार को समझने से और अस्तित्व की भव्य टेपेस्ट्री में अपनी क्षमता को महसूस करने से आता है।

Quiz

एकलव्य की मृत्यु किसके हाथों हुई थी ?

वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना ऋषियोंने कहा - लोमहर्षण सूतजी ! अब हमें माघका माहात्म्य सुनाइये, जिसको सुननेसे लोगोंका महान् संशय दूर हो जाय ।....

वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
ऋषियोंने कहा - लोमहर्षण सूतजी ! अब हमें माघका माहात्म्य सुनाइये, जिसको सुननेसे लोगोंका महान् संशय दूर हो जाय ।
सूतजी बोले – मुनिवरो! आपलोगोंको साधुवाद देता हूँ । आप भगवान् श्रीकृष्णके शरणागत भक्त हैं; इसीलिये प्रसन्नता और भक्तिके साथ आपलोग बार- बार भगवान्‌की कथाएँ पूछा करते हैं। मैं आपके कथनानुसार माघ माहात्म्यका वर्णन करूँगा; जो अरुणोदयकालमें स्नान करके इसका श्रवण करते हैं, उनके पुण्यकी वृद्धि और पापका नाश होता है । एक समयकी बात है, राजाओंमें श्रेष्ठ महाराज दिलीपने यज्ञका अनुष्ठान पूरा करके ऋषियोंद्वारा मङ्गल - विधान होनेके पश्चात् अवभृथ-स्नान किया। उस समय सम्पूर्ण नगरनिवासियोंने उनका बड़ा सम्मान किया । तदनन्तर राजा अयोध्यामें रहकर प्रजाजनोंकी रक्षा करने लगे। वे समय- समयपर वसिष्ठजीकी अनुमति लेकर प्रजावर्गका पालन किया करते थे । एक दिन उन्होंने वसिष्ठजीसे कहा- 'भगवन्! आपके प्रसादसे मैंने आचार, दण्डनीति, नाना प्रकारके राजधर्म, चारों वर्णों और आश्रमोंके कर्म, दान, दानकी विधि, यज्ञ, यज्ञके विधान, अनेकों व्रत, उनके उद्यापन तथा भगवान् विष्णुकी आराधना आदिके सम्बन्धमें बहुत कुछ सुना है। अब माघस्नानका फल सुननेकी इच्छा है । मुने! जिस विधिसे इसको करना चाहिये, वह मुझे बताइये ।'
वसिष्ठजीने कहा- राजन् ! मैं तुम्हें माघस्नानका फल बतलाता हूँ, सुनो। जो लोग होम, यज्ञ तथा इष्टापूर्त कर्मोंके बिना ही उत्तम गति प्राप्त करना चाहते हों, वे माघमें प्रातः काल बाहरके जलमें स्नान करें। जो गौ, भूमि, तिल, वस्त्र, सुवर्ण और धान्य आदि वस्तुओंका दान किये बिना ही स्वर्गलोक में जाना चाहते हों, वे माघमें सदा प्रात:काल स्नान करें। जो तीन-तीन राततक उपवास, कृच्छ्र और पराक आदि व्रतोंके द्वारा अपने शरीरको सुखाये बिना ही स्वर्ग पाना चाहते हों, उन्हें भी माघमें सदा प्रात:काल स्नान करना चाहिये। वैशाखमें जल और अन्नका दान उत्तम है, कार्तिकमें तपस्या और पूजाकी प्रधानता है तथा माघमें जप, होम और दान- ये तीन बातें विशेष हैं। जिन लोगोंने माघमें प्रातः स्नान, नाना प्रकारका दान और भगवान् विष्णुका स्तोत्र पाठ किया है, वे ही दिव्यधाममें आनन्दपूर्वक निवास करते हैं। प्रिय वस्तुके त्याग और नियमोंके पालनसे माघ सदा धर्मका साधक होता है और अधर्मकी जड़ काट देता है। यदि सकामभावसे माघस्नान किया जाय तो उससे मनोवाञ्छित फलकी सिद्धि होती है और निष्कामभावसे स्नान आदि करनेपर वह मोक्ष देनेवाला होता है। निरन्तर दान करनेवाले, वनमें रहकर तपस्या करनेवाले और सदा अतिथि सत्कारमें संलग्न रहनेवाले पुरुषोंको जो दिव्यलोक प्राप्त होते हैं, वे ही माघस्नान करनेवालों को भी मिलते हैं । अन्य पुण्योंसे स्वर्गमें गये हुए मनुष्य पुण्य समाप्त होनेपर वहाँसे लौट आते हैं; किन्तु माघस्नान करनेवाले मानव कभी वहाँसे लौटकर नहीं आते। माघस्नानसे बढ़कर कोई पवित्र और पापनाशक व्रत नहीं है। इससे बढ़कर कोई तप और इससे बढ़कर कोई महत्त्वपूर्ण साधन नहीं है। यही परम हितकारक और तत्काल पापोंका नाश करनेवाला है। महर्षि भृगुने मणिपर्वतपर विद्याधरसे कहा था- 'जो मनुष्य माघके महीनेमें जब उष:कालकी लालिमा बहुत अधिक हो, गाँवसे बाहर नदी या पोखरेमें नित्य स्नान करता है, वह पिता और माताके कुलकी सात-सात पीढ़ियोंका उद्धार करके स्वयं देवताओंके समान शरीर धारण कर स्वर्गलोकमें चला जाता है।'
दिलीपने पूछा- ब्रह्मन् ! ब्रह्मर्षि भृगुने किस समय मणिपर्वतपर विद्याधरको धर्मोपदेश किया था— बतानेकी कृपा करें।
वसिष्ठजी बोले – राजन् ! प्राचीन कालमें एक समय बारह वर्षोंतक वर्षा नहीं हुई। इससे सारी प्रजा उद्विग्न और दुर्बल होकर दसों दिशाओंमें चली गयी। उस समय हिमालय और विन्ध्यपर्वतके बीचका प्रदेश खाली हो गया। स्वाहा, स्वधा, वषट्कार और वेदाध्ययन—- सब बंद हो गये। समस्त लोकमें उपद्रव होने लगा। धर्मका तो लोप हो ही गया था, प्रजाका भी अभाव हो गया। भूमण्डलपर फल, मूल, अन्न और पानीकी बिलकुल कमी हो गयी।

हिन्दी

हिन्दी

व्रत एवं त्योहार

Click on any topic to open

Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...