चोरी क्या है?
चोरी उसे कहते हैं जब कोई वस्तु ले ली जाती है -
माखन चोरी में बात ठीक इसके विपरीत थी।
जगत में ऐसी कौनसी वस्तु है जो कान्हा की नहीं है?
उनकी वस्तुओं को हम अपना मानकर ले लेते हैं, छिपा लेते हैं - यही वास्तव में चोरी है।
गोपियां चाहती थी कि आज कान्हा मेरे घर आयें माखन लेने।
भगवान उनके सामने ले जाते थे, उनके देखते देखते ही।
और कान्हा भी चाहता था कि मैं पकडा जाऊं।
कान्हा इसलिये माखन चोरी की लीला करते थे कि गोपियों को उसका आनन्द मिलें।
वे गोपियां भी कोई साधारण महिलायें नहीं थी।
उनमें से कई गोलोक से अवतार लेकर भगवान के साथ पृथ्वी पर आयी थीं।
वेदमाता स्वयं गोपी बनकर आयी थी वृन्दावन में।
कुछ पूर्वजन्म में ऋषि थीं।
गोपियों के तन, मन और जीवन में कान्हा के सिवा और कुछ भी नहीं था।
मैया री मोहि माखन भावै ।
जो मेवा पकवान कहत तू, मोहि नहीं रुचि आवै॥
ब्रज-जुवती इक पाछें ठाड़ी, सुनत स्याम की बात ।
मन-मन कहति कबहुँ अपने घर देखौं माखन खात॥
बैठें जाइ मथनियाँ के ढिग, मैं तब रहौं छपानी।
सूरदास प्रभु अंतरजामी, ग्वालिन मन की जानी॥
ॐ जूँ सः ईँ सौः हँसः सञ्जीवनि सञ्जीवनि मम हृदयग्रन्थिस्थँ प्राणँ कुरु कुरु सोहँ सौः ईँ सः जूँ ॐ ॐ जूँ सः अमृठोँ नमश्शिवाय ।
महाभारत अनुशासनपर्व.८३.१४ के अनुसार गोलोक देवताओं के लोकों के ऊपर है- देवानामुपरिष्टाद् यद् वसन्त्यरजसः सुखम्।
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