मां विंध्यवासिनी की कथा

इस प्रवचन से जानिए- १. मां विंध्यवासिनी की कथा २. भगवान के साथ जांबवती का विवाह कैसे हुआ।

मां विंध्यवासिनी की कथा

इस संसार में जितने सारे बंधन हैं उनका कारण है यह भगवती मां।
और उन बंधनों से छुटकारा देने वाली भी यही है।
परम विद्या स्वरूपिणी है देवी।
जितने सारे ईश्वर हैं, उन सब की ईश्वरी है यह।
नवरात्र की पद्धति से उनकी पूजा करो।
नौ दिनों में श्रीमद् देवी भागवत का श्रवण करो।
आपकी समस्या दूर हट जाएगी।
आपके पुत्र वापस आएंगे।
न सिर्फ इतना।
सारे भोग प्राप्त हो जाएंगे और मोक्ष भी प्राप्त हो जाएगा।
वसुदेव जी बोले: जैसे आकाशवाणी ने कंस को बताया कि हमारा आठवां पुत्र उसे मार देगा, तुरन्त ही उसने हमें कैद कर लिया।
हमारे छः पुत्रों को कंस ने एक एक करके पैदा होते ही मार डाला।
हम दोनों बहुत ही व्याकुल हो गये।
हमने गर्गमुनि से मदद माँगी।
उन्होंने कहा: भगवति दुर्गा ही तुम्हारी इस दुर्गति का विनाश कर सकती है।
तुम्हें इस संकट से बचा सकती है।
उनकी पूजा करो, तुम्हारा भला होगा।
उनकी आराधना से लोग सब कुछ पाते हैं।
जो मनुष्य माँ दुर्गा की पूजा करेगा उस के लिए असाध्य, असंभव, अप्राप्य कुछ भी नहीं है।
वसुदेव जी बोले: हम दोनों यहाँ बंदी हैं ।
इस कारागार में रहते हुए कैसे माता की पूजा कर पाएंगे हम?
इसलिए कृपया आप ही हमारी तरफ से उनकी पूजा कीजिए और हमें बचाइए।
वसुदेव जी द्वारा ऐसे अनुरोध किये जाने पर गर्ग मुनि विंध्याचल चले गये और वहाँ पर देवी माँ की आराधना उन्होंने शुरू कर दी।
जप-पूजन समाप्त होने पर मुनि को आकाशवाणी सुनाई दी: तुम्हारी पूजा से मैं प्रसन्न हो गई हूं।
तुम्हारा कार्य सिद्ध हो जाएगा।
पापों से और पापियों से इस धरती का बोझ बहुत बढ़ गया है।
मेरी प्रेरणा से भगवान श्री हरि का अंश देवकी के गर्भ में अवतार लेंगे और पृथ्वी का बोझ हल्का करेंगे।
जब इस बच्चे का जन्म होगा, वसुदेव तुरंत ही उसे गोकुल ले जाकर उसके बदले में यशोदा की बेटी ले आएगा।
कन्या होते हुए भी जब कंस उसे मारने ज़मीन पर पटक देगा तब वह कंस के हाथों से छूट जाएगी।
वह कन्या मेरी ही अंश है।
कंस के हाथों से छूटने के बाद एक अलौकिक दिव्य रूप धारण करके वह विंध्य पर्वत चली जाएगी और वहां रहकर जगत का कल्याण करेगी।
इस प्रकार पहले मैं ने गर्ग मुनि से उस देवी की अद्भुत बात सुनी थी और अब आप भी उसी देवी का जिक्र कर रहे हैं।
वसुदेवजी बोले: अब आप ही कृपा करके हमें श्रीमद् देवी भागवत सुनाइए।
नारद जी ने हाँ कहा।
नौवें दिन कथा समाप्ति पर वसुदेव जी ने नारद महर्षि और ग्रन्थ की पूजा की।
कथा समाप्त होते ही उधर जांबवान को पहले की सब बातें याद आ गयी।
जांबवान को समझ में आया कि उनके सामने कौन खडे हैं और किनके साथ वे लड रहे हैं।
जांबवान ने कहा: मुझे समझ में आ गया है कि आप साक्षात् श्री रघुवीर रामचन्द्र ही हैं।
आप श्रीराम भगवान ही हैं।
मुझे सारी घटनाएँ याद आ रही हैं।
मैं हमेशा आपका सेवक ही रहा हूँ ।
आदेश दीजिए मैं क्या करूं आपकी सेवा में।
भगवान ने जांबवान को बताया कि मणि खोजते हुए वे गुफा में आये थे।
जांबवान ने भगवान को स्यमन्तक मणि लौटाया और साथ में अपनी बेटी जाम्बवती को भी पत्नी के रूप में दे दिया।
भगवान श्री हरि द्वारका पहुँचे।
वहां कथा के बाद ब्राह्मणों का भोजन चल रहा था।
ब्राह्मणों ने जैसे मन्त्रों से आशीर्वाद देना शुरू किया, भगवान मणि और जाम्बवती के साथ पहुँचे।
यह है श्रीमद् देवी भागवत कथा श्रवण की शक्ति |
श्री हरि के इस चरित्र को जो भक्ति श्रद्धा से सुनेगा उसे सारे सुख कार्य सिद्धि और अंत में मोक्ष भी मिल जाएगा।

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देवी भागवत

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