मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति तक के छः महीने देवों का दिवस है। कर्क संक्रांति से मकर संक्राति तक उनकी रात्रि। मकर संक्रांति से शुरू होनेवाले छः महीनों को उत्तरायण कहते हैं जो शास्त्रों के अनुसार एक पुण्य काल है। उत्तरायण में दैवी शक्तियां जागृत रहती हैं। उत्तरायण में मृत्यु होने पर वैकुंठ की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति के दिन ही गङ्गा जी स्वर्ग से उतरकर धरती पर आई थी। उन्होंने भगीरथ के पीछे पीछे जाकर कपिल मुनि के आश्रम में राजा सगर के ६०,००० पुत्रों का उद्धार किया। फिर गङ्गा जी सागर में मिल गई। इसकी स्मृति में भी मकर संक्रांति मनाई जाती है।
संक्रान्ति पर झूठ न बोलें, कठोर बातें न करें, असत्य का आचरण न करें, क्रोध न करें, दिन में न सोयें, हिंसा न करें, शरीर और बालों में तेल न लगायें, क्षौरकर्म न करें, और ब्रह्मचर्य का पालन करें। संतानवाले गृहस्थ जन उपवास न करें।
मकर संक्रांति आपस में स्नेह और मिठास की वृद्धि का दिन हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को तिल, गुड और खिचडी देते हैं। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का विशेष महत्त्व है। मकर संक्रांति के दिन किया हुआ दान सौ गुना फल देता है।
मकर संक्रान्ति को तमिलनाडु में पोंगल; गुजरात और उत्तराखण्ड में उत्तरायण; जम्मू कश्मीर में उत्तरैन, माघी संगरांद, शिशुर सेंक्रांत; हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में माघी; उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचडी; असम में भोगाली बिहु; और बिहार में दही-चूड़ा वाले पर्व भी कहते हैं।
मकर संक्रांति का दिन दान-धर्मादियों के लिए उत्तम है। किन्तु गृह प्रवेश और उपनयन, विवाह इत्यादि संस्कारों के लिए मकर संक्रांति से तीन दिन वर्ज्य हैं।
मकर संक्रांति में प्रयागराज जैसे पुण्य तीर्थों में स्नान करना अत्यंत फलदायक है। संतानरहित व्यक्ति उपवास करें। तिल, वस्त्र इत्यादियों का दान करें। पितरों की कृपा के लिए तर्पण करं।
मकर संक्रान्ति में वस्त्र, कंबल, चावल,, दाल, तिल, गुड, गन्ना, सब्जी, फल इत्यादियों का दान देना उत्तम है।
मकर संक्रांति उत्तरायण का पहला दिन है। ब्रह्मसूत्र के अनुसार उत्तरायण में मृत्यु होने पर मुक्ति मिल जाती है। गीताजी अध्याय ८ श्लोक २४ के अनुसार उत्तरायण में प्राण त्यागनेवाला ब्रह्मवेत्ता ब्रह्म पद को पा लेता है।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना इसका सूचक है कि हमारा चिन्तन सदा ऊपर परमेश्वर की ओर बना रहें। पतंग जैसे आकाश की ओर उडती है हमारा जीवन और चरित्र भी उन्नति को प्राप्त करें।
मकर संक्रांति के दिन तुलसी मिश्रित जल से स्नान करके तांबे के कलश में जल भरकर उसमें चंदन, पुष्प, अक्षत, तिल और अष्टगंध डालकर सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान करें। उसके बाद सूर्य देव की मूर्ति या फोटो सजाकर षोडशोपचार से पूजा करें। इन मंत्रों का यथाशक्ति जाप करें - ह्रीं आदित्याय नमः, जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिं तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम्।
मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से १६ घंटे स्नान के लिए उत्तम हैं। उसमें भी पहले के ८ घंटे अत्युत्तम होते हैं। सूर्यास्त से पूर्व के २४ मिनट के अंदर प्रवेश हो तो उससे पूर्व ही स्नान करें। रात को संक्रांति हो तो अगले सूर्योदय से २ घंटों के अंदर स्नान करें। संक्रांति के जितना समीप स्नान हों उतना उत्तम है।
मकर संक्रांति के दिन उत्तर भारत में सूर्य देव खिचडी भोग के रूप में चढाकर उसे खाते हैं और बांटते हैं। सभी जगह मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड खाते हैं।
दक्षिण भारत में मकर संक्रांति से पहले का दिन भोगी के रूप में मनाते हैं। भोगी नाम इसलिए कि इसी दिन भगवान श्रीरंगनाथ ने गोदादेवी से विवाह करके भोग-सुख को प्राप्त किया था। भोगी के दिन घर के निष्प्रयोजन वस्तुओं को निकालकर जला डालते हैं। इस से अलक्ष्मी दूर हो जाती है। शाम को विष्णु भगवान की प्रीति के लिए उनके ऊपर बेर फल डाले जाते हैं।
मकर संक्रांति सूर्य देव की पूजा होती है। उस दिन तांबे कलश में जल भरकर उसमें चीनी मिलाकर पीपल के पेड पर चढाने से पितृगण तृप्त हो जाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन पानी में तुलसी डालकर स्नान करना चाहिए।
सूर्य देव के श्राप से निर्धन होकर शनि देव अपनी मां छाया देवी के साथ रहते थे। सूर्य देव उनसे मिलने आये। वह मकर संक्रांति का दिन था। शनि देव के पास तिल और गुड के सिवा और कुछ नहीं था। उन्होंने तिल और गुड समर्पित करके सूर्य देव को प्रसन्न किया। इसलिए हम भी प्रसाद के रूप में उस दिन तिल और गुड खाते हैं।
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