भोग और मोक्ष प्रदान करने में देवी भागवत की क्षमता

इस प्रवचन से जानिए- १. भोग और मोक्ष प्रदान करने में देवी भागवत की क्षमता २. राजा परीक्षित को देवी भागवत द्वारा कैसे सद्गति मिली ३. व्यास जी ने पुराणॊं की रचना क्यों की? ४.देवी भागवत को किन महीनों में सुनने से अधिक लाभ मिलता है ५. नवाह का अर्थ

भोग और मोक्ष प्रदान करने में देवी भागवत की क्षमता

सूतजी बोले: सारे तीर्थ, सारे पुराण ,सारे व्रत, तप, ये सब अपनी अपनी श्रेष्ठता के ऊपर तब तक गर्व रखते हैं जब तक श्रीमद् देवी भागवत सामने न आया हो।
मनुष्य के पाप स्वरूपी जंगल को काट देनेवाला कुठार है श्रीमद् देवी भागवत।
बीमारियां अंधेरा बनकर तब तक आदमी को तडपाती हैं जब तक देवी भागवत रूपी सूरज का उदय न हुआ हो।
ऋषियों ने बोला: हमें विस्तार से बताइए, इस पुराण में क्या है? इसका श्रवण कैसे किया जाना चाहिए? इसकी कोई पूजा विधि है क्या? किन किन लोगों ने इसका श्रवण किया है और उन्होंने क्या क्या पाया?
सूत जी ने कहा: व्यास जी, भगवान श्री हरि परमात्मा के अवतार हैं।
उनके पिता थे पराशर महर्षि और माता सत्यवती।
व्यास जी ने ही वेदों का चार विभाग किया: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
लेकिन जिनके द्वारा वेदों का अध्ययन नहीं हुआ हो, वे धर्म कैसे जानें?
यह सोचकर व्यास जी ने बडी कृपा करके उनके लिए पुराणों की रचना की।
उन्होंने अठारह पुराणों और महाभारत की रचना की।
इनमें से श्रीमद् देवी भागवत भोग और मोक्ष, इन दोनों को प्रदान करने वाला है।
सबसे पहले उन्होंने मुझे ही यह पुराण सिखाया।
तक्षक से मारे जाने पर राजा परीक्षित की सद्गति के लिए.
राजा परीक्षित थे अभिमन्यु के पुत्र।
ऋषि के शापवश उनको तक्षक ने मार डाला।
राजा परीक्षित की सद्गति के लिए उनके पुत्र जनमेजय ने देवी भागवत का नवाह आयोजित किया था।
नवाह मतलब नौ दिनों का पाठ और श्रवण।
इसमें व्यास जी ने स्वयं इसका पाठ किया था।
उस नवाह की समाप्ति पर राजा परीक्षित को दिव्य रूप की प्राप्ति हुई और उनको देवलोक में नित्य निवास भी प्राप्त हो गया।
यह पुराण सर्वोत्तम है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चारों इसके द्वारा पाया जा सकता है।
जो मनुष्य इस कहानी को भक्ति और श्रद्धा से हमेशा सुनता है उसके लिए अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति दूर नहीं है।
पूरा दिन,‌ आधा दिन, दिन का चौथा हिस्सा या एक मुहूर्त- मुहूर्त मतलब दो घटी अडतालीस मिनट- या पल भर के लिए भी जो श्रद्धा के साथ इस कहानी को सुनेगा, उसे कभी दुर्गति नहीं हो सकती।
यज्ञों का अनुष्ठान ,गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान ,दान इत्यादि सत्कार्य जो फल देते हैं, देवी भागवत के मात्र श्रवण से वे सब मिल जाते हैं।
पहले के युगों में तो कई धार्मिक अनुष्ठान थे, लेकिन कलियुग के लिए सबसे सरल विधान पुराणों का श्रवण है।
कलियुग में धर्म और सदाचार का घटना स्वाभाविक है,और आयु भी पहले जैसा नहीं है।
ऐसी परिस्थिति के लिए भगवान व्यास ने पुराणों की रचना की ताकि मनुष्य धर्म से भ्रष्ट न हो जायें।
अगर किसी को अमृत मिल जायें तो उसे पीने से बुढ़ापा नही होता और मृत्यु भी नहीं होती, लेकिन यह तो सिर्फ उस इंसान के लिए है।
श्रीमद् देवी भागवत श्रवण रूपी अमृत पीने से उसके वंश को बुढ़ापा नहीं होता।
मतलब बुढापे में जो सहज पीड़ाएँ हैं वे सब नहीं होते।
और उसके पूरे वंश की स्वर्ग-प्राप्ति होती है।
ऐसा कोई नियम नहीं है कि इस कहानी को इतने दिनों के अंदर या इतने महीनों के अन्दर सुनना है।
हमेशा हमेशा इसे सुनते रहो।
बार बार सुनते रहो।
हाँ , अगर आश्विन में, चैत्र में, माघ में या आषाढ में श्रवण किया जाए तो अधिक फलदायी है।
इसे नौ दिनों का नवाह यज्ञ के रूप में किया जाए तो बहुत ही अच्छा है।

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देवी भागवत

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