आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि।
सीताराम कहने पर राम में चार मात्रा और सीता में पांच मात्रा होती है। इसके कारण राम नाम में लघुता आ जाती है। सियाराम कहने पर दोनों में तुल्य मात्रा ही होगी। यह ज्यादा उचित है।
एक बार फिर से भगवद्गीतोपनिषद इस नाम के रहस्य को संक्षेप में देख लेते हैं। गीता एक स्मृत्युपनिषद है, श्रुत्युपनिषद नहीं। स्मृति शास्त्र में आपको सर्वदा, यह करो यह मत करो ऐसा आदेश ही मिलेगा। क्यों करें, क्यों न करें इसका जवा....
एक बार फिर से भगवद्गीतोपनिषद इस नाम के रहस्य को संक्षेप में देख लेते हैं।
गीता एक स्मृत्युपनिषद है, श्रुत्युपनिषद नहीं।
स्मृति शास्त्र में आपको सर्वदा, यह करो यह मत करो ऐसा आदेश ही मिलेगा।
क्यों करें, क्यों न करें इसका जवाब नहीं मिलेगा।
यह कोई कमी नहीं है।
हर एक के लिए कारण समझाने जाएंगे तो कभी समाप्त नहीं होगा।
कारण स्मृति में नहीं मिलेगा, वेद में, श्रुति में मिलेगा।
जिन्होंने वेद के तत्त्वों को ठीक से समझा, उनके द्वारा स्मृतियों की रचना हुई है।
भारतीय दण्ड संहिता, आई.पी.सी. को निकालकर देखो।
उसमें गुना क्या है, दण्ड क्या है, इतना ही लिखा रहेगा।
क्यों कोई गुना गुना है, यह नहीं लिखा रहेगा।
क्यों इस दण्ड के लिए एक महीना तो उस दण्ड के लिए ७ साल का कैद, ये सब नहीं लिखा रहेगा।
यह जानकारी आपको मिलेगा, और कहीं से।
आई.पी.सी का उद्देश्य अपराधों को और दण्ड को एक जगह संग्रह करना है।
इसी प्रकार स्मृति का काम है हमें बताना कि यह करो यह मत करो।
क्यों इसका जवाब चाहिए तो वेदों में ढूंढो।
हर कोई ऐसा नहीं है कि कारण जाने बिना मैं कुछ नहीं करूंगा।
डाक्टर बताता है, हम दवा लेते हैं।
क्या हमेशा यह पता करते हैं क्या कि वह दवा शरीर पर कैसे काम करता है?
नहीं न?
क्यों कि हमें विज्ञान पर विश्वास है, डाक्टर की पढाई और अनुभव पर विश्वास है।
ठीक इसी प्रकार जिन ऋषियों ने स्मृतियों की रचना की है उन पर भी हमें विश्वास है।
वे जो बताते हैं हमारी भलाई के लिए ही बताते हैं, ऐसा विश्वास।
वे जो भी बताते हैं उसके पीछे वेद का प्रमाण है, ऐसा विश्वास।
उपनिषद में केवल रहस्यों का उद्घाटन है।
उपनिषद आपको यह करो यह मत करो ऐसा नहीं बताएगा।
गीता में आपको दोनों का समन्वय मिलेगा।
यह करो यह मत करो यह और इसके पीछे का रहस्यमयी कारण भी।
इसलिए गीता स्मृत्युपनिषद है।
न केवल स्मृति न केवल उपनिषद, दोनों का समन्वय।
कार्य और कारण दोनों एक ही जगह पर।
भगवान से प्राप्त होने की वजह से भगवत्।
भग-वान, जिसके पास ऐश्वर्य,धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य रूपी छः भग हैं, वह भगवान।
भगवान से प्राप्त हुआ इसलिए भगवत्।
इन छः में से भी धर्म, ज्ञान,वैराग्य, ऐश्वर्य इन चार भगों के ऊपर गीता के बुद्धियोग में विशेष ध्यान है।
गीता का काम केवल इन भगों के बारे में बताना नहीं है।
व्यावहारिक तौर पर जीवन में विद्यमान अविद्या-अस्मिता-राग-द्वेष-अभिनिवेश रूपि पंचविध क्लेशों को कैसे हटाया जाएं और धर्म-ज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य रूफि भगों को बुद्धियोगा का आश्रय लेकर कैसे लाया जाएं, यही भगवाले भगवान गीता में हमें बताते हैं।
भगवान इसलिए यह बताते हैं कि उनके पास ये सारे भग हैं।
जिसके पास जो है वही हमें उसे दे सकत है न?
गीता शब्द से यह साफ होता है कि गीता में शब्दवाक है, मन्त्रवाक नहीं।
गीता के उच्चार से नहीं, गीता को समझने से गीता के तत्त्वों को जीवन में लाने से लाभ मिलता है।
और उपनिषद - रहस्य।
भगवद्गीतोपनिषद- भगवान ने शब्दवाक के रूप में जिन रहस्यों का उपदेश दिया वह।
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