बह्वीमपि संहितां भाषमानः

बह्वीमपि संहितां भाषमानो न तत् करोति भवति नरः प्रमत्तः |
गोप इव गा गणयन् परेषां न भाग्यवान् श्रामण्यस्य भवति ||

 

बहुत से सूक्तियों को बोल बोलकर खुद उस के जैसे आचरण न करने वाला उसी गाय चराने वाले के तरह होता है जो दूसरों के गाय गिन गिनकर चराते चराते खुद कभी उन गायों का मालिक नहीं बन पाता |

 

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