माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी कहते हैं ।
विद्यारम्भ के अवसर पर, वर्ष के अन्त में, माघ शुक्ला पञ्चमी के दिन सभी को भक्तिपूर्वक सरस्वती देवी की पूजा करनी चाहिए ।
यही विद्यारम्भ की मुख्य तिथि है ।
यह कामोत्सव तिथि भी मानी जाती है।
ब्रह्मा जी सृजन कर रहे थे।
उन्होंने देखा कि चारों ओर खामोशी छाई हुई थी।
सारे जीव सुस्त और उदासीन बैठे हुए थे।
तब ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु से जल छिडककर एक देवी की सृष्टि की।
उस देवी के चार हाथ थे।
दो हाथों में वीणा और अन्य दो हाथों में माला एवं पुस्तक।
ब्रह्मा जी ने उस देवी का नाम सरस्वती रखा।
ब्रह्मा जी के आदेशानुसार देवी सरस्वती वीणा बजाने लगी।
समस्त जीव जाल सुस्ती छोडकर प्रसन्नचित्त और उत्साही हो गये।
यह घटना माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को घटी थी।
यह दिन सरस्वती के प्राकट्य का दिन होने के कारण उस दिन सरस्वती पूजा की जाती है।
देवी सरस्वती ही ज्ञान, बुद्धि और वचन प्रदान करती है।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से वसन्त ऋतु शुरू होती है।
इसलिए इसे बसंत पंचमी कहते हैं।
उस दिन सुबह ही सरस्वती देवी की पूजा का संकल्प लें।
फिर संयमी होकर पवित्र भाव से रहकर स्नान और नित्यकर्म करने के बाद भक्ति-पूर्वक कलश स्थापन करें।
तदनन्तर पूजा के द्रव्य जुटाकर गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव और पार्वती का पूजन करें।
इसके बाद सरस्वती की पूजा आरम्भ करनी चाहिए ।
ताजा मक्खन, दही, दूध, धान का लावा, तिल के लड्डू, सफेद गन्ना और उसका रस, उसे पकाकर बनाया हुआ गुड, शक्कर या मिश्री, श्वेत धान का चावल जो टूटा न हो, नये धान का चिउड़ा, सफेद लड्डू, घी और सेंधा नमक डालकर तैयार किये हुए व्यञ्जन के साथ चावल, जौ अथवा गेहूं के आटे से बने घृत में तले हुए पदार्थ, पके हुए स्वच्छ केले का पिष्टक, मधुर मिष्टान, नारियल, उसका पानी, कसेरू, मूली, अदरक, पका केला, बढ़िया बेल, बेर का फल, अन्यान्य ऋतुफल तथा और भी स्वच्छ वर्ण के पवित्र फल – ये सब भगवती सरस्वती के प्रिय नैवेद्य हैं ।
सुगन्धित श्वेत पुष्प, सफेद स्वच्छ चन्दन, नवीन श्वेत वस्त्र और सुन्दर शङ्ख देवी सरस्वती की प्रसन्नता के लिए उन्हें अर्पित किये जाने चाहिए।
श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत भूषण भी भगवती को चढ़ायें ।
उनका ध्यान इस प्रकार करें -
देवी सरस्वती का श्रीविग्रह शुक्लवर्ण है।
वे परम सुन्दरी हैं और उनके मुखपर सदा प्रसन्नतासूचक मन्द मुसकान की छटा छायी रहती है।
उनके श्रीविग्रह के समक्ष कोटि-कोटि चन्द्रमाओंकी प्रभा फीकी पड़ जाती है।
उनके श्री अङ्गों पर विशुद्ध चिन्मय वस्त्र शोभा दे रहा है |
भगवती शारदा के एक हाथ में वीणा है और दूसरे में पुस्तक ।
सर्वोत्तम रत्ननिर्मित आभूषण उन्हें सुशोभित करते हैं ।
ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव प्रभृति देवता और देव-समुदाय इनकी पूजा में संलग्न हैं।
श्रेष्ठ मुनि, मनु और मानव इनके चरणों में नतमस्तक हैं।
ऐसी भगवती सरस्वती को मैं भक्तिभाव से प्रणाम करता हूं।
इस प्रकार ध्यान करके पूजा के समस्त उपचार भगवती को मूलमन्त्र से विधिवत् समर्पित करें ।
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा - यह वैदिक अष्टाक्षर मन्त्र ही भगवती की पूजा के लिए उपयुक्त मूलमन्त्र है ।
पूजन के बाद देवी को साष्टाङ्ग प्रणाम करना चाहिए।
जो लोग भगवती सरस्वती को अपनी इष्टदेवी मानते हैं, उनके लिए यह नित्यकर्म है।
ॐ सरस्वत्यै नमः ।
ॐ महाभद्रायै नमः ।
ॐ महामायायै नमः ।
ॐ वरप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीप्रदायै नमः ।
ॐ पद्मनिलयायै नमः ।
ॐ पद्माक्ष्यै नमः ।
ॐ पद्मवक्त्रायै नमः ।
ॐ शिवानुजायै नमः ।
ॐ पुस्तकभृते नमः । १०
ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः ।
ॐ रमायै नमः ।
ॐ परायै नमः ।
ॐ कामरूपायै नमः ।
ॐ महाविद्यायै नमः ।
ॐ महापातक नाशिन्यै नमः ।
ॐ महाश्रयायै नमः ।
ॐ मालिन्यै नमः ।
ॐ महाभोगायै नमः ।
ॐ महाभुजायै नमः । २०
ॐ महाभागायै नमः ।
ॐ महोत्साहायै नमः ।
ॐ दिव्याङ्गायै नमः ।
ॐ सुरवन्दितायै नमः ।
ॐ महाकाल्यै नमः ।
ॐ महापाशायै नमः ।
ॐ महाकारायै नमः ।
ॐ महाङ्कुशायै नमः ।
ॐ पीतायै नमः ।
ॐ विमलायै नमः । ३०
ॐ विश्वायै नमः ।
ॐ विद्युन्मालायै नमः ।
ॐ वैष्णव्यै नमः ।
ॐ चन्द्रिकायै नमः ।
ॐ चन्द्रवदनायै नमः ।
ॐ चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः ।
ॐ सावित्र्यै नमः ।
ॐ सुरसायै नमः ।
ॐ देव्यै नमः ।
ॐ दिव्यालङ्कारभूषितायै नमः । ४०
ॐ वाग्देव्यै नमः ।
ॐ वसुधायै नमः ।
ॐ तीव्रायै नमः ।
ॐ महाभद्रायै नमः ।
ॐ महाबलायै नमः ।
ॐ भोगदायै नमः ।
ॐ भारत्यै नमः ।
ॐ भामायै नमः ।
ॐ गोविन्दायै नमः ।
ॐ गोमत्यै नमः । ५०
ॐ शिवायै नमः ।
ॐ जटिलायै नमः ।
ॐ विन्ध्यावासायै नमः ।
ॐ विन्ध्याचलविराजितायै नमः ।
ॐ चण्डिकायै नमः ।
ॐ वैष्णव्यै नमः ।
ॐ ब्राह्मयै नमः ।
ॐ ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै नमः ।
ॐ सौदामिन्यै नमः ।
ॐ सुधामूर्त्यै नमः । ६०
ॐ सुभद्रायै नमः ।
ॐ सुरपूजितायै नमः ।
ॐ सुवासिन्यै नमः ।
ॐ सुनासायै नमः ।
ॐ विनिद्रायै नमः ।
ॐ पद्मलोचनायै नमः ।
ॐ विद्यारूपायै नमः ।
ॐ विशालाक्ष्यै नमः ।
ॐ ब्रह्मजायायै नमः ।
ॐ महाफलायै नमः । ७०
ॐ त्रयीमूर्त्यै नमः ।
ॐ त्रिकालज्ञायै नमः ।
ॐ त्रिगुणायै नमः ।
ॐ शास्त्ररूपिण्यै नमः ।
ॐ शुम्भासुरप्रमथिन्यै नमः ।
ॐ शुभदायै नमः ।
ॐ स्वरात्मिकायै नमः ।
ॐ रक्तबीजनिहन्त्र्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै नमः ।
ॐ अम्बिकायै नमः । ८०
ॐ मुण्डकायप्रहरणायै नमः ।
ॐ धूम्रलोचनमर्दनायै नमः ।
ॐ सर्वदेवस्तुतायै नमः ।
ॐ सौम्यायै नमः ।
ॐ सुरासुर नमस्कृतायै नमः ।
ॐ कालरात्र्यै नमः ।
ॐ कलाधारायै नमः ।
ॐ रूपसौभाग्यदायिन्यै नमः ।
ॐ वाग्देव्यै नमः ।
ॐ वरारोहायै नमः । ९०
ॐ वाराह्यै नमः ।
ॐ वारिजासनायै नमः ।
ॐ चित्राम्बरायै नमः ।
ॐ चित्रगन्धायै नमः ।
ॐ चित्रमाल्यविभूषितायै नमः ।
ॐ कान्तायै नमः ।
ॐ कामप्रदायै नमः ।
ॐ वन्द्यायै नमः ।
ॐ विद्याधरसुपूजितायै नमः ।
ॐ श्वेताननायै नमः । १००
ॐ नीलभुजायै नमः ।
ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः ।
ॐ चतुरानन साम्राज्यायै नमः ।
ॐ रक्तमध्यायै नमः ।
ॐ निरञ्जनायै नमः ।
ॐ हंसासनायै नमः ।
ॐ नीलजङ्घायै नमः ।
ॐ ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकायै नमः । १०८
जय सरस्वती माता,
मैया जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि,
द्युति मंगलकारी ।
सोहे शुभ हंस सवारी,
अतुल तेजधारी ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
बाएं कर में वीणा,
दाएं कर माला ।
शीश मुकुट मणि सोहे,
गल मोतियन माला ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
देवी शरण जो आए,
उनका उद्धार किया ।
पैठी मंथरा दासी,
रावण संहार किया ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनि,
ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह अज्ञान और तिमिर का,
जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
धूप दीप फल मेवा,
माँ स्वीकार करो ।
ज्ञानचक्षु दे माता,
जग निस्तार करो ॥
॥ जय सरस्वती माता...॥
माँ सरस्वती की आरती,
जो कोई जन गावे ।
हितकारी सुखकारी,
ज्ञान भक्ति पावे ॥
जय जय सरस्वती माता...॥
जय सरस्वती माता,
जय जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता ॥
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