Special Homa on Gita Jayanti - 11, December

Pray to Lord Krishna for wisdom, guidance, devotion, peace, and protection by participating in this Homa.

Click here to participate

पुरुषोत्तम मास

पुरुषोत्तम मास का महत्त्व, विधि और फल के बारे में विस्तृत जानकारी


 

PDF Book पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

 

115.5K
17.3K

Comments

Security Code
58061
finger point down
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -मदन शर्मा

वेदधारा के कार्यों से हिंदू धर्म का भविष्य उज्जवल दिखता है -शैलेश बाजपेयी

सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

आपकी मेहनत से सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है -प्रसून चौरसिया

आपकी वेबसाइट बहुत ही विशिष्ट और ज्ञानवर्धक है। 🌞 -आरव मिश्रा

Read more comments

Knowledge Bank

अन्नदान का श्लोक क्या है?

अन्नं प्रजापतिश्चोक्तः स च संवत्सरो मतः। संवत्सरस्तु यज्ञोऽसौ सर्वं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥ तस्मात् सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च। तस्मादन्नं विषिष्टं हि सर्वेभ्य इति विश्रुतम्॥

अतिथि सत्कार का महत्त्व

अतिथि को भोजन कराने के बाद ही गृहस्थ को भोजन करना चाहिए। अघं स केवलं भुङ्क्ते यः पचत्यात्मकारणात् - जो अपने लिए ही भोजन बनाता है व्ह केवल पाप का ही भक्षण कर रहा है।

Quiz

बरेली के इस शिव मंदिर की स्थापना द्रौपदी ने अपने राजगुरु द्वारा करवायी थी । वन में स्थित इस मंदिर को तोडने का मुगलों ने कई बार नाकाम प्रयास किया था । इस मंदिर का नाम भी इस बात से संबन्धित है । कौन सा है यह मंदिर ?

भक्तजनों के मनोरथ को कल्पवृक्ष के समान पूर्ण करने वाले वृन्दावन की शोभा के अधिपति अलौकिक कार्यों द्वारा समस्त लोक को चकित करने वाले वृन्दावन बिहारी पुरुषोत्तम भगवान् को नमस्कार करता हूँ ॥ १ ॥ नारायण,
श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ वन्दे वन्दारुमन्दारं वृन्दावन,विनोदिनम् ॥ वृन्दावनकलानाथं पुरुषोत्तममद्भुतम् ॥ १ ॥ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् | देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ २ ॥ नैमिषारण्यमाजग्मुर्मुनयः सत्रकाम्यया ॥ असितो देवलः पैलः सुमन्तुः पिप्पलायनः ॥ ३ ॥ सुमतिः काश्यपचैव जाबालिभृगुरङ्गिराः ॥ वामदेवः सुतीच्णश्च शरभङ्गश्च पर्वतः || ४ || आपस्तम्बोऽथ माण्डव्यो नर, नरोत्तम तथा देवी सरस्वती और श्रीव्यासजी को नमस्कार कर जय की इच्छा करता हूँ ॥ २ ॥ यज्ञ करने की इच्छा से परम पवित्र नैमिषारण्य में आगे कहे हुए बहुत से मुनि आये । जैसे - असित, देवल, पैल, सुमन्तु, पिप्पलायन ॥ ३ ॥ सुमति, कश्यप, जात्रालि, भृगु, अङ्गिरा, वामदेव, सुतीक्ष्ण, शरभंग, पर्वत ॥ ४ ॥ आपस्तम्ब, माण्डव्य, अगस्त्य, कात्यायन, रथीतर, ऋभु, कपिल, रैभ्य ॥५॥ गौतम, मुद्गल, कौशिक, गालव, ऋतु, अत्रि, बभ्रु, त्रित, शक्ति, बुध, बौधायन, बसु ॥ ६ ॥ कौण्डिन्य, पृथु, हारीत, धूम्र, शङ्कु, सङ्कृति, शनि, विभाण्डक, पङ्क, गर्ग, कागाद ||७|| जमदग्नि, भरद्वाज, धूमप, मीनभार्गव, कर्कश, शौनक, तथा महातपस्वी शतानन्द ॥ ८ ॥ विशाल, वृद्धविष्णु, जर्जर, ऽगस्त्यः कात्यायनस्तथा ॥ रथीतरो ऋभुश्चैव कपिलो रैभ्य एव च ॥ ५॥ गौतमो मुद्गल- चैव कौशिको गालवः क्रतुः । त्रिभुस्त्रितः शक्तिर्बुधो बौधायनो वसुः ॥६॥ कौडिन्यः पृथुहारीतौ धूम्रः शङ्खश्च सङ्कतिः ॥ शनिर्विभाण्डकः पङ्को गर्गः काणाद एव च ॥ ७ ॥ जमदग्निर्भरद्वाजो धूमपो मौनभार्गवः ॥ कर्कशः शौनकचैव शतानन्दो महातपाः ॥ ८ ॥ विशालाख्यो विष्णुवृद्धो जर्जरो जयजङ्गमौ ॥ पारः पाशधरः पूरो महाकायोऽथ जैमिनिः ॥ ६ ॥ महाग्रीवो महाबाहुर्महोदरमहाबलौ । उद्दालको महासेन आर्त चामलकप्रियः ॥१०॥ ऊर्ध्वचाहुरूर्ध्वपाद एकपादश्च दुर्धरः ॥ उग्रशीलो जलाशी च पिङ्गलो त्रिस्तथा ॥११॥
जय, जङ्गम, पार, पाशधर, पूर, महाकाय, जैमिनि ॥ ६ ॥ महाग्रीव, महाबाहु, महोदर, महाचल, उद्दालक, महासेन, आर्त, आमलकप्रिय ॥ १० ॥ उर्ध्वबाहुः ऊर्ध्वपाद, एकपाद, दुर्धर, उग्रशील, जलाशी, पिङ्गल, अत्रि, ऋ ॥ ११ ॥
शाण्डीरः करुणः कालः कैवल्यश्च कलाधरः ॥ श्वेतबाहू रोमपादः कटुः कालाग्निरुद्रगः ॥ १२ ॥ श्वेताश्वतर एवाद्यः शरभङ्गः पृथुश्रवाः । एते सशिष्या ब्रह्मिष्ठा वेदवेदाङ्गपारगाः ॥ १३ ॥ लोकानुग्रहकर्तारः परोपकृतिशालिनः ॥ परप्रियरताश्चैव श्रौतस्मार्तपरायणाः ॥१४॥ नैमिषारण्यमासाद्य सत्रं कर्तुं समुद्यताः ॥ तीर्थयात्रामथोद्दिश्य गेहात् सुतोऽपि निर्गतः ॥ १५ ॥ पृथिवीं पर्यटन्नेव नैमिषे दृष्टवान् मुनान् ॥ तान् सशिष्यान्नमस्कर्तुं संसारार्णवतारकान् ॥ १६ ॥ सूतः प्रहर्षितः प्रागाद्यत्रासंस्ते मुनीश्वराः ॥ ततः सूतं समायान्तं रक्तवल्कलधारिणम् ॥१७॥
यज्ञ करने को तत्पर हुये । इधर तीर्थयात्रा की इच्छा से सूतजी भी अपने आश्रम से निकले || १५ || और पृथ्वी का भ्रमण करते हुए उन्होंने नैमिषारण्य में आकर शिष्यों के सहित समस्त मुनियों को देखा । संसारसमुद्र से पार करनेवाले उन ऋषियों को नमस्कार करने के लिये ॥ १६ ॥

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

हिन्दी

हिन्दी

व्रत एवं त्योहार

Click on any topic to open

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...