Special - Hanuman Homa - 16, October

Praying to Lord Hanuman grants strength, courage, protection, and spiritual guidance for a fulfilled life.

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गुरुजी की शिक्षाओं में सरलता हैं 🌸 -Ratan Kumar

बहुत प्रेरणादायक 👏 -कन्हैया लाल कुमावत

आप लोग वैदिक गुरुकुलों का समर्थन करके हिंदू धर्म के पुनरुद्धार के लिए महान कार्य कर रहे हैं -साहिल वर्मा

आपका हिंदू शास्त्रों पर ज्ञान प्रेरणादायक है, बहुत धन्यवाद 🙏 -यश दीक्षित

सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा का योगदान अमूल्य है 🙏 -श्रेयांशु

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गरुड के सौतेले भाई हैं नाग । फिर भी नाग गरुड का भोजन बन गये । जानिए कैसे ...

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सालासर बालाजी में दर्शन करने में कितना समय लगता है?

साधारण दिनों में सालासर बालाजी का दर्शन एक घंटे में हो जाता है। शनिवान, रविवार और मंगलवार को ३ से ४ घंटे लग सकते हैं।

भक्ति में शुद्धता का महत्व

आध्यात्मिक विकास के लिए, पहचान और प्रतिष्ठा की चाह को पहचानना और उसे दूर करना जरूरी है। यह चाह अक्सर धोखे की ओर ले जाती है, जो आपके आध्यात्मिक मार्ग में रुकावट बन सकती है। भले ही आप अन्य बाधाओं को पार कर लें, प्रतिष्ठा की चाह फिर भी बनी रह सकती है, जिससे नकारात्मक गुण बढ़ते हैं। सच्चा आध्यात्मिक प्रेम, जो गहरे स्नेह से भरा हो, तभी पाया जा सकता है जब आप धोखे को खत्म कर दें। अपने दिल को इन अशुद्धियों से साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है उन लोगों की सेवा करना जो सच्ची भक्ति का उदाहरण हैं। उनके दिल से निकलने वाला दिव्य प्रेम आपके दिल को भी शुद्ध कर सकता है और आपको सच्चे, निःस्वार्थ प्रेम तक पहुंचा सकता है। ऐसे शुद्ध हृदय व्यक्तियों की सेवा करके और उनसे सीखकर, आप भक्ति और प्रेम के उच्च सिद्धांतों के साथ खुद को संरेखित कर सकते हैं। आध्यात्मिक शिक्षाएं लगातार इस सेवा के अपार लाभों पर जोर देती हैं, जो आध्यात्मिक विकास की कुंजी है।

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राजा नहुष अगस्त्य महर्षि के शाप वश इन्द्र से अजगर बन गया था । उन्हें शाप से किसने मुक्त किया ?

गरुड देवों को हराकर स्वर्ग से अमृत कुम्भ लेकर आये । यह बताओ , देवता लोगों ने अमृत का पान किया है । फिर भी कैसे हारे ? अमृत अमरत्व प्रदान करता है । ऐसा नहीं कि अमृत पीओगे तो समस्यायें नहीं आएंगी या घायल नहीं होंगे या पराजित नही....

गरुड देवों को हराकर स्वर्ग से अमृत कुम्भ लेकर आये ।
यह बताओ , देवता लोगों ने अमृत का पान किया है । फिर भी कैसे हारे ?
अमृत अमरत्व प्रदान करता है ।
ऐसा नहीं कि अमृत पीओगे तो समस्यायें नहीं आएंगी या घायल नहीं होंगे या पराजित नहीं होंगे ।

अमृत कुम्भ को लिये गरुड उस जगह की ओर गये जहां उनकी मां थी ।
नागों को अमृत सौंपने ताकि मां और बेटा दोनों को गुलामी से छुटकारा मिलें ।
गरुड देवों को भी हरानेवाले हैं ?
तो नागों को यूं ही मारकर गुलामी से बाहर नहीं आ सकते थे ?
नहीं, मां ने वचन दिया है न ?
उसे कैसे तोड सकते हैं ?
बाजी लगायी थी बहन कद्रू के साथ । अगर मैं जीतूंगी तो तू मेरी दासी, अगर मैं हारी तो मैं तेरी दासी ।
ये लोग कभी वचन नहीं तोडते ।
यही उनकी ताकत है ।
वच्न तोडना झूठ बोलने के बराबर है ।
जो झूठ बोलता है वह अंदर से कमजोर होता जाता है ।
झूठ बोलना खुद के जडों को काटने जैसा है ।
अगर सत्य नामक स्थल पर अपने आप को प्रतिष्ठित रखोगे तो जीत और सफलता अपने आप आ जाएंगे ।
पर झूठे व्यक्ति की सफलता चिरकाल तक नहीं रहती ।

क्या गरुड अमृत पीकर अपने आप को अमर नहीं बना सकते थे ?
नहीं करेंगे । क्यों कि वह नागों के लिए है ।
गरुड जब आकाश मार्ग से अमृत लिये जा रहे थे तो श्रीमन्नारायण ने देखा ।
गरुड के साहस को देखकर भगवान भी विस्मित हो गये ।
भगवान ने कहा जो चाहे वर मांगो ।
गरुड ने कहा मैं आपसे भी ऊंचा रहना चाहता हूं ।
भगवान ने गरुड को अपने ध्वज में स्थान दे दिया । चिह्न के रूप में ।
और मुझे अमृत पिये बिना ही अमरत्व और नित्य यौवन प्रदान कीजिये ।
वह भी दे दिया भगवान ने ।
नादान तो हैं ही गरुड ।
बोले भगवान से - आप भी मुझसे वर मांग लो ।
मेरा वाहन बन जाओ ।

इन्द्र देव छोडे नहीं ।
गरुड का पीछा करते आ गये ।
ओर वज्रायुध से गरुड के ऊपर प्रहार किये ।
कुछ नहीं हुआ ।
गरुड ने कहा - मैं उस महर्षि का आदर करता हूं जिनकी हड्डियों से वज्रायुध बना है, मैं आपका भी आदर करता हूं ।
इसलिए वज्रायुध के प्रहार को स्वीकार करके मेरे एक पंख को एक पर को गिरा देता हूं ।
वह पंख इतना खूबसूरत था कि गरुड को उसी से सुपर्ण नाम मिला । पर्ण का अर्थ है पर या पंख ।
सुन्दर पंखोंवाले सुपर्ण ।
इन्द्र देव बोले - मैं आपका दोस्त बनना चाहता हूं । और यह भी देखना चाहता हूं कि आप कितने बलवान हो ।
गरुड बोले - मित्र तो बन जाएंगे , लेकिन अच्छे लोग अपनी शक्ति का दिखावा नहीं करते ।

फिर भी आप मेरे मित्र हो चुके हैं और पूछ रहे हैं तो बताता हूं ।
इस धर्ति के जितने पहाड समुद्र जंगल इन सबको मेरे एक पंख के ऊपर लेकर मैं आकाश में उड सकता हूं ।
इस संपूर्ण विश्व को ही मेरे पीठ पर लेकर मैं उड सकताहूं ।
इन्द्र ने कहा - अगर आप अमृत नहीं पीना चाहते हैं तो वापस दे दीजिए ।
आप जिनको अमृत देने जा रहे हैं वे अच्छे नहीं हैं । उनसे जगत की हानी ही होगी ।
मैं मजबूर हूं । उन्हें मैं ने बोल दिया कि मैं अमृत ला देता हूं । पर मैं ने ऐसा कभी नहीं कहा है कि मैं तुम लोगों को अमृत पिलाऊंगा ।
इसलिए मैं इस कुम्भ को उनके सामने रख दूंगा। आपको जो चाहे कीजिए । मैं आपको नहीं रोकूंगा ।
इन्द्र देव ने कहा - वर मांगिए
सांपों को मेरा भोजन बना दीजिए ।
इस प्रकार सांप गरुड का भोजन बन गये ।
गरुड ने नागों के सामने कुशों के ऊपर अमृत कुम्भ रख दिया ।
अपने वचन को निभाये ।
नाग भी बोले - अब से तुम और तुम्हारी मां दोनों ही स्वतंत्र हो ।
गरुड ने कहा - अमृत बडा पवित्र है, पीने से पहले स्नान तो कर लीजिए ।
जब नाग नहाने गये उस समय इन्द्र देव अमृत को लेकर स्वर्ग चले गये ।
नाग नहाकर आये तो अमृत गायब ।
कुछ तो उन कुशों के ऊपर गिरा होगा सोचकर कुशों को चाटने लगे ।
कुश के तीक्ष्ण कगारों में लगकर उनके जीभ दो भागों में फट गये । तबसे सारे नाग दो जीभवाले हो गये ।
अमृत का स्पर्श होने से कुश भी पवित्र बन गये ।

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