Special - Saraswati Homa during Navaratri - 10, October

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देव, दैत्य और दानवों की उत्पत्ति

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वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं उसे देखकर प्रसन्नता हुई। यह सभी के लिए प्रेरणा है....🙏🙏🙏🙏 -वर्षिणी

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पुराण के कितने कल्प हैं?

पुराणशास्त्र के चार कल्प हैं: १. वैदिक कल्प २. वेदव्यासीय कल्प ३. लोमहर्षणीय कल्प ४. औग्रश्रवस कल्प

गौ पूजन मंत्र क्या है?

ॐ सुरभ्यै नमः

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श्रीसूक्त किस देवी की स्तुति है ?

पृथ्वी पर धर्म और अधर्म के बीच अच्छे और बुरे के बीच असंतुलन था। भूमि देवी इस वजह से धरती का भार वहन नहीं कर पा रही थी। यदि कोई भार संतुलित नहीं है, तो वह एक तरफ झुक जाएगा और उसे ले जाना मुश्किल होगा। हम यह जानते हैं। ....

पृथ्वी पर धर्म और अधर्म के बीच अच्छे और बुरे के बीच असंतुलन था।

भूमि देवी इस वजह से धरती का भार वहन नहीं कर पा रही थी।

यदि कोई भार संतुलित नहीं है, तो वह एक तरफ झुक जाएगा और उसे ले जाना मुश्किल होगा।

हम यह जानते हैं।

भूमि देवी ने ब्रह्मा जी से शिकायत की।

भगवान विष्णु ने देवताओं को साथ में लेकर पृथ्वी पर अवतार लेने का और संतुलन बहाल करने का फैसला किया।

यही है कृष्णावतार के पीछे और देवताओं के अंशावतार के पिछे जैसे युधिष्ठिर, अर्जुन...

जब वैशम्पायन ने यह बात जनमेजय को बताया तो उन्होंने जानना चाहा कि सभी प्राणियों की सृष्टि कैसे हुई।

अब हम यहां कुछ स्पष्ट करना चाहते हैं।

धर्मग्रन्थों में सृष्टि के विषय में दस सिद्धान्त विद्यमान हैं।

विज्ञानेतिवृत्तवादः, सदसद्वादः, रजोवादः, व्योमवादः, अपरवादः, आवरणवादः, अम्भोवादः, अमृतमृत्युवादः, अहोरात्रवादः, दैववादः।

हर कोई एक स्वतंत्र सिद्धांत है।

सृष्टि का कारण, सृष्टि की पद्धति, सृजित ब्रह्माण्ड का स्वरूप - ये सभी इन प्रत्येक सिद्धान्तों में अलग - अलग हैं।

एक पुराण में जो बताया गया है वह दूसरे पुराण में बताए गए से अलग हो सकता है।

वे परस्पर विरोधाभास नहीं हैं, बल्कि एक - दूसरे के पूरक हैं।

इस पर हम फिर कभी बात करेंगे।

यहां, हम महाभारत तक बातों को सीमित रखेंगे।

ब्रह्मा जी के छः मनस पुत्र थे।

अब यहां भी इसकी संख्या अन्यान्य पुराणों में अलग अलग मिलेगा - छः, सात, आठ, नौ।

यह कोई गलती नहीं है, वह कोई विरोधाभास नहीं है।

महाभारत के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, पुलस्त्य और क्रतु।
मानस पुत्र का अर्थ क्या है?
यह मैथुन द्वारा जन्म लिए पुत्र नहीं हैं।

जब ब्रह्मा जी बस यह सोचते हैं कि मुझे एक पुत्र चाहिए तब एक पुत्र का जन्म होता है, यही है मानसपुत्र।

इसके अलावा ब्रह्मा जी के अंगों से भी पुत्र उत्पन्न होते हैं।

दक्ष का जन्म ब्रह्मा के दाहिने अंगूठे से हुआ था।

इसके अलावा ब्रह्मा के कर्मों से पुत्र उत्पन्न होते हैं।

जाम्बवान का जन्म उस समय हुआ था जब ब्रह्मा जी ने जम्हाई ली थी।

कश्यप मरीची के पुत्र थे।

अधिकांश जीव, चल और अचल कश्यप से पैदा हुए थे।

कश्यप की पत्नियां सभी दक्ष की पुत्रियां थीं।

यहां महाभारत के अनुसार इनकी संख्या तेरह थी।

इनके नाम इस प्रकार हैं - अदिति, दिति, दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा, प्राधा, विश्वा, विनता, कपिला, मुनि, और कद्रू।

कद्रू सभी नागों की माँ है।

विनता गरुड़ और अरुण की माता है।

अधिकांश जीवित प्राणी इन दक्ष कन्याओं या दक्ष की पुत्रियों के वंशज हैं हैं।

अधिकांश इसलिए कह रहा हूं कि वंश ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों से भी स्वतंत्र रूप से प्रवृत्त हुए हैं।

अब हम दक्ष की पुत्रियों के वंशजों पर नजर डालते हैं।

अदिति के बारह पुत्र थे।

इन्हें आदित्य कहते हैं।

इनके नाम हैं - धाता, मित्र, आर्यमा, इन्द्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु।

ये सूर्यदेव के बारह स्वरूप हैं।

जैसे इन्द्र शासक है, पूषा पोषण करते हैं, सविता सृष्टि करते हैं, त्वष्टा जीवों को विशेष स्वरूप प्रदान करते हैं, विष्णु उनकी रक्षा करते हैं।

विष्णु अदिति के पुत्रों में सबसे छोटे हैं लेकिन सबसे बहुमुखी और कुशल भी।

इस विष्णु को परमात्मा विष्णु मत समझिए।

यह विष्णु परमात्मा विष्णु का एक अंश हैं।

दिति का एक ही पुत्र था हिरण्यकशिपु।

हिरण्यकशिपु के पांच पुत्र हुए - प्रह्राद, संह्राद, अनुह्राद, शिबि और बाष्कल।

प्रह्राद और प्रह्लाद एक ही हैं।

प्रहलाद के तीन पुत्र हुए - विरोचन, कुम्भ और निकुम्भ।

बलि चक्रवर्ती विरोचन के पुत्र थे।
बलि का पुत्र था बाणासुर जो महाकाल के नाम से प्रसिद्ध महान शिव भक्त था।

दिति के वंशज होने के कारण इन सबको सामूहिक रूप से दैत्य कहते हैं।
अब दक्ष की तीसरी पुत्री दनु।

दानू के चौंतीस पुत्र थे।

वे और उनके वंशज दानव कहलाते हैं।

दिति के वंशज थे दैत्य।

दनु के वंशज थे दानव।
दानवों में सबसे बड़ा नाम विप्रचित्ति का था।

दानवों के बीच एक और महत्वपूर्ण नाम पुलोम था।

वे इंद्र के ससुर थे।

दानवों में भी एक सूर्य और चन्द्र थे।

दानवों के दस वंश प्रसिद्ध हुए - एकाक्ष, मृतपा, प्रलम्ब, नरक, वातापी, शत्रुतपन, शठ, गविष्ठ, वनायु, दीर्घजिह्व।

इस स्तर पर, महाभारत दैत्यों और दानवों को दुष्टों के रूप में चित्रित नहीं करता है।

इसके बजाय, महाभारत ये प्रसिद्ध, शक्तिशाली और वीर बताए गये हैं सृष्टि के समय।

आगे हम दक्ष की अन्य पुत्रियों के वंशों के बारे में देखेंगे।

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