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छोटी बातों की उपेक्षा करने से वे बड़ी आपत्तियों के कारण हो सकती हैं

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मादा गरुड़ पक्षियों की रानी है।  उसमें जो बल और फुर्ती होती है, किसी और पक्षी में नहीं होती।  इसीलिए और पक्षियों पर जब आपत्ति आती है या अन्याय होता है, तो वे उसके पास आकर शिकायत करते हैं ।  मादा गरुड़ उनकी सहायता भी क....

मादा गरुड़ पक्षियों की रानी है। 

उसमें जो बल और फुर्ती होती है, किसी और पक्षी में नहीं होती। 

इसीलिए और पक्षियों पर जब आपत्ति आती है या अन्याय होता है, तो वे उसके पास आकर शिकायत करते हैं । 

मादा गरुड़ उनकी सहायता भी किया करती है ।

एक चिड़िया ने खेत में तीन अंड़े दिये। 

पास के एक खोल में रहनेवाले छोटे चूहे ने उसके दो अंडे चुरा लिये। 

निस्सहाय चिड़िया ने अपनी रानी मादा गरुड़ के पास जाकर कहा  - 'मेरी रक्षा कीजिए। मैं ने तीन अंड़े दिये, उन में से दो को चूहे ने चुरा लिया। वह मेरा तीसरा अंड़ा भी चुराकर मेरी कोख को चोट पहुँचायेगा । इस आपत्ति से आप मेरी रक्षा कीजिये।' 

चिड़िया ने गरुड़ से निवेदन किया।

मादा गरुड़ के पास कितने ही पक्षी थे । 

उनमें कई सौंदर्य, बल, गान, क्रीड़ा आदि के लिए प्रसिद्ध थे । 

शतुर्मुग, बाज़, मोर, गौरय्ये, तोते आदि के मुकाबले में इस बिचारी चिड़िया की क्या बिसात थी। 

इसलिए गरुड़ ने खिझकर कहा- ’अगर हर छोटी बात के लिए तुम मेरे पास आने लगो, तो मैं क्या कर सकती हूँ। अगर तुम्हारे छोटे-से अंड़ों की रक्षा करना भी यदि मेरा काम हो तो मैं क्या राज्य कर सकूँगी ! यही नहीं, अपने बच्चों की रक्षा करना हर माता को सीखना चाहिए। मुझे न तंग करो। अपने अंड़ों की तुम खुद रक्षा करो। ' 

'मैं छोटा-सा पक्षी हूँ। नादान । अनजान। आप को मेरी उपेक्षा करना शोभा नहीं देता।' - चिड़िया ने कहा। 

'तुम मुझे उपदेश देने चली हो । जाओ, जाओ।' - मादा गरुड़ ने कहा। 

चिड़िया दुखी होकर अपने अंड़े के पास आई, अंडे की रक्षा करने के लिए साथ में दूब की घास का टुकड़ा भी लेती आई। 

इतने में चूहा भी आ पहुँचा। 

यह सोचकर कि उसका तीसरा अंडा भी चला जायेगा, उसने घास के टुकड़े से चूहे को मारा। 

वह टुकड़ा सीधे उसकी आँखों में लगा ।

चूहा दर्द न सह सका। 

वह बाण की तरह भागा। 

दिखाई तो देता न था इसलिए वह एक सोते शेर के नाक में घुस गया । 

शेर चौंक कर उठा। 

यह सोचकर कि उसपर कोई बड़ी आपति आनेवाली थी, वह भागकर एक तालाब में कूद गया ।

उस समय, नागों का राजा वासुकी उस तालाब में तैर रहा था। 

अकस्मात् शेर के तालाब में कूदने से वह घबरा उठा, और आकाश में उड़ने लगा। 

इस तरह उड़ते हुए बासुकी ने मेरु पर्वत के शिखर पर मादा गरुड़ के घोंसले को धकेला । 

उस में से एक अंड़ा नीचे गिरकर टुकड़े टुकड़े हो गया।

जब अंड़ा टूट गया, तो मादा गरुड़ ने वासुकी से कहा – 'यह क्या किया तुम ने वासुकी ! मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ! मेरा अंड़ा तुम ने क्यों तोड़ दिया ! कितने सालों बाद मैं ने एक अंड़ा दिया था। देखा, तुमने मेरा कितना नुक्सान किया है !' 

वासुकी ने कहा- ' मैं ने जानबूझकर कुछ नहीं किया है। मैं तालाब में तैर रहा था कि एक शेर चिंघाड़ता मेरी ओर आया । मैं घबड़ाकर हवा में उड़ा। मैं तुम्हारा घोंसला भी नहीं देख सका। '

दोनों ने जाकर शेर से पूछा- चिंघाड़ते हुए तुम तालाब में क्यों कूदे ? जानते हो, इसके कारण कितना नुक्सान हुआ है ?' ' 

'माफ़ कीजिये। मुझे ही नहीं मालूम था कि मैं क्या कर रहा था। मैं जंगल में पड़ा सो रहा था कि मेरी नाक में एक चूहा घुसा। मैं न जान सका कि क्या हुआ था। मैं ने सोचा कि मुझ पर आपति आ पड़ी है, तो मैं भागा । न मैं ने तालाब देखा, न वासुकी को । ' - शेर ने कहा । 

जब चूहे से पूछा गया तो उसने कहा- ' मेरा कोई कसूर नहीं है। मैं चिड़िया का अंड़ा खाने गया तो उसने दूब की घास मेरी आँखों में भोंकी। मेरी आँख फूट गई। हो सकता है कि उस समय में शेर की नाक में चला गया था। मैं जान बूझकर भला क्यों शेर के नाक में घुसता ?'

मादा गरुड़ सब कुछ जान गयी। सारी गलती उसी की थी। 

जब चिड़िया ने आकर उससे शिकायत की थी, तो वह उसे बहुत मामूली लगी थी। 

मादा गरुड़ जान गयी कि छोटी बातों की उपेक्षा करने से वे बड़ी आपत्तियों के कारण हो सकती हैं।

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