Special - Saraswati Homa during Navaratri - 10, October

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गीता एक रहस्यमयी शास्त्र है

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आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

आपका हिंदू शास्त्रों पर ज्ञान प्रेरणादायक है, बहुत धन्यवाद 🙏 -यश दीक्षित

😊😊😊 -Abhijeet Pawaskar

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏🙏 -विजय मिश्रा

वेदधारा का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा है। मेरे जीवन में सकारात्मकता के लिए दिल से धन्यवाद। 🙏🏻 -Anjana Vardhan

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श्री गंगाजी के दर्शन का फल

अग्निपुराण में कहा है जो गंगाजी का दर्शन, स्पर्श, जलपान या मात्र गंगा नाम का उच्चार करता है वह अपनी सैकडों हजारों पीढियों के लोगों को पवित्र कर देता है।

पूजा का उद्देश्य

पूजा ईश्वर से जुड़ने और उनकी उपस्थिति का अनुभव करने के लिए की जाती है। यह आत्मा और भगवान के बीच की कल्पित बाधा को दूर करती है, जिससे भगवान का प्रकाश अबाधित रूप से चमकता है। पूजा के माध्यम से हम अपने जीवन को भगवान की इच्छा के अनुरूप ढालते हैं, जिससे हमारा शरीर और कर्म ईश्वर की दिव्य उद्देश्य के उपकरण बन जाते हैं। यह अभ्यास हमें भगवान की लीला के आनंद और सुख का अनुभव करने में मदद करता है। पूजा में लीन होकर, हम संसार को दिव्य क्षेत्र के रूप में और सभी जीवों को भगवान की अभिव्यक्ति के रूप में देख सकते हैं। इससे एक गहरी एकता और आनंद की भावना पैदा होती है, जिससे हम दिव्य आनंद में डूबकर उसके साथ एक हो जाते हैं।

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श्रीकृष्ण के गुरु कौन हैं ?

गीता एक रहस्यमयी शास्त्र है । क्या है रहस्य शब्द का अर्थ ? रहसि - एकान्त में जिसका ज्ञान दिया जाता है गुरु द्वारा शिष्य को इसे कहते हैं रहस्य । रहस्य क्यों ? जब तक किसी बात में गुप्तता है तब तक उसमें एक अनन्य शक्ति रहती है ।....

गीता एक रहस्यमयी शास्त्र है ।
क्या है रहस्य शब्द का अर्थ ?
रहसि - एकान्त में जिसका ज्ञान दिया जाता है गुरु द्वारा शिष्य को इसे कहते हैं रहस्य ।
रहस्य क्यों ?
जब तक किसी बात में गुप्तता है तब तक उसमें एक अनन्य शक्ति रहती है ।
मान लीजिए आप किसी के ऊपर कानूनी कार्यवाही करने वाले हैं, क्या उसे चल विवरण देते रहेंगे ?
कि मैं ने अब ऐसा किया है, आगे ऐसा करूंगा ।
नहीं न ?
तब उस कार्यवाही में कोई ताकत ही नहीं रहेगी ।
क्योंकि हमारी सबसे बडी शक्ति क्या है?
शारीरिक शक्ति नहीं , मानसिक शक्ति नहीं , बुद्धि शक्ति नहीं, आत्मशक्ति ।
आत्मशक्ति ही सबसे ताकतवर है ।
आत्मशक्ति ही अन्य शक्तियों के माध्यम से काम करती रहती है ।
और आत्मा सर्वदा गुप्त है ।
आत्मा दिखाई देती नहीं न?
हमारे ऋषियों ने इस तथ्य को समझा ।
और शास्त्रों को गोपनीयता के साथ सुरक्षित रखा ।
पहले के गुरुजन अगर किसी शिष्य ने सबके सामने किसी गोपनीय विषय के बारे में सवाल पूछा तो उसे सबके सामने जवाब नहीं देते थे ।
उसे रहसि, एकान्त में ले जाकर समझाते थे ।
जिसमें जिस भी ज्ञान को प्राप्त करने की जहां तक योग्यता है उसे उतना ही ज्ञान मिलें।
वेद के शब्दों में ही यह तत्त्व छिपा हुआ है ।
अग्रिर्ह वै तमग्निरित्याचक्षते परोक्षं परोक्षकामा हि देवा:।
अग्नि का सही नाम अग्नि नहीं है, अग्रि है ।
आप अग्नि शब्द का जितना चाहो व्युत्पत्ति निकालेंगे उसमें से अग्नि का वास्तविक स्वभाव समझ में नहीं आएगा ।
व्यावहारिक स्वभाव समझ में आ सकता है ।
वास्तविक रहस्य स्वभाव अग्रि शब्द में छिपा हुआ है ।
इसी प्रकार -
इन्धो ह वै तमिन्द्र इत्याचक्षते।
इन्द्र इन्द्र नहीं है, इन्ध है
तं वा एतं वरणं सन्तं वरुण इत्याचक्षते परोक्षम्॥
वरुण वरुण नहीं है, वरण है।
वरण को वरुण बताया गया है क्योंकि उस देवता का वास्तविक स्वभान गुप्त रहें ।
सिर्फ उनको ही पता चलें जिनमें उसे जानने की योग्यता है ।
आजकल किसी काल सेन्टर में आप बात करेंगे तो वे अपने असली नाम नहीं बताते हैं ।
कुछ एक नाम रखेंगे - व्यवहार के लिए, अजीत, डानी...
अपने खुद का मोबाईल नंबर वगैरह नहीं देंगे आपको ।
बाद में उनको समस्या हो सकती है ।
सबको असली नाम और नंबर दिया तो, विशेष करके महिला कर्मचारियों के लिए ।
रहस्य वही जाने जिसमें जानने की योग्यता है ।
इसके और भी पीछे जाएंगे तो -
परोक्षप्रिया इव हि देवाः प्रत्यक्षद्विषः
देवताओं को रहस्य ही पसन्द है ।
प्रत्यक्ष पसन्द नहीं है ।
हर बात का खुलासा करना पसन्द नहीं है ।
इसी में उनकी शक्ति है ।
उनके शत्रु असुर उनके बारे में बहुत कम जानते हैं इसी में उनकी शक्ति है ।
दुश्मन देश जासूसी क्यों करता है ?
हमारी सेना के रहस्यों को जानने ।
हम बताते नहीं फिरते हैं कि असल में अपने पास क्या है ।
क्यों कि गुप्तता में ही शक्ति है ।
गीता ही एक गुप्त शास्त्र है ।
जिसे शिष्य अर्जुन गुरु श्रीकृष्ण से जाना ।
भगवान स्वयं कहते हैं -
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्।।4.3।।
यह योग शास्त्र एक रहस्य है ।
तुम मेरी भक्त हो, मित्र हो, इस के कारण बता रहा हूं ।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।
इन रहस्यों का उपदेश तभी गुरुजन करते हैं जब कोई योग्य सेवारत शिष्य विनम्रता और उत्सुकता के साथ सवाल पूछता है ।

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