Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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गरुड स्वर्ग पर आक्रमण करते हैं

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वेदधारा को हिंदू धर्म के भविष्य के प्रयासों में देखकर बहुत खुशी हुई -सुभाष यशपाल

आपके शास्त्रों पर शिक्षाएं स्पष्ट और अधिकारिक हैं, गुरुजी -सुधांशु रस्तोगी

Ram Ram -Aashish

वेदधारा की धर्मार्थ गतिविधियों में शामिल होने पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं - समीर

हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

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अमृत के लिए गरुड ने स्वर्ग पर आक्रमण किया। जानिए आगे क्या हुआ।

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वेङ्कटेश सुप्रभातम् की रचना कब हुई?

वेङ्कटेश सुप्रभातम् की रचना ईसवी सन १४२० और १४३२ के बीच में हुई थी।

अनाहत चक्र को कैसे जागृत करें?

महायोगी गोरखनाथ जी के अनुसार अनाहत चक्र और उसमें स्थित बाणलिंग पर प्रतिदिन ४८०० सांस लेने के समय तक (५ घंटे २० मिनट) ध्यान करने से यह जागृत हो जाता है।

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जब रावण ने अशोक वाटिका में सीता देवि को मारने के लिए तलवार निकाला था तो उन्हें किसने बचाया था ?

गरुड अमृत के लिए स्वर्ग लोक के ऊपर आक्रमण करनेवाले हैं । अमृत ले जाकर नागों को सौंपना है । तभी गरुड और उनकी मां विनता की गुलामी खत्म होगी । देव भी तौयार थे । देवेन्द्र स्वयं वज्रायुध लेकर खडे थे । देव लोक में देवों के....

गरुड अमृत के लिए स्वर्ग लोक के ऊपर आक्रमण करनेवाले हैं ।
अमृत ले जाकर नागों को सौंपना है ।
तभी गरुड और उनकी मां विनता की गुलामी खत्म होगी ।

देव भी तौयार थे ।
देवेन्द्र स्वयं वज्रायुध लेकर खडे थे ।
देव लोक में देवों के अलावा सेना भी है ।
गरुड के आकार को देखकर देवों के सैनिक कांपने लगे ।

उस सम्य अमृत की रक्षा विश्वकर्मा कर रहे थे ।
बहुत बलवान थे विश्व्कर्मा ।
उन्होंने ४८ मिनट तक गरुड से युद्ध किया ।
गरुड ने विश्वकर्मा के ऊपर अपने पंखों से पंजाओं से और चॊंच से बार बार आक्रमण करके उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया ।
मानो विश्वकर्मा मरते मरते बच गये ।

गरुड के पंखों ने इतनी धूल उडायी कि स्वर्ग लोक में अन्धकार छा गया ।
देवों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ।
गरुड देवलोक के सैनिकों को अपने पंजाओं से और चोंच से चीरते गये । पंखों से मार मार कर उन्हें तोडते गये ।
इन्द्र देव ने वायु भगवान से धूल को हटाने कहा ।
रोशनी वापस आने पर देव सेना गरुड के ऊपर हथियारों से आक्रमण करने लगी ।

गरुड आसमान पर बादल जैसे छाए हुए थे । जोर जोर से गर्जना कर रहे थे ।
देव हथियार बरसा रहे थे गरुड के ऊपर ।
गरुड ने जरा भी परवाह नहीं किया ।
गरुड ने अपने पंखों से और छाती के धक्के से बहुत साते सैनिकों मार गिराया ।
जो बच गये वे इधर उधर भागने लगे ।
साध्य और गन्धर्व पूरब की ओर भागे
वसु गण और रुद्र गण दक्षिण की ओर भागे ।
आदित्य पश्चिम की ओर भागे ।
अश्विनी कुमार उत्तर की ओर भागे ।

इसके बाद नौ महान पराक्रमी यक्ष गरुड से लडने आये ।
उन्हें भी गरुड ने चीर दिया ।



इतने में गरुड को अमृत कुंभ दिखाई दिया ।
उसकी चारों भयानक जलती हुई आग थी ।
आकाश तक बडी ज्वालाएं उठ रही थी ।
गरुड ने अपने शरीर में से आठ हजार एक सौ मुंह प्रकट करके उनमें नदियों का जल लेकर उस आग को बुझा डाला ।
तब गरुड ने उस अमृत कुंभ की चारों ओर घूमता हुआ एक लोहे के चक्र को देखा ।
उसकी धार बडी तीखी थी ।
जो भी उसके पास जाएगा वह टुकडा टुकडा हो जाएगा ।
वह धधकता हुआ चक्र तेजी से घूम भी रहा था ।
इस चक्र का पार करके ही अमृत कुंभ तक पहुंचा जा सकता है ।
गरुड अपने शरीर को अणु रूप करके उस चक्र के अरों के बीच में से अन्दर चले गये ।

अमृत कुंभ की रक्षा के लिए दो नाग खडे थे ।
उनकी आंखों में भी इतना जहर भरा हुआ था कि वे सिर्फ देखने से ही किसी को भी भस्म कर सकते थे ।
बडे क्रोधी थे दोनों नाग ।
गरुड अपने स्वरूप को फिर से अपनाया उनकी आंखों में धूल झोंक दिया और उन्हें टुकडे टुकडे कर डाला ।

अमृत कुंभ को लेकर गरुड आकाश में उड गये ।

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