Special - Hanuman Homa - 16, October

Praying to Lord Hanuman grants strength, courage, protection, and spiritual guidance for a fulfilled life.

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गणेश, दुर्गा, क्षेत्रपाल, वास्तु पुरुष, रुद्र, इंद्र, मृत्यु और अग्नि की कृपा के लिए मंत्र

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अच्छा मंत्र, इसकी ऊर्जा महसूस कर रहा हूँ! 😊 -जयप्रकाश कुमार

आपकी वेबसाइट अद्वितीय और शिक्षाप्रद है। -प्रिया पटेल

आपके मंत्र बहुत प्रेरणादायक हैं। 🙏 -विपुल सिंह

आभारी हूँ -gyan prakash

इस मंत्र से मन को शांति मिलती है 🌼 -Mukesh Sengupta

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हनुमान जी किन सद्गुणों के प्रतीक हैं?

हनुमान जी भक्ति, निष्ठा, साहस, शक्ति, विनम्रता और निस्वार्थता के प्रतीक हैं। यह आपको इन गुणों को अपने जीवन में अपनाने, व्यक्तिगत विकास और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित और मार्गदर्शन करेगा।

वैष्णो देवी का जन्म कैसे हुआ?

त्रेतायुग में एक बार महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती ने अपनी शक्तियों को एक स्थान पर लाया और उससे एक दिव्य दीप्ति उत्पन्न हुई। उस दीप्ति को धर्म की रक्षा करने के लिए दक्षिण भारत में रत्नाकर के घर जन्म लेने कहा गया। यही है वैष्णो देवी जो बाद में तपस्या करने त्रिकूट पर्वत चली गयी और वहां से भक्तों की रक्षा करती है।

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अर्जुन के शंख का नाम क्या है ?

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपवश्रवस्तमम्। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्।। जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः। स नः पर्षदति दुर्गानि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरि....

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपवश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्।।
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गानि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः।।
क्षेत्रस्य पतिना वयं हितेनेव जयामसि।
गामश्वं पोषयित्न्वा स नो मृडातीदृशे।।
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवा नः।
यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शन्न एधि द्विपदे शं चतुष्पदे।।
वास्तोष्पते शग्मया शंसदा ते सक्षीमहि रण्वया गातुमत्या।
आ वः क्षेम उत योगे वरन्नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।।
वास्तोष्पते प्र तरणो न एधि गोभिरश्वेभिरिन्दो।
अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान् प्रति नो जुषस्व।।
अमीवहा वास्तोष्पते विश्वा रूपाण्याविशन्।
सखा सुषेव एधि नः।।
त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
यत इन्द्र भयामहे ततो नो अभयं कृधि।
मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतये विड्विशो विमृधो जहि।।
स्वस्तिदा विशस्पतिर्वृत्रहा वि मृधो वशी।
वृषेन्द्रः पुर एतु नः स्वस्तिदा अभयङ्करः।।
येते सहस्रमयुतं पाशा मृत्यो मर्त्याय हन्तवे।
तान् यज्ञस्य मायया सर्वानव यजामहे।
मूर्धानन्दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृताय जातमग्निम्।
कविं सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः।।

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