गणेश जी गजानन कैसे बनें?

 

पार्वतीजी एक बार स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने नन्दी से कहा कि स्नानगृह के द्वार पर खड़े होकर पहरा दें और कोई अन्दर न आए।
बीच में भगवान शंकर आए और अन्दर चले गए। नन्दी ने कुछ नहीं कहा। आखिर वे स्वामी हैं, उन्हें कैसे रोकें?
पार्वतीजी व्याकुल हो गईं। 'मेरा अपना कोई नहीं है। जितने भी सेवक और परिवार हैं, वे सभी तो शंकरजी के साथ जुड़े हुए हैं। सबकी निष्ठा उनके प्रति है। मेरी सेवा इसीलिए करते हैं कि मैं उनकी पत्नी हूँ। मेरा सिर्फ अपना कहने के लिए कोई नहीं है, मेरे लिए सिर्फ मेरे लिए भरोसेमंद कोई नहीं है जिसकी श्रद्धा और भक्ति सिर्फ मेरे प्रति हो।'

अगली बार स्नान करते समय, उन्होंने अपने शरीर पर लगे हल्दी के लेप से थोड़ा निकालकर एक सुंदर बच्चे का रूप बनाया और उसमें प्राण भी दे दिए।
यही हैं श्री गणेशजी, जिनकी भक्ति, श्रद्धा और निष्ठा सौ प्रतिशत अपनी माँ की तरफ है, और किसी से नहीं। भगवान शंकर से कोई दायित्व नहीं।
स्नानगृह के द्वार की रक्षा करने गणेशजी खड़े हो गए। उन्होंने सोचा, 'देखता हूँ कौन इस बार अन्दर जाता है।'

भोलेनाथ घूमते हुए द्वार पर पहुँचे, तो वहाँ एक छोटा सा बालक खड़ा था।
भगवान अन्दर जाने लगे, तो बालक ने कहा – 'आप अन्दर नहीं जा सकते।'
भगवान ने पूछा – 'जानते नहीं हो मैं कौन हूँ?'
बालक बोला – 'आप जो भी हों, इस वक्त अन्दर नहीं जा सकते।'
महादेव ने अपने भूतगण से कहा – 'इस घमंडी बालक को मार दो।'
गणेशजी और शिवगण के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया।
सारा भूतगण मिलकर भी गणेशजी को कुछ नहीं कर पाया। गणेशजी ने शिवगण को चूर-चूर कर दिया।
गुस्से में आकर महादेव ने अपने त्रिशूल से बाल गणेश का शिरच्छेद कर दिया।

जब पार्वतीजी को पता चला कि उनके पुत्र का वध महादेव ने किया है, तो वे क्रोध से धधक उठीं। वे आदि पराशक्ति हैं।
उनमें समस्त विश्व को एक हुंकार से भस्म करने की ताकत है।
उन्होंने योगिनियों की अपनी सेना को बुलाया और कहा – 'नष्ट कर दो इस जगत को। अब मेरा यहाँ कुछ नहीं रहा।'

ब्रह्माजी आए और बोले – 'ऐसा मत कीजिए, शांत हो जाइए, अपने क्रोध को संभालिए।'
पार्वतीजी ने दो शर्तें रखीं -
'मेरे पुत्र को तुरंत जीवित किया जाए और सारे देवताओं के बीच प्रथम स्थान मेरे पुत्र को दिया जाए।'

महादेव ने ब्रह्माजी से कहा – 'आप जाकर जो भी प्राणी सबसे पहले मिल जाए, उसका सिर ले आइए।'
ब्रह्माजी गए और एक हाथी का सिर लेकर लौटे।
भगवान शंकर ने उस सिर को गणेशजी के धड़ पर जोड़ दिया और उन्हें वापस जीवित कर दिया।
जैसा पार्वती माता ने माँगा था, गणेशजी को देवों के बीच प्रथम स्थान भी दिया गया।

देखो गणेशजी की लीला - कुछ लोग सोचते हैं कि गणेशजी को महादेव के पुत्र कैसे मानें। वे तो केवल गौरीपुत्र हैं, और उनकी उत्पत्ति तब हुई जब माता ने शंकरजी से एकान्त चाहा।
गौर से देखो - जिस बच्चे को माता ने अपने शरीर पर लगे हल्दी के लेप से बनाया था, उसका तो शिरच्छेद हो गया।
लेकिन फिर उस शरीर में प्राण किसने डाले? महादेव ने।
प्राणदाता पिता होता है कि नहीं?
इस नए जीवन में पार्वतीजी जिन्होंने शरीर दिया, वे माता बनीं, और महादेव जिन्होंने प्राण दिए, वे पिता बने।

गणेशजी की उत्पत्ति के बारे में गणेश पुराण का वर्णन कुछ अलग है।
उसमें गणेशजी का महादेव द्वारा शिरच्छेद का उल्लेख नहीं है।
गणेश पुराण के अनुसार त्रेतायुग में श्री गणेशजी ने मयूरेश के रूप में अवतार लिया था - मोरेश्वर।
अपने अवतार का उद्देश्य समाप्त करके लौटते वक्त उन्होंने देवताओं और ऋषिमुनियों को वचन दिया कि वे गजानन के रूप में द्वापर युग में शंकर-पार्वती के पुत्र बनकर पुनः अवतार लेंगे।
इसके अनुसार गणेशजी का जन्म भी साधारण तरीके से हुआ था।
पार्वतीजी गर्भवती बनीं महादेव से -
'ततोऽकस्माद्धैमवती शिवानुग्रहतो दधौ गर्भं स ववृधेत्यन्तं दिने दिने यथा शशी।'
तत्पश्चात नवम मास में उस बालक को जन्म दिया।

उस बालक का सिर मनुष्य का ही था, लेकिन चार हाथ थे, जिनमें परशु, कमल, अक्षमाला और मोदक थे।
जन्म लेते ही गणेशजी के सिर पर मुकुट और शरीर पर दिव्य आभूषण थे।
उनकी दीप्ति करोड़ों सूर्य के समान थी।
पार्वतीजी ने उनसे पूछा – 'कौन हैं आप?'

गणेशजी ने उत्तर दिया -
'गुणेशोऽहमनेकानां ब्रह्माण्डानां विनायकः।
असंख्याता मेवतारा न ज्ञायन्ते अमरैरपि।
इच्छया सृष्टिसंहारपालनानि करोम्यहम्।'

'मैं विनायक हूँ, असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी।
मेरे अनेक अवतारों के बारे में देवता भी पूर्ण रूप से नहीं जानते।
जगत की सृष्टि, पालन और संहार मैं स्वेच्छा से करता हूँ।'

पार्वतीजी ने कहा - 'आप हमें छोड़के कभी मत जाइए।'
श्री गणेश ने तब वह रूप धारण किया जो शाश्वत है, जिसमें परमात्मा स्वरूप और जीवात्मा स्वरूप, गज और नर दोनों विद्यमान हैं।

एवं वदन्त्यां तस्यां तु देवो रूपान्तरं दधौ।
चतुर्भुजं भालचन्द्रं शुण्डादण्डविराजितं।

गणेशजी का यह रूप शाश्वत है।

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