जमवाय माता पहले बुढवाय माता कहलाती थी। दुल्हेराय का राजस्थान आने के बाद ही इनका नाम जमवाय माता हुआ।
Bhakti Ratnavali was written by Vishnu Puri of Mithila under instruction from Chaitanya Mahaprabhu. It is a collection of all verses pertaining to bhakti from Srimad Bhagavata.
लोकप्रियता के लिए अथर्ववेद मंत्र
इयं वीरुन् मधुजाता मधुना त्वा खनामसि । मधोरधि प्रजातासि....
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विद्याप्रद सरस्वती स्तोत्र
विश्वेश्वरि महादेवि वेदज्ञे विप्रपूजिते। विद्यां प्रद....
Click here to know more..भगवती काली
'काली' शब्द का अर्थ है—'काल' की पत्नी ।' 'काल' शिवजी का नाम है, अतः शिव-पत्नी को ही 'काली' की संझा से अभिहित किया गया है। इन्हें 'आद्या काली' भी कहते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के 'दुर्गा सप्तशती खण्ड' में भगवती अम्बिका के ललाट से 'जिन 'काली' की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है, भगवती आद्या काली उनसे भिन्न है । भगवती अम्बिका के ललाट से उत्पन्न काली दुर्गा की त्रिमूर्तियों में से एक हैं। उनके ध्यान का स्वरूप भी आद्या काली के ध्यान से भिन्न है ।
तन्त्र शास्त्रों में आद्या भगवती के दस भेद कहे गए हैं- (१) काली, (२) तारा, (३) षोडशी, (४) भुवनेश्वरी, (५) भैरवी, (६) छिन्नमस्ता, (७) धूमावती, (८) बगला, (१) मातंगी एवं (१०) कमलात्मिका । इन्हें सम्मिलित रूप में 'दशमहाविद्या' के नाम से भी जाना जाता है। इनमें भगवती काली मुख्य हैं।
भगवती काली के रूप-भेद असंख्य हैं । आदि भगवती की ही प्रतिरूपा हैं, तथापि इनके (१) चिन्तामणि काली, (२) स्पर्शमणि काली, (३)
तत्त्वतः सभी देवियाँ, योगिनियाँ आठ भेद मुख्य माने जाते हैं- सन्ततिप्रदा काली, (४) सिद्धि- - काली (५) दक्षिणा काली, (६) कामकला काली, (७) हंस काली एवं (द) गुह्य काली । 'काली-कम-दीक्षा' में भगवती काली के इन्हीं आठ भेदों के मन्त्र दिए जाते हैं। इनके अतिरिक्त (१) भद्रकाली, (२) श्मशानकाली तथा (३) महाकाली- ये तीन भेद भी विशेष प्रसिद्ध हैं तथा इनकी उपासना भी विशेष रूप से की जाती है।
दशमहाविद्याओं के मन्त्र जप ध्यान पूजन तथा प्रयोग की विधियाँ कवच- स्तोत्र, सहस्रनाम आदि प्रथक्-प्रथक हैं। अतः इन सभी देवियों के सम्बन्ध में हमने प्रथक्-प्रथक ग्रंथों का संकलन किया है।
भगवती कालिका के स्वरूपों में 'दक्षिणा काली' मुख्य हैं। इन्हें 'दक्षिण कालिका' तथा दक्षिणा कालिका आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है।
अतः काली उपासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय भी भगवती दक्षिणा काला हो है प्रस्तुत ग्रंथ में उन्हीं के विविध मन्त्रों की साधन-विधियों का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
गुह्यकाली, भद्रकाली, श्मशान काली तथा महाकाली - ये चारों स्वरूप भी प्रकारान्तर से भगवती दक्षिणा कालिका के ही हैं तथा इनके मन्त्रों का जप, न्यास, पूजन, ध्यान आदि भी प्रायः भगवती दक्षिणा काली की भांति ही किया जाता है, अतः इन चारों के मन्त्र तथा ध्यानादि के भेदों को भी इस सङ्कलन में समाविष्ट कर लिया गया है।
भगवती काली को अनादिरूपा, आया विद्या, वृह्मस्वरूपिणी तथा केवल्य यात्री माना गया है। अन्य महाविद्याएँ मोक्षदात्री कही गई हैं।
दशमहाविद्याओं में भगवती षोडशी (जिन्हें 'त्रिपुर सुन्दरी' भी कहा जाता है), भुवनेश्वरी तथा छिन्नमस्ता रजोगुण प्रधाना एवं सत्वगुणात्मिका हैं, अतः ये गौण रूप से मुक्तिदात्री हैं।
धूमावती, भैरवी, बगला, मातंगी तथा कमलात्मिका- ये सब देवियाँ तमोगुण प्रधाना हैं, अतः इनकी उपासना मुख्यतः षट्कर्मों में ही की जाती है।
शास्त्रो के अनुसार- 'पवशून्ये स्थिता तारा सर्वान्ते कालिकास्थिता।" अर्थात् पांचों तत्त्वों तक सत्वगुणात्मिका भगवती तारा की स्थिति है तथा सबके अन्त में भगवती काली स्थित है अर्थात् भगवती काली आद्याशक्ति चित्तशक्ति के रूप में विद्यमान रहती हैं। अस्तु, वह अनित्य, अनादि, अनन्त एवं सब की स्वामिनी है। वेद में 'भद्रकाली' के रूप में इन्हीं की स्तुति की गई है।
जैसाकि बारम्बार कहा गया है, भगवती काली अजन्मा तथा निराकार है, तथापि भावुक भक्तजन अपनी भावनाओं तथा देवी के गुण कार्यों के अनुरूप उनके काल्पनिक साकार रूप की उपासना करते हैं। भगवती चूंकि अपने भक्तों पर स्नेह रखती हैं, उनका कल्याण करती हैं तथा उन्हें युक्ति-मुक्ति प्रदान करती हैं, अतः वे उनके हृदयाकाश में अभिलषित रूप में सरकार भी हो जाती है। इस प्रकार निराकार होते हुए भी वे साकार हैं, अदृश्य होते हुए भी दृश्यमान हैं।
दक्षिणा काली
'भगवती का नाम' दक्षिणा काली' क्यों है अथवा 'दक्षिणा काली' शब्द का भावार्थ क्या है ? इस सम्बन्ध में शास्त्रों ने विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं, जो संक्षेप में इस प्रकार हैं-
'निर्वाण तन्त्र' के अनुसार-
(१) दक्षिण दिशा में रहने वाला सूर्यपुत्र रम' काली का नाम सुनते ही भयभीत होकर दूर भाग जाता है, अर्थात् वह काली उपासकों को नरक में नहीं ले जा सकता, इसीकारण भगवती को 'दक्षिणा काली' कहते हैं।
अन्य मतानुसार-
(२) जिस प्रकार किसी धार्मिक कर्म की समाप्ति पर दक्षिणा फल की सिद्धि देने वाली होती है, उसी प्रकार भगवती काली भी सभी कर्म-फलों की सिद्धि प्रदान करती है, इस कारण उनका नाम दक्षिणा है।
(३) देवी वर देने में अत्यन्त चतुर हैं इसलिए उन्हें 'दक्षिणा' कहा
जाता है।
(४) सर्वप्रथम दक्षिणामूर्ति भैरव ने इनकी आराधना की थी, अतः भगवती को 'दक्षिणा काली' कहते हैं।
(५) पुरुष को दक्षिण तथा शक्ति को 'वामा' कहते हैं। वही वामा दक्षिण पर विजय प्राप्त कर, महामोक्ष प्रदायिनी बनी, इसी कारण तीनों लोकों में उन्हें 'दक्षिणा' कहा गया है।
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