उज्जैन क्षेत्र महात्म्य
क्षेत्र भूमि वर्णन

उज्जैन यह क्षेत्र एक योजन यानी चार कोस प्रमाण का पृथ्वी पर है इस ज़मीन की आकृत्ति चौकोन है और इसके मध्य बिन्दु में क्षेत्राधिपति श्री महाकालेश्वर का ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान है और उज्जैन क्षेत्र के नाभिस्थान से ४–४ कोस की दूरी पर इसके पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर द्वार हैं उन पर पिंगलेश्वर, कायावरोहणेश्वर, बिल्वेश्वर और दर्दरेश्वर नामक चार रक्षपाल चारों दिशाओं के रक्षक हैं और क्षेत्र के मध्य- बिंदु पर श्री महाकालेश्वर महाराज का मंदिर है।

भारतवर्ष के सर्व क्षेत्रों से अवन्तिकापुरी का महात्म अधिक है क्योंकि भरतखण्ड एक महा क्षेत्र है इसमें अवन्तिकापुरी इसका मध्य- बिंदु नाभिस्थान है और इसके पूर्व में श्री जगन्नाथ- पुरी, दक्षिण में श्री रामेश्वर, पश्चिम में श्री द्वारि- कापुरी और उत्तर में श्री बद्रिकाश्रम ये चार द्वार हैं इन्हीं को चार धाम कहते हैं। इस महाक्षेत्र केनाभि स्थल अवन्तिका क्षेत्र के मध्य में श्री महा- कालेश्वर नामक शिवलिंग इस महाक्षेत्र के अधि-
हैं । इस प्रकार भारतवर्ष के सर्व क्षेत्रों में अवन्तिकापुरी को मेरुस्थान मिला है इसलिए यह पुरी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है । यह क्षेत्र पुरा- यादि ग्रंथों में उज्जयिनी या अवंतिका इस नाम से और इस समय में उज्जैन नामक शहर से प्रसिद्ध है परन्तु क्षेत्रमहात्मों में जो इसके 8 नौ नाम दिये गये हैं वे प्रति कल्पों में बदलते गये हैं ऐसा वर्णन किया गया है ।
(१) कनकशृंगा (२) कुशस्थली (३) अवन्तिका (४) प्रतिकल्पा (५) पद्मावती (६) कुमुद्वती (७) अमरावती (८) विशाला ( 8 ) उज्जयिनी ।
ऐसे- अयोध्या, मथुरा,, माया, काशी, कांची अवन्तिका, पुरी, द्वारावती चैव शप्ते तामोक्षदा- यिकाः इस श्लोक में ऊपर लिखे माफ़िक सात क्षेत्र मोक्ष के देने वाले बतलाये गये हैं लेकिन इनमें भी अवन्तिकापुरी ही सर्वश्रेष्ठ है । वह इस वास्ते कि- स्मशानमूखरं क्षेत्रं पीठं तु वनमेव च; पंचैकत्र न लभ्यते महाकालवनादृते ।
इस क्षेत्र में मोक्ष प्राप्ति के लिए साधन भूत जो पांच तत्व (१) स्मशान (२) ऊषर ( ३ )
वन ( ४ ) क्षेत्र ( ५ ) पीठ
यह पांच महापुण्य कारक मोक्ष को देने वाले योग इकट्ठे हुये हैं । ये अवन्तिका क्षेत्र के सिवाय अन्य किसी क्षेत्र में एकत्र नहीं हैं इसलिए यह क्षेत्र शेष सर्व क्षेत्रों से श्रेष्ठ माना जाता है उक्त पांचों के लक्षण निम्न लिखित हैं।
( १ ) स्मशान उसे कहते हैं जहां भूतों का निवास स्थान है यह जगह शंकर को बड़ी प्रिय है। (२) ऊपर उसे कहते हैं जिस भूमि में मृत्यु होने से फिर जन्म धारण नहीं करना पड़ता । (३) बन यानी जंगल इसको महाकाल बन कहते हैं ।
( ४ ) दक्षेत्र उसे कहते हैं जो पापों को नाश करता है ।
(५) पीठ उसे कहते हैं जहां देवी का स्थान है इसको हरसिद्ध पीठ कहते हैं।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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