Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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आयुष्य सूक्त

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वेदधारा का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा है। मेरे जीवन में सकारात्मकता के लिए दिल से धन्यवाद। 🙏🏻 -Anjana Vardhan

फ़ायदा हो रहा है ....धन्यवाद....🙏🙏🙏🙏🙏 -सुनील

सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

हरबार जब मैं इन मंत्रों को सुनता हूँ, तो मुझे बहुत शांति मिलती है -प्रकाश मिश्रा

यह मंत्र चिंता को दूर करता है -devesh varshney

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द्वारका किस समुद्र में डूबी हुई है?

अरब सागर में।

श्राद्ध से समस्त प्राणियों की तृप्ति

श्राद्ध से केवल अपने पितरों की ही संतृप्ति नहीं होती, अपितु जो व्यक्ति विधिपूर्वक अपने धनके अनुरूप श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मा से लेकर घास तक समस्त प्राणियों को संतृप्त कर देता है। - ब्रह्मपुराण

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यो ब्रह्मा ब्रह्मण उज्जहार प्राणैः शिरः कृत्तिवासाः पिनाकी । ईशानो देवः स न आयुर्दधातु तस्मै जुहोमि हविषा घृतेन ॥ १ ॥ विभ्राजमानः सरिरस्य मध्या-द्रोचमानो घर्मरुचिर्य आगात् । स मृत्युपाशानपनुद्य घोरानिहायुषेणो घृतम....

यो ब्रह्मा ब्रह्मण उज्जहार प्राणैः शिरः कृत्तिवासाः पिनाकी ।
ईशानो देवः स न आयुर्दधातु तस्मै जुहोमि हविषा घृतेन ॥ १ ॥
विभ्राजमानः सरिरस्य मध्या-द्रोचमानो घर्मरुचिर्य आगात् ।
स मृत्युपाशानपनुद्य घोरानिहायुषेणो घृतमत्तु देवः ॥ २ ॥
ब्रह्मज्योति-र्ब्रह्म-पत्नीषु गर्भं यमादधात् पुरुरूपं जयन्तम् ।
सुवर्णरम्भग्रह-मर्कमर्च्यं तमायुषे वर्धयामो घृतेन ॥ ३ ॥
श्रियं लक्ष्मी-मौबला-मम्बिकां गां षष्ठीं च यामिन्द्रसेनेत्युदाहुः ।
तां विद्यां ब्रह्मयोनिग्ं सरूपामिहायुषे तर्पयामो घृतेन ॥ ४ ॥
दाक्षायण्यः सर्वयोन्यः स योन्यः सहस्रशो विश्वरूपा विरूपाः ।
ससूनवः सपतयः सयूथ्या आयुषेणो घृतमिदं जुषन्ताम् ॥ ५ ॥
दिव्या गणा बहुरूपाः पुराणा आयुश्छिदो नः प्रमथ्नन्तु वीरान् ।
तेभ्यो जुहोमि बहुधा घृतेन मा नः प्रजाग्ं रीरिषो मोत वीरान् ॥ ६ ॥
एकः पुरस्तात् य इदं बभूव यतो बभूव भुवनस्य गोपाः ।
यमप्येति भुवनग्ं साम्पराये स नो हविर्घृत-मिहायुषेत्तु देवः ॥ ७ ॥
वसून् रुद्रा-नादित्यान् मरुतोऽथ साध्यान् ऋभून् यक्षान् गन्धर्वाग्श्च
पितॄग्श्च विश्वान् ।
भृगून् सर्पाग्श्चाङ्गिरसोऽथ सर्वान् घृतग्ं हुत्वा स्वायुष्या महयाम
शश्वत् ॥ ८ ॥

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