भगवान और उनके नाम अविच्छेद्य हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार भगवन्नाम का प्रभाव भगवान से अधिक हैं। भगवान ने जो प्रत्यक्ष उनके संपर्क में आये उन्हें ही सुधारा। उनका नाम पूरे विश्व में आज भी करोडों का भला कर रहा है।
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं यो न जानाति साधकः । शतलक्षप्रजप्तोऽपि तस्य मन्त्रो न सिध्यति - जो व्यक्ति मंत्र का अर्थ और सार नहीं जानता, वह इसे एक अरब बार जपने पर भी सफल नहीं होगा। मंत्र के अर्थ को समझना महत्वपूर्ण है। मंत्र के सार को जानना आवश्यक है। इस ज्ञान के बिना, केवल जप करने से कुछ नहीं होगा। बार-बार जपने पर भी परिणाम नहीं मिलेंगे। सफलता के लिए समझ और जागरूकता आवश्यक है।
स्वयंभू और परमेष्ठी - सूर्यमण्डल - चंद्रमण्डल और पृथ्वी। ऐसे तीन तीन संस्थाएं हैं। हमारे शरीर को देखिए। इसमें शरीर भी है और आत्मा भी है। शरीर को हम देख सकते हैं, आत्मा को देख नहीं सकते। शरीर कुछ सालों बाद गिर जाएग....
स्वयंभू और परमेष्ठी - सूर्यमण्डल - चंद्रमण्डल और पृथ्वी।
ऐसे तीन तीन संस्थाएं हैं।
हमारे शरीर को देखिए।
इसमें शरीर भी है और आत्मा भी है।
शरीर को हम देख सकते हैं, आत्मा को देख नहीं सकते।
शरीर कुछ सालों बाद गिर जाएगा, इसलिए शरीत क्षर है, शरीर का नाश होता है।
जीवात्मा का नाश नहीं होता।
वह मरण के बाद दूसरे शरीर को अपनाता है।
इसलिए जीवात्मा है अक्षर, अविनाशी।
अपने कर्म के अनुसार यह बार बार जन्म लेता रहेगा।
कल्पांत तक, अगले कल्प में भी।
जब तक उसे अपरा मुक्ति न मिल जाएं।
अपरा मुक्ति मिलने पर वापस धरती पर जन्म नहीं लेना पडेगा।
बार बार धरती पर जन्म नहीं लेना पडेगा।
वैकुण्ठ, कैलास, सत्यलोक जैसे दिव्य लोकों में नित्य निवास मिलना है अपरा मुक्ति।
अपरा मुक्ति का आपको मालूम होगा, पांच भेद हैं।
सालोक्य - भगवान के साथ उनके लोक में रहना।
सामीप्य - भगवान के समीप में ही सर्वदा रहना।
सारूप्य - भगवान के जैसा रूप की प्राप्ति।
सार्ष्टि - भगवान की जैसी शक्ति को पाना।
और सायुज्य - भगवान में विलीन हो जाना।
ये सारे अपरा मुक्ति हैं।
इनमें आप पृथ्वी और चंद्रमण्डल से उठकर सूर्यमण्डल तक आ जाते हैं।
सूर्यमण्डल से भी ऊपर है दो लोक- परमेष्ठी और स्वयंभू।
विश्व आपको सूर्यमण्डल के नीचे ही दिखाई देगा।
सूर्यमण्डल के ऊपर सब कुछ अव्यक्त है।
अभिव्यक्ति नहीं है।
एक सा है।
जैसे पूरा समंदर एक सा दिखाई देता है, वैसा ही कुछ है।
पेड पौधे, पहाड, प्राणी कुछ भी नहीं हैं।
अपरा मुक्ति में सिर्फ आपका पर्यावरण बदलता है।
यहां धरती पर आपके साथ दूसरे मानव हैं तो वैकुण्ठ में आपके साथ विष्णु पार्षद रहेंगे।
वहां भी शरीरी रहेंगे।
पर सूर्यमण्डल का भेद करके उसके भी ऊपर जाने पर आपका जो पृथक अस्तित्व है वह ही खत्म हो जाएगा।
अपरा मुक्ति में जब उसकी चरमावस्था सायुज्य होता है, जो भगवान में लय होना है, उसमें भी उसके बाद भी आपका भागवान के रूप में एक अस्तित्व रहेगा।
पर परामुक्ति में वह भी नहीं।
गीता का लक्ष्य परामुक्ति है।
गीता आपको परामुक्ति की ओर ले जाती है।
जीवन की बाधाओं को भगवान गणेश के शक्तिशाली मंत्र से दूर करें
भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करें इस शक्तिशाली मंत्र क....
Click here to know more..नौकरी पाने और सुरक्षित करने के लिए प्राचीन शाबर मंत्र
यह शाबर मंत्र आपको जल्दी नौकरी पाने और नौकरी को सुरक्षित ....
Click here to know more..अष्टमूर्ति रक्षा स्तोत्र
हे शर्व भूरूप पर्वतसुतेश हे धर्म वृषवाह काञ्चीपुरीश। दव....
Click here to know more..Astrology
Atharva Sheersha
Bhagavad Gita
Bhagavatam
Bharat Matha
Devi
Devi Mahatmyam
Festivals
Ganapathy
Glory of Venkatesha
Hanuman
Kathopanishad
Mahabharatam
Mantra Shastra
Mystique
Practical Wisdom
Purana Stories
Radhe Radhe
Ramayana
Rare Topics
Rituals
Rudram Explained
Sages and Saints
Shani Mahatmya
Shiva
Spiritual books
Sri Suktam
Story of Sri Yantra
Temples
Vedas
Vishnu Sahasranama
Yoga Vasishta
आध्यात्मिक ग्रन्थ
कठोपनिषद
गणेश अथर्व शीर्ष
गौ माता की महिमा
जय श्रीराम
जय हिंद
ज्योतिष
देवी भागवत
पुराण कथा
बच्चों के लिए
भगवद्गीता
भजन एवं आरती
भागवत
मंदिर
महाभारत
योग
राधे राधे
विभिन्न विषय
व्रत एवं त्योहार
शनि माहात्म्य
शिव पुराण
श्राद्ध और परलोक
श्रीयंत्र की कहानी
संत वाणी
सदाचार
सुभाषित
हनुमान