Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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अन्त्येष्टि न करने के दुष्परिणाम

अन्त्येष्टि न करने के दुष्परिणाम

शास्त्रों में अन्त्येष्टि न करने से होने वाले गंभीर परिणामों का वर्णन है, जिन्हें जानकर हृदय द्रवित हो जाता है। इसलिए, अन्त्येष्टि के महत्व को समझना और इसका विधिपूर्वक पालन करना अत्यंत आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि मृत व्यक्ति अपनी महायात्रा में स्थूल शरीर तक नहीं ले जा सकता, तो भोजन और जल कैसे ले जाएगा? ऐसे में, उसके परिजनों द्वारा अन्त्येष्टि के माध्यम से प्रदान किया गया अन्न और जल ही उसे प्राप्त होता है।

शास्त्रों में मृत्यु के बाद पिंडदान का विधान बताया गया है। सबसे पहले शवयात्रा के दौरान छह पिंड अर्पित किए जाते हैं, जिनसे भूमि के देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और भूत-पिशाच के कष्टों का निवारण होता है। इसके बाद दशगात्र के अंतर्गत दिए गए दस पिंड मृतात्मा को सूक्ष्म शरीर प्रदान करते हैं, जो उसकी महायात्रा के आरंभ के लिए आवश्यक होता है।

आगे की यात्रा के लिए मृतात्मा को अन्न और जल (पाथेय) की आवश्यकता होती है, जो उत्तम षोडशी के अंतर्गत पिंडदान से उपलब्ध होता है। यदि पुत्र, पौत्र या अन्य परिजन यह अर्पण न करें, तो मृतात्मा को वहां भूख और प्यास से अत्यंत कष्ट होता है। इसलिए श्राद्ध की महत्ता को समझना और इसे सही समय पर करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

अन्त्येष्टि न करने से केवल मृतात्माओं को ही कष्ट नहीं होता, बल्कि अन्त्येष्टि की उपेक्षा करने वाले परिजनों को भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ब्रह्मपुराण में वर्णित है कि मृतात्मा अन्त्येष्टि न करने वाले अपने परिजनों से प्रतिशोध स्वरूप उनका रक्त चूसने लगते हैं -
श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।

इसके अतिरिक्त, वे अपने परिजनों को शाप भी देते हैं, जैसा नागरखण्ड में उल्लेख है—
पितरस्तस्य शापं दत्त्वा प्रयान्ति च।

इस शाप के परिणामस्वरूप, ऐसा परिवार जीवनभर दुख और बाधाओं से घिरा रहता है। उस परिवार में संतान उत्पन्न नहीं होती, कोई भी स्वस्थ नहीं रहता, दीर्घायु का अभाव होता है और जीवन में शुभता नहीं आती। मृत्यु के बाद ऐसे लोगों को नरक भोगना पड़ता है।

उपनिषदों में भी यह कहा गया है कि मनुष्य को देवताओं और पितरों के कर्तव्यों में प्रमाद नहीं करना चाहिए—
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्। (तैत्तिरीयोपनिषद् 1.11.1)
प्रमाद का अर्थ है शास्त्रविरुद्ध आचरण, जो अंततः कष्ट और विपरीत परिणामों का कारण बनता है। इसलिए, अन्त्येष्टि करना न केवल पितरों के लिए, बल्कि परिवार और समाज के लिए भी आवश्यक है।

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