शव को स्नानादि कराने के बाद कर्मकर्ता तिल, दूध, मधु, घी आदि डाल कर जौ या चावल के आटे से पांच पिण्ड बनाकर बर्तन में रख ले और फिर अपसव्य (यज्ञोपवीत दाएँ कंधे पर) होकर शव के दक्षिण भाग में दक्षिणाभिमुख बैठकर देशकालादि का संकीर्तन कर और्ध्वदेहिक कर्म के निमित्त प्रतिज्ञा संकल्प करें-
ॐ अद्यामुक प्रेतस्य प्रेतत्व निवृत्या उत्तम लोक प्राप्त्यर्थं और्ध्व दैहिकं करिष्ये।
तदनन्तर दक्षिणग्र तीन कुशाएं रख कर शव नामक पिण्ड को कुशाओं पर रखे, पहले अवनेजन ((जल, पुष्प, तिल मिश्र किया हुआ) करे-
अद्यामुक गोत्रामुक प्रेत अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
अवनेजन कुशाओं पर छोड़ कर पिण्ड हाथ में लेकर -
अद्यामुक गोत्र अमुक प्रेत मृतिस्थाने शव निमित्तो ब्रह्मदैवतो वा एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
इससे कुशाओं पर रख दें फिर पिण्ड पर प्रत्यवनेजन दे -
अद्यामुक गोत्र अमुक प्रेत अत्र पिण्डोपरि प्रत्यवनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
पिण्ड पर जल पुष्प तिल चढ़ा दे, यज्ञोपवीत सव्य (बाएं कंधे पर) करके प्रार्थना करे-
ॐ अनादि निधनो देवः शंखचक्रगदाधरः
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्ष प्रदोभव।
इसके बाद पिण्ड को शव के कफन में बांधकर शव को चार आदमी उठाकर द्वार पर ले आऐं और वहाँ पर कर्मकर्त्ता पूर्वोक्त विधि से यज्ञोपवीत दाएं कंधे पर कर पांच निमित्तक पिण्ड दें (प्रत्येक पिण्डदान से पूर्व अवनेजन, पिण्डदान के पश्चात् प्रत्यवनेजन अवश्य दें)।
पूर्ववत् अवनेजन देकर पिण्ड हाथ में लेकर -
अद्यामुक गोत्र अमुक प्रेत द्वारदेशे पांथ निमित्तो विष्णु दैवतो वा एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
कुशाओं पर पिण्ड रख दे फिर प्रत्यवनेजन करे।
उसके बाद जनेऊ सव्य (बाएं कंधे पर) करके प्रार्थना करें-
ॐ अनादि निधनो देवः शंखचक्रगदाधरः ।
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदोभव ॥
इसके बाद शव यात्रा में भाग लेने वाले छोटे भाई पुत्रादि जन यवादि निर्मित पिण्ड लेकर यमराज का स्मरण करते हुए शव को भली प्रकार कफ़न में लपेट कर चद्दर आदि वस्त्रों से आच्छादित कर आगे कर श्मशान में ले जाऐं।
मध्य में यदि चौराहा आए तो उस स्थान पर देने के लिए भी एक पिण्ड बनाकर पूर्वोक्ति विधि से अवनेजन करके खेचर निमित्तिक पिण्ड दें -
अद्यामुक गोत्राऽमुक प्रेत चत्वर खेचर निमित एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
तदनन्तर प्रत्यवनेजन दे, प्रार्थना करें।
इसी प्रकार आगे चलकर गांव और श्मशान के मध्य विश्राम स्थान में शव को रखकर पूर्वोक्त विधि से विश्राम पिण्ड अवनेजन के पश्चात् -
अद्यामुक गोत्रामुक प्रेत विश्रान्तौ भूतनाम्ना रुद्र दैवतो वा एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
पिण्ड दान कर प्रत्यवनेजन करने के बाद जनेऊ बाएँ कंधे पर (सव्य) कर-
ॐ अनादिनिधनो देवः शंखचक्रगदाधरः ।
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्ष प्रदोभव ॥
प्रार्थना करें तथा जल के पात्र (घड़े) से अखण्ड धारा शव के चारों ओर देकर पात्र को फोड़ दे तथा पुनः सभी बान्धवादि मृत (शब) के पीछे श्मशान में जाऐं।
इसके पश्चात् भूमि शोधक उपायों से भूमि समतल कर गोबर से प्रोक्षणकर गंगादि तीर्थों को मन में ध्यान कर उस स्थान पर कुशतिलादि फैलाकर उस पर आम, पीपल, तुलसी चन्दनादि यज्ञीय काष्ठ से चिता निर्माण करे।
चिता पर उत्तर की ओर सिर तथा दक्षिण की ओर पैर कर शव को सवस्त्र लिटा दें।
तब चिता स्थान में वायु नामक पिण्ड दें।
पहले जनेऊ अपसव्य (दाएं कंधे पर) कर कुशत्रय विछा कर पुष्प, जल, तिल लेकर पिण्ड स्थान पर अवनेजन देने के पश्चात् पिण्ड लेकर -
अद्यामुक गोत्र अमुक प्रेत चितास्थाने वायुनिमित्तको यम देवतो वा एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
भूमि पर रखकर प्रत्यवनेजन देकर जनेऊ सव्य (बाएं कंधे पर) कर प्रार्थना करें -
ॐ अनादिनिधनो देवः शंखचक्रगदाधरः ।
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भव ॥
फिर शुद्ध भूमि में वेदी बनाकर पंच संस्कार कर क्रव्याद् संज्ञक अग्नि प्रज्वलित कर गन्ध पुष्पादि से उसकी पूजा कर घी की दो-दो आहुतियाँ लोमभ्यः स्वाहा इत्यादि मन्त्रों से दें -
ॐ लोमभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं लोमभ्यो न मम।
ॐ त्वचे स्वाहा स्वाहा इदं त्वचे न मम।
ॐ लोहिताय स्वाहा स्वाहा इदं लोहिताय न मम ।
ॐ मेदोभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं मेदोभ्यः न मम ।
ॐ मांसेभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं मासेभ्यो न मम ।
ॐ स्नायुभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं स्नायुभ्यो न मम ।
ॐ अस्थिभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं अस्थिभ्यः न मम।
ॐ मज्जाभ्यः स्वाहा स्वाहा इदं मज्जाभ्यः न मम ।
ॐ रेतसे स्वाहा स्वाहा इदं रेतसे न मम ।
तदनन्तर निम्न मन्त्रों से एक-एक आहुति दें -
ॐ पायवे स्वाहा इदं पायवे न मम ।
ॐ प्रायासाय स्वाहा इदं प्रायासाय न मम ।
ॐ वियासाय स्वाहा इदं विवासाय न मम ।
ॐ शुचे स्वाहा इदं शुचे न मम ।
ॐ आयासाय स्वाहा इदं आयासाय न मम ।
ॐ संयासाय स्वाहा इदं संयासाय न मम ।
ॐ उद्यासाय स्वाहा इदं उद्यासाय न मम ।
ॐ शोचते स्वाहा इदं शोचते न मम ।
ॐ शोचमानाय स्वाहा इदं शोचमानाय न मम ।
ॐ शोकाय स्वाहा इदं शोकाय न मम ।
ॐ तपसे स्वाहा इदं तपसे न मम ।
ॐ तप्यमानाय स्वाहा इदं तप्यमानाय न मम ।
ॐ घर्माय स्वाहा इदं घर्माय न मम ।
ॐ तप्यते स्वाहा इदं तप्यते न मम ।
ॐ तप्ताय स्वाहा इदं तप्ताय न मम ।
ॐ निष्कृत्यै स्वाहा इदं निष्कृत्यै न मम ।
भेषजाय स्वाहा इदं भेषजाय न मम ।
ॐ अन्तकाय स्वाहा इदं अन्तकाय न मम ।
ॐ प्रायश्चित्यै स्वाहा इदं प्रायश्चित्यै न मम ।
ॐ यमाय स्वाहा इदं यमाय न मम ।
ॐ मृत्यवे स्वाहा इदं मृत्यवे न मम ।
ॐ ब्रह्मणे स्वाहा इद ब्रह्मणे न मम ।
ॐ ब्रह्महत्यायै स्वाहा इदं ब्रह्महत्यायै न मम ।
ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा इदं विश्वेभ्यो देवेभ्यो न मम ।
ॐ द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा इदं द्यावापृथिवीभ्यां न मम ।
उपर्युक्त आज्य आहुतियाँ देकर शव के हाथ में साधक नामक पिण्ड दें-
ॐ अद्यामुक गोत्र अमुक प्रेत शवहस्ते साधक निमित्तः प्रेतदैवतो वा एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
तदनन्तर पुत्रादि कर्मकर्त्ता काष्ठ तृणादि क्रव्याद अग्नि से प्रज्वलित कर शव की प्रदक्षिणा कर सिर और पैर की ओर अग्नि दे और मन्त्र पढ़े-
कृत्वा तु दुष्कृतं कर्म जानता वाप्यजानता ।
मृत्युकालवशं प्राप्य नरं पंचत्वमागतम् ॥
धर्माधर्म समायुक्तं लोभमोह समावृतम् ।
दहेयं सर्वगात्राणि दिव्यान् लोकान् स गच्छतु ॥
तदनन्तर प्रार्थना करें-
ॐ त्वं भूतकृत् जगद्योने त्वं लोकपरिपालकः ।
उक्तः संहारकः तस्मादेनं स्वर्गं मृतं नय ॥
मन्त्र पढ़कर खूब जोर से तीन बार रोए ।
शव के आधा जल जाने पर सम्बन्धी पुत्रादि एवं गोत्रज चिता की सात प्रदक्षिणा करें।
बांस या किसी लकड़ी से कर्मकर्ता शव की कपाल क्रिया (शवमस्तक का छेदन) कर लकड़ी को दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें ।
तदनन्तर सभी उपस्थित जन प्रार्थना करें -
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन श्लाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।
ॐ जयन्ति मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
शरणागतदीनार्तपरित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ॥
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलौकेकनाथम् ॥
ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसम् ।
रत्नाकल्पोज्वालाङ्गं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम् ॥
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैः व्याघ्रकृतिं वसानम् ।
विश्वाद्यं विश्ववीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥
ॐ नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दार पुष्प बहु पुष्प सु पूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥
शिवाय गौरिवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥
वसिष्ठ कुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेनसह मोदते ॥
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माकश्चित् दुखभाग्भवेत् ॥
ॐ अनादिनिधनोदेवः शंखचक्रगदाधरः ।
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भव ॥
अत्र अस्माभिः कृत प्रार्थनया अस्य जीवस्य सद्गतिः भवतु पूर्व परिवारे च सुखशान्तिः चास्तु ॥
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अथवा हिन्दी में प्रार्थना करें-
प्रथम भगवान को सिमरये वराह जी करें सहाय ।
यज्ञपुरुष नर नारायण को ध्याइए, जिस डिठियां सब दुख जाए ॥
मच्छ कच्छ को सिमरये श्री नरसिंह रूप बनाय ।
श्री बामन हरि का नाम ले, घर आवें नौ निधि धाय ॥
श्री रामचन्द्र जी को सिमरये जो प्रकट में करें सहाय ।
मुख पुनीत, रसना पवित्र, घट घट रहे समाय ॥
दशम अवतार श्री कृष्णचन्द्र भगवान, त्रिलोकी आत्माय जगत रक्षक, हाजिर नाजिर, निरंजन, निराकार, ज्योति स्वरूप अखिल जगत के रक्षपाल, सव थाई होत सहाय, सब थाई होत सहाय ।
धन्य धन्य श्री गंगा माता तरन तारनी सब दुख निवारिणी, तेरी महिमा कही न जाय तेरी महिमा कही न जाय ।
चार धाम, चौरासी अड्डे, तीन सौ साठ तीर्थों का ध्यान धरकर सब बोलो श्रीराम- श्रीराम ।
चार खानी, चार बानी, चन्द्र सूर्य पवन पानी धरती आकाश पाताल तैंतीस करोड़ देवी देवताओं का ध्यान धरकर सब बोलो श्रीराम - श्रीराम ।
ध्रुवभक्त, प्रहलाद भक्त, राजा हरिश्चन्द्र, राजा बलीचन्द्र तिनकी कमाई बल ध्यान धरकर सब बोलो श्रीराम- श्रीराम ।
हे दीन बन्धु, पतित पावन, दीनानाथ भगवान, सभी उपस्थित जन समुदाय की विनती है आपकी आज्ञा से इस जीव का इस संसार से देहावसान हुआ है इसे आप अपने चरणों में स्थान दें, सद्गति प्रदान करें तथा शेष परिवार में अपनी कृपा बनाएं रखें - बोलिए शंकर भगवान की जय ।
तदनन्तर स्नानार्थ नदी आदि के तट पर जाऐं वहां दक्षिण की ओर मुख कर मौनभाव से स्नान करें परन्तु अंगों को न मलें।
इसके बाद दो वस्त्र धारण कर आचमनकर जल में, पत्थर पर अथवा पवित्र तट पर दक्षिणाग्र तीन कुशाओं पर कुश तिल जल पूर्ण अञ्जलि से अपसव्य होकर (दाएं कंधे पर जनेऊ कर) पितृ तीर्थ (तर्जनी अंगुष्ठ के मध्य भाग) से -
अमुक गोत्राऽमुक प्रेत दाह तृषा निवारणार्थं एष तिलतोयांजलिस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
पढ़कर दाहतृषा के निवारण के लिए एक-एक या 13-13 अंजलियां दे ।
तदनन्तर पीपल के मूल में प्रेत की दाह तृषा निवारण के लिए घड़े को जल से भरकर उसमें तिल, पुष्प, दूध छोड़कर दान करना चाहिए-
अद्यामुक गोत्राऽमुक प्रेत एष तिल तोय दुग्ध सहित घट: अद्यदिनादारभ्य दश दिन पर्यन्तमश्वत्थमूले ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।
इसके पश्चात् बिना पीछे देखे ईश्वर स्मरण करते हुए गांव को लौटे और घर के पास पहुंचकर नीम के पत्ते चबा कर आचमन कर गोबर, अग्नि आदि का स्पर्श कर घर में प्रवेश करे।
वयोवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध शोकार्त के शोक को (संसार की निस्सारता बखान कर) दूर करें।
तृणच्छेदन मन्त्र
यत एषागतः प्रेतस्तत्रैव प्रति गच्छति ।
त्वया शोको न कर्तव्यः यत्रत्यस्तत्र गच्छति ॥
क्रियाकर्म करने वालों को निम्न नियमों का पालन करना चाहिए - ब्रह्मचर्य से रहे, नीचे बैठे और नीचे सोये, किसी पतित अथवा अशुद्ध का स्पर्श न करे, दान अध्ययनादि न करे, सब भोगों का परित्याग कर प्रेतक्रिया को छोड़कर और कुछ न करें।
रात्रि में भोजन न करें दिन में ही एक बार आहार ले।
इच्छा हो तो चौराहे, श्मशान अथवा घर में प्रेत के लिए दीप दान करना चाहिए।
सूर्यास्त से अर्धरात्रि पर्यन्त अन्तरिक्ष में दूध-जल दान करे।
इसके लिए त्रिकाष्ठिका एक मिट्टी के पात्र में जल, दूसरे में दूध भरकर दक्षिण की ओर मुखकर-
अमुक गोत्रस्यामुक प्रेतस्य आप्यायानार्थं तापोपशमनार्थं च आकाशे मृण्मये पात्रे क्षीरोदकयो: निधानमहं करिष्ये ।
संकल्प करके बोलें -
ॐ श्मशानानल दग्धोसि परित्यक्तोसि बांधवैः ।
इदं नीरमिदं क्षीरमत्र स्नाहि इदं पिब ।
इस प्रकार एक, तीन, या दस रात तक रात्रि में करना चाहिए।
इष्टि का अर्थ है यज्ञ। जीवन के अंत में किये जानेवाला यज्ञ अथवा इष्टि है अंत्येष्टि। इसमें जीवन भर अपने शरीर से ईश्वर की सेवा करने के बाद, उसी शरीर को एक आहुति के रूप में अग्नि देव को समर्पित किया जाता है।
मानव के सारे पाप उसके बालों पर स्थित रहते हैं। इसलिए शुद्ध होने और पापों से मुक्त होने के लिए बन्धु बान्धव जन अंत्येष्टि के बाद बाल देते हैं।
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